आजसू चली भाजपा की राह यानी ‘बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह’
लीजिये ‘बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह’, अभी तक तो लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘मन की बात’ को ही जानते थे। अब प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ का असर, झारखण्ड में भाजपा के पीछे-पीछे चलनेवाली, हमेशा सत्ता से चिपक कर रहनेवाली आजसू पार्टी पर भी हो चला हैं। आखिर ये असर हो भी क्यों नहीं? संगति का असर तो देर-सबेर पड़ता ही हैं।
आजसू पार्टी ने रांची के विभिन्न मुख्य चौक-चौराहों पर होर्डिंग-बैनर लगाये हैं। इस बैनर में ‘मन की बात’ की खुब चर्चा की गई हैं। इस ‘मन की बात’ के माध्यम से आजसू का कहना है कि ना उजाड़ेंगे ना तोड़ेंगे। अपनी रांची को फिर से संवारेंगे। आश्चर्य की बात हैं जो पार्टी सत्ता में हैं, वह इस प्रकार की बात कह रही हैं। वह पार्टी कह रही हैं, जो झारखण्ड बनने के बाद से लेकर हमेशा सत्ता से चिपकी रही हैं। आखिर इतने वर्षों से सत्ता से चिपके रहने और वर्तमान में भी सत्ता में बने रहने के बाद रांची को उजाड़ कौन रहा है? तोड़ कौन रहा है? अपनी रांची को संवारने की जरुरत क्यों पड़ रही है? इसके लिए राजभवन के समक्ष महाधरना की जरुरत क्यों पड़ रही हैं?
सत्ता में मौजूद रहने के बावजूद आजसू का राजभवन के समक्ष धरना बताता है कि यह पार्टी ‘दुल्हों के चाची और दुल्हनियों की चाची’ वाली लोकोक्ति के आधार पर चल पड़ी है, यानी सत्ता सुख का भी आनन्द लेंगे और कभी-कभी विपक्ष की भूमिका में आकर, अपनी सेहत भी ठीक करते रहेंगे। जनता को धोखा देंगे कि देखों हम तुम्हारे लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में क्या रांची की जनता सचमुच में महामूर्ख हैं? जैसा कि आजसू वाले समझ रहे हैं।
एक दिन इन्हीं के नेताओं को हरमू में देखा गया कि एक मंदिर के सामने से शराब की दुकान हटाने के लिए धरने पर बैठे थे, जबकि मंदिर जहां हैं, उसके सामने आज भी शराब की दुकान शान से चल रही हैं। ये सरकार में हैं, बिना धरने के भी ये सरकार से कहकर शराब की दुकान को स्थानांतरित करा सकते हैं, पर जब सही में ये चाहेंगे कि शराब का दुकान हटे, तभी तो हटेगा।
जरा आजसू के महानगर अध्यक्ष से पुछिये कि चुटिया में ही रेलवे स्टेशन के पेट्रोल डिपो के पास शराब की दुकान है और उसके ठीक सामने काली मंदिर है, वहां पर से शराब की दुकान हटाने के लिए आजसु महानगर अध्यक्ष ने आंदोलन क्यों नहीं किया? जबकि हरमू में शराब की दुकान और मंदिर की दूरी, यहां की अपेक्षा दूर हैं, जबकि यहां तो बहुत ही नजदीक हैं, यानी आंदोलन भी करेंगे तो माइलेज देखकर कि कहां माइलेज मिलेगा और कहां दिक्कत होगी, ऐसे में इस महाधरना से वे किसे धोखा दे रहे हैं, जनता को या खुद को।