पूरे देश में गणतंत्र दिवस के साथ-साथ विज्ञापनोत्सव की भी धूम, राजनीतिज्ञों, सेठ-साहूकारों, पुलिसकर्मियों, नेताओं, छोटे-मोटे अधिकारियों ने खोली थैलियां, लूटाए मुंहमांगी रकम
आज केवल गणतंत्र दिवस की ही धूम नहीं है। आज विज्ञापनोत्सव का भी बहुत बड़ा त्यौहार है। यह त्योहार पूरे देश में हर्ष व उल्लास के बीच दो बार मनाया जाता है – एक स्वतंत्रता दिवस के दिन तो दूसरा गणतंत्र दिवस के दिन। इस त्यौहार को अखबारों में काम करनेवाले या उससे जुड़े या इसका धंधा करनेवाले लोग बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं।
इसकी तैयारी एक महीने पहले से ही शुरु हो जाती है और इसका जिम्मा गांवों-कस्बों में रहनेवाले छोटे-मोटे संवाददाताओं जिन्हें ये अखबार के मालिक या संपादक या प्रबंधक, संवाद सूत्र, न्यूज सप्लायर्स, न्यूज कंटीब्यूटर्स या संवदिया कहकर पूकारते हैं, उन पर बड़े प्रेम से थोपते हैं तथा उन्हें बताते है कि इस विज्ञापनोत्सव में वे बड़े प्रेम व श्रद्धा से भाग लें।
वे जब इस विज्ञापनोत्सव में भाग लेकर अपना योगदान देंगे तो उनको संस्थान इसके लिए कमीशन भी देगा। जिस कमीशन की लालच में ये दिन-रात मेहनत करते हैं। इस मेहनत का मेहनताना कोई संस्थान दस तो कोई पन्द्रह तो कोई बीस प्रतिशत कमीशन देकर पूरा करता है। इससे फायदा यह होता है कि अखबारों और इन संवाददाताओं को एक दूसरे का बहुत बड़ा सहयोग मिल जाता है।
चूंकि संस्थान इन लोगों को कभी कुछ देती नहीं तो कमीशन प्राप्त कर कुछ अपने घर के लिए सपने पूरे करने का यह एक बहुत बढ़िया मौका इनके लिये होता है और संस्थानों को इनके द्वारा एक अच्छी रकम उन इलाकों व स्थानों व संस्थानों से आ जाती हैं। जहां से साल में एक फूटी कौड़ी तक नहीं आती।
इस विज्ञापनोत्सव कार्य में केवल गांवों-कस्बों-मुहल्ले के ये संवदिया या संवाद सूत्र या न्यूज सप्लायर्स ही भाग नहीं लेते, बल्कि कई संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे बड़े-बड़े तथाकथित पत्रकार भी भाग लेते हैं। वे अपने संबंधों का इस दौरान जमकर फायदा उठाते हैं और बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, संस्थानों, राजनीतिक दलों, महत्वपूर्ण विभागों, बड़े-बड़े पुलिस पदाधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों से लाखों रुपये का विज्ञापन लेकर, अपने-अपने संस्थानों तक पहुंचाते हैं। जिससे संस्थानों और पत्रकारों को दोनों को सहजीविता का फायदा मिलता है। एक को कमीशन तो संस्थान को मोटी रकम मिल जाती है।
इस विज्ञापनोत्सव पर संस्थान कुछ सर्कुलर भी निकालते हैं। जिसे ये संवाददाता अपने लोगों को पहुंचाते हैं और इसी के आधार पर विज्ञापन लेते हैं। इधर बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, संस्थानों, राजनीतिक दलों, आईएएस/आईपीएस अधिकारियों का समूह भी इस विज्ञापनोत्सव का फायदा अपने हितों के लिए उठाता है।
वो जानता है कि यही मौका हैं, इन पत्रकारों को अपने पाले में लाने का, इसलिए वे जमकर उन्हें मोटी रकम का विज्ञापन देकर, अपने पाले में ले आते हैं तथा अपने विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि को रोकने या अपना चेहरा चमकवाने का संकल्प भी करवा लेते हैं। जिसका धर्म-पालन ये पत्रकार और संस्थान बड़ी ईमानदारी से करते हैं। हालांकि इसमें कुछ मतलब एक-दो लोग ईमानदार भी होते हैं, पर इनकी संख्या जंगल में चीतों की तरह हैं, जो भारत से विलुप्त हो चुके हैं।
कुल मिलाकर आज विज्ञापनोत्सव का आलम यह है कि अखबारों से समाचार व विशेषांक गायब है, हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन है। ऐसा विज्ञापन की विज्ञापन देनेवालों को भी अपना विज्ञापन ढूंढने में घंटों लग जायेंगे, फिर भी विज्ञापन देनेवाले और विज्ञापन लेनेवाले तथा विज्ञापन का असली मजे लेनेवाले लोग आज बहुत ही खुश हैं। खुश हो क्यों नहीं, दोनों हाथ ही नहीं बल्कि पूरा शरीर रसगुल्ले के हांडी में चला गया है। इसलिए हर्ष व उल्लास क्यों न हो।
आप सब भी इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद, सभी अपने पत्रकार मित्रों को इस विज्ञापनोत्सव की बधाई अवश्य दें, ताकि उनका मनोबल बढ़ा रहे और वे बार-बार, साल में दो बार, सभी के पॉकेट ढीला करते रहे और जो ढीला करवाने में सक्षम हैं, वे प्रेम से अपना पॉकेट पत्रकारों को सौंपकर परम आनन्द की प्राप्ति कर सकें।