एक बार फिर कह रहा हूं, जहां लालची लोग होते हैं, वहां ठग कभी भूखों नहीं मरता, नेता+शिक्षा माफिया+अखबारों का आपसी प्रेम बना रहे, इस प्रकार के प्रतिभा सम्मान समारोह आयोजित होते रहेंगे
एक बार फिर कह रहा हूं, जहां लालची लोग होते हैं, वहां ठग कभी भूखों नहीं मरता, वो लाव-लश्कर की जिंदगी जीता हुआ, मस्ती में ताउम्र जिंदगी व्यतीत करता है। किसी को लालच होती है कि धन मिले, किसी को लालच होती है कि किसी न किसी प्रकार से उसकी प्रशंसा होती रहे, किसी को कुछ तो किसी को कुछ की लालच रहती है और इसी लालच में वो अपनी पूरी जिंदगी खपा देता है, जो लालची होते हैं, उनकी जिंदगी सामान्य ढंग से बीत जाती है।
वे कभी गांधी या सुभाष नहीं बन सकते और न ही देश का निर्माण कर पाते हैं, वे तो सिर्फ लालच से मिले हुए उन वस्तुओं में अपनी तकदीर का कील ठोक लेते हैं, कि वो कील ही उनके लिए सिरदर्द का कारण बन जाती है। आश्चर्य होती है कि समाज में ऐसे-ऐसे माता-पिता और अभिभावक तथा आधुनिक शिक्षकों की भरमार हो गई है, जो अपने बच्चों को लालची बनाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं, वे क्षणभंगुर सुख के लिए जीवन की ताउम्र मिलनेवाली खुशियों के द्वारों को सदा के लिए अपने हाथों से बंद कर लेते हैं।
उसका सुंदर उदाहरण है आजकल के अखबारों द्वारा प्रायोजित होनेवाले प्रतिभा सम्मान समारोह के नाम पर सजनेवाली दुकानें, जहां सजनेवाले पीतल व कचकारों से बने वस्तुओं के ग्राहक होते हैं वे बच्चे जो दसवीं या बारहवीं में कथित रुप से प्रथम आये होते हैं। ये सिर्फ आज के ही दिन दिखाई देते हैं, फिर भविष्य में ये कहां खो जाते हैं, इनका पता भी नहीं होता और न वे खोज करते हैं, जिन्होंने आज के दिन इन्हें बुलाया था।
इस प्रकार के कार्यक्रम में आयोजक, प्रायोजक व नेताओं का समूह प्रमुख रूप से भाग लेता हैं और भाग लेते हैं, वे लोग जिन्हें कभी सम्मान शायद नहीं मिला होता है या जिन्हें इस बात की गारंटी होती है कि उनका बच्चा भविष्य में कभी सम्मान के लायक नहीं बनेगा। जो जानते है कि उनका बच्चा कभी गांधी, नेहरु, जय प्रकाश, लोहिया, भगत सिंह, चंद्रशेखर, राजगुरु या कलाम नहीं बनेगा। इसलिए ये घटियास्तर की मनोवृत्ति के शिकार होकर वे इस प्रकार की गुलामी की प्रवृत्ति के शानदार पोषक बनकर प्रतिभा सम्मान समारोह में शामिल होते हैं।
उदाहरण जरा पूछिये कल ही आयोजित प्रभात खबर में शामिल केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ, झारखण्ड के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव तथा कृषि मंत्री बादल पत्रलेख से की आपने जिन बच्चों को प्रतिभा सम्मान समारोह में सम्मानित किया। क्या वो सम्मान आपके ही विभाग में सम्मान पाने के लायक हैं, जब वो बच्चा आपके विभाग द्वारा आयोजित परीक्षा में पास होकर विभागीय नौकरी पाने की कोशिश करेगा। उत्तर होगा – एकदम नहीं।
ये मैं जोर देकर इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि विभागीय नौकरियों में भी बहुत सारे सम्मान प्रमाण पत्र की मांग होती है। परन्तु वो सारी की सारी महाविद्यालय/विश्वविद्यालय या सरकारी स्तर पर होनेवाली विभिन्न विभागीय प्रतियोगी परीक्षाओं या खेल परीक्षाओं से आयोजित होनेवाली प्रमाण पत्रों की ही सिर्फ मांग होती हैं, न कि अखबारों द्वारा प्रायोजित/आयोजित होनेवाली इस प्रकार की सम्मान समारोह में मिलनेवाली ड्रामे पर प्रमाण पत्र या पीतल या कचकारे के टुकड़ें, जिसमें अखबारों के नाम खुदे होते हैं।
दरअसल इस प्रकार के ड्रामे गत कुछ वर्षों से बहुत होते आ रहे हैं। ये ड्रामे इसलिए होते हैं, क्योंकि इन ड्रामें में भाग लेनेवाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही हैं और इस ड्रामें के कारोबार में भाग लेनेवाले लोग भी जमकर लाभान्वित होते हैं, तो जहां कारोबार होगा, वहां तो भीड़ लगेगी ही। नेता, आयोजक, प्रायोजक और लाभ लेनेवाला वर्ग शामिल हो गया, दुकानदारी चल पड़ी। नेताओं को अखबारों में स्थान मिल गया। उनके चेहरे चमक गये।
जो प्रायोजक हैं यानी शिक्षा माफिया उनको यह मौका होता है कि वे अभिभावकों व अभ्यर्थियों से सीधा अखबारों के माध्यम से स्वयं को प्रोजेक्ट करें ताकि इतना बड़ा वर्ग से वो मनमुताबिक रकम निकाल सकें और अखबारवालों का है कि इन प्रायोजकों से इस प्रकार के आयोजन के नाम पर अखबार को मुनाफा दिलालें, उसके बाद अभ्यर्थी और उनके माता-पिता कही जाये, उससे क्या मतलब? बस नेता, शिक्षा माफिया और अखबारों की ये जोड़ी सलामत रहे, ताकि दुकानदारी बराबर चलती रहे।