अमित शाह के भाषण को उनके ही बूथ कार्यकर्ताओं ने नहीं दिया भाव, पांच-पांच बार नारों और प्रश्नों से उनमें जोश भरने की कोशिश की, उसके बाद भी वे गृह मंत्री के टिप्स को लेने को तैयार नहीं दिखे
देश के गृह मंत्री अमित शाह आज रांची में थे। वे भाजपा के विस्तृत कार्य समिति की बैठक में यहां शामिल होने आये थे। बताया जाता है कि रांची के एचईसी धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर मंदिर मैदान में प्रदेश भाजपा ने राज्य के अपने सभी बूथों से एक-एक कार्यकर्ता को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य बूथ कार्यकर्ताओं को अमित शाह द्वारा टिप्स देना था कि कैसे इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पुनः शासन में लाया जाये।
लेकिन वे टिप्स क्या देंगे और ये प्रत्येक बूथ से आये कार्यकर्ता उनके टिप्स को क्या ग्रहण करेंगे? अगर आप अमित शाह के पूरे भाषण को सुन जाइये, जो भाजपा वालों ने अपने फेसबुक पर भी टांग रखा है। आपको पता चल जायेगा कि भाजपा की प्रदेश में इसके बावजूद भी क्या स्थिति है? बेचारे अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान कई बार प्रश्न किये, जोश दिलवानी चाही, नारे लगवाने चाहे, पर सभा में उपस्थित उनके कार्यकर्ता लगता है कि वे अमित शाह के भाषण को सुनने के मूड में नहीं थे। नहीं तो जिस प्रकार अमित शाह बोल रहे थे, उसका प्रत्युत्तर भी उसी रुप में सभा की ओर से भी आना चाहिए था।
बेचारे अमित शाह भाषण की शुरुआत में ही भारतमाता की जय के नारे लगवाते है। सभा में उपस्थित लोगों से पूछते है कि सरकार बदलनी है या नहीं। पूर्ण बहुमत की सरकार बनानी है या नहीं। लेकिन भीड़ से मरी हुई आवाज आती है। जिसे सुनकर वे खुद कहते है कि ऐसी आवाज नहीं, मोदी जी दिल्ली में हैं। उन तक आवाज पहुंचनी चाहिए, वे फिर से सवाल करते हैं, उसके बावजूद भी वो जोश भाजपा कार्यकर्ताओं में नहीं दिखता।
दूसरी बार जब वे कहते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी को 52 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली है, आनेवाले दिनों में यहां किसकी सरकार बनेगी। फिर भीड़ की ओर से मरी हुई टाइप्ड आवाज आती है। वे फिर बोलते हैं, अरे जोर से बोलो, किसकी सरकार बननेवाली है। भीड़ कहती है – भाजपा की।
तीसरी बार जब वे कहते हैं कि विजय के बाद अहंकार का होना तो समझ में आता है, लेकिन यहां तो पराजय के बाद भी अहंकार पहली बार देख रहा हूं। आप बताओ केन्द्र में सरकार किसकी बनी, फिर भीड़ से मरियल आवाज आती है। वे डांट कर बोलते हैं, अरे जोर से बोलो, चुनाव कौन जीता, तब भीड़ कहती है भाजपा।
चौथी बार जब अमित शाह बड़े गर्व से कहते है कि दस सालों के शासन में कांग्रेस ने झारखण्ड को मात्र 84 हजार करोड़ दिये, जबकि मोदी सरकार ने तीन लाख 84 हजार करोड़ रुपये झारखण्ड को दिये, बताओ कितने रुपये दिये, भीड़ ने कोई जवाब नहीं दिया, तब वे दुबारा भीड़ से पूछने की कोशिश करते हैं और खुद फिर से दुहराते है तीन लाख 84 हजार करोड़ रुपये।
फिर पांचवी बार, आदिवासी घोटालेबाज सरकार को उखाड़ फेकेंगे, कमल फूल को विजय दिलायेंगे क्या, कांग्रेस-झामुमो की सरकार को उखाड़ फेंकेंगे, वे फिर से भीड़ से कहते है कि जरा जोर से बोलिये। मतलब पांच-पांच बार जोर से बोलिये, जोश दिलाने की कोशिश अपने ही बूथ के कार्यकर्ताओं को, बताता है कि भाजपा के यहां आनेवाले दिनों में पसीने छूटने तय है। भाजपा कार्यकर्ताओं को पता है कि लोकसभा के चुनाव और विधानसभा के चुनाव में क्या अंतर होते हैं।
हालांकि आज अमित शाह ने माहौल बनाने की कोशिश खूब की। आदिवासी लड़कियों के साथ बांगलादेशी घुसपैठियों की शादी, संताल परगना में डेमोग्राफी का बदलना, लव जेहाद, लैंड जेहाद की बातें भी उन्होंने कही। साथ ही कह दिया कि उनकी सरकार अगर आती है तो वे इस पर श्वेत पत्र भी जारी करेंगे और आदिवासियों की जमीन, उनकी जनसंख्या और उनके आरक्षण पर विशेष काम करके दिखायेंगे।
अपने भाषण में उन्होंने पिछड़ों पर भी डोरे डालने के काम किये। बताया कि मोदी सरकार में जो मंत्रिमंडल बना है, उसमें भी ध्यान से देखें तो 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रभाव दिख जायेगा। अपने बूथ कार्यकर्ताओं को उन्होंने कहा कि वे मोदी सरकार के द्वारा किये गये अब तक के कार्यों की एक सूची लेकर आम जनता तक जाये और उनका विश्वास अर्जित करें।
लेकिन फिर सवाल यही उठता है कि जो बूथ का कार्यकर्ता, अपने ही नेता के भाषण को ध्यान पूर्वक नहीं सुनता है और न उनके भाषण में पूछे गये प्रश्नों को उत्तर देता है और न ही नारे लगाता है, वो क्या मोदी के किये गये कार्यों की सूची लेकर मतदाताओं तक जायेगा या उन स्थानों पर जायेगा, जहां इनके बड़े-बड़े नेता अब जाने से कतराने लगे हैं। सवाल तो फिलहाल यही है।