अपनी बात

ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं में आक्रोश गहराया, कार्यकर्ताओं ने परिवारवाद के खिलाफ फेसबुक पर चलाया अभियान, रघुवर की बहू पूर्णिमा की जीत पर संकट के बादल

जमशेदपुर पूर्व में भाजपा प्रत्याशी व ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। भाजपा कार्यकर्ता विद्रोह की स्थिति में हैं। रघुवर दास पर खुलकर परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं। वहीं प्रदेश व केन्द्र के नेताओं के खिलाफ भी आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं और निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में खड़े शिवशंकर सिंह के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। इन कार्यकर्ताओं का आक्रोश देखना हो तो जमशेदपुर भी जाने की जरुरत नहीं।

बस सीधे सोशल साइट फेसबुक पर जाइये और फिर रघुवर दास के प्रति कितनी इनके मन में घृणा हैं और ये घृणा क्यों हैं, वो आपको पता लग जायेगा। कुछ कार्यकर्ता तो बहुत ही उग्र हैं और वे खुलकर रघुवर दास के खिलाफ अपनी भावनाओ को अभिव्यक्त कर रहे हैं। उनकी लिखी बातें आपको भी सोचने पर मजबूर कर देगी कि इनका आक्रोश जायज और नैतिकता से परिपूर्ण हैं। ये भाजपा के वे कार्यकर्ता हैं। जिनके दिलों में भाजपा के प्रति दर्द साफ दिखता है।

लेकिन फिलहाल रघुवर दास के परिवारवाद को लेकर वे मुखर हो चले हैं और वे शांत बैठने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि परिवारवाद के खिलाफ उनका आंदोलन जारी रहेगा, वे रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास को हरा कर रहेंगे। 2019 की पुनरावृत्ति कराकर रहेंगे। ज्ञातव्य है कि 2019 में रघुवर दास मुख्यमंत्री रहने के बावजूद इस सीट से बुरी तरह हारे थे। यहां की जनता ने उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय को जीता दिया था। इस बार भी कमोबेश स्थिति यही दिखाई दे रही हैं।

भाजपा से जुड़े नेता रंजन सिंह फेसबुक पर लिखते हैं कि याद रखियेगा परिवारवाद का साथ जो दे रहे हैं। 23 तारीख के बाद पांव पुजाई बंद और द्वार भगाई चालू। इसलिए यही सही समय है। उखाड़ फेकिये इस परिवारवाद के दंश को। रंजन सिंह के ही इसी  पोस्ट पर रघुवर दास के बहुत ही करीबी व सूर्य मंदिर कमेटी के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह नाराजगी व्यक्त करते हुए लिखते है कि संगठन से गद्दारी करनेवाले को ही मान-सम्मान पद मिल मिलता है, कितना उदाहरण दें।

भूपेन्द्र सिंह का इशारा हाल ही में अमरप्रीत सिंह काले को भाजपा में शामिल कर रघुवर के इशारे पर प्रदेश प्रवक्ता बनाने को लेकर था। वो अमरप्रीत सिंह काले जिसने भाजपा के खिलाफ कभी बगावत की थी। भूपेन्द्र सिंह अंदर ही अंदर रघुवर दास द्वारा अपनी बहू को जमशेदपुर पूर्व से भाजपा का टिकट दिलाने को लेकर खफा है। रंजन सिंह यह भी लिखते हैं कि 25 वर्षों तक जो कार्यकर्ता और जनता  आपको (रघुवर दास को) सर आंखों पर बिठाया तो भक्त था। आज परिवारवाद के विरोध में खड़ा है तो जनता और कार्यकर्ता गद्दार हो गया, परिवारवाद नहीं चलेगा।

रंजन सिंह यह भी लिखते है कि संगठन सर्वोपरि होता है तो फिर ये दर्द कैसा। पार्टी ने जो फैसला लिया तो फिर वो गद्दार कैसे हो गया। यहां जो होता है, बड़े नेता के हिसाब से होता है। जब अपने उपर आती है इन नेताओं के दो किसी से भी हाथ मिला सकते हैं। मान-सम्मान और पद क्या, अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किस-किस के दरवाजे पर जाकर पैर पकड़ सकते हैं। ये सारा शहर देख रहा है और समझ रहा है।

बड़े नेताओं के लिए लड़े-भिड़े कार्यकर्ता, संबंध खराब करें कार्यकर्ता, दोस्ती को दुश्मनी में बदले कार्यकर्ता, पारिवारिक रिश्ते तोड़े कार्यकर्ता और जब कार्यकर्ता और जब कार्यकर्ता आवाज उठाए तो गद्दार की उपाधि, नेताओं की अपने स्वार्थ सिद्धि की बात आती है तो दुश्मन को भी हंसते-हंसते गले लगा लेते हैं और कार्यकर्ता मुंह देखते रह जाता है और ये दर्द हर कार्यकर्ता में हैं। ध्यान दीजिये, भाजपा के कार्यकर्ता है। वो इसका जवाब जरुर देंगे। ये परिवारवाद का चुनाव नहीं, ये कार्यकर्ता के मान-सम्मान का चुनाव है। कार्यकर्ता जिन्दाबाद। भारत माता की जय।

हरे राम सिंह कहते है कि रायशुमारी में जो था ही नहीं, उसको टिकट। क्या यह कार्यकर्ताओं के साथ गद्दारी नहीं है। हरे राम सिंह यह भी कहते है कि भाई साहेब हमलोग दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी वाले भाजपाई है और आपलोग टटका-टटका फर्क तो दिखेगा ही।

सतीश सिंह लिखते हैं कि पश्चिम में सिलिंडर के साथ पूर्वी में गैस चूल्हा भी लाना होगा, जोड़ी साथ में ही अच्छी लगती है। यहां याद रखिये जमशेदपुर पश्चिम से जदयू के टिकट पर सरयू राय चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका चुनाव चिह्न सिलिण्डर हैं और जमशेदपुर पूर्व में जो रघुवर दास की बहू को चुनौती दे रहे हैं यानी शिव शंकर सिंह, उनका चुनाव चिह्न गैस चूल्हा है। शिव शंकर सिंह संघ से भी जुड़े रहे हैं। एक अच्छे स्वयंसेवक माने जाते है। जिनके कारण रघुवर दास की घिग्घी बंधती दिख रही है।

जितेन्द्र सिंह लिखते है कि ये हैं नेताओं की असली जनसेवा। ऐसे लोगों की  करतूतों को उजागर करो और सबक सिखाओ। देवानन्द झा दूरभाष पर कहते है कि उनकी लड़ाई सिर्फ परिवारवाद के खिलाफ है। हम सब मेहनत करें और जब उचित समय आये तो भाजपा कार्यकर्ताओं की जगह नेताजी के परिवार के लोग चले आये, ये बर्दाश्त से बाहर है। अगर उनको अपनी बहू को ही टिकट थमाना था तो वे पांच महीने पहले से ही पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल करवाते, भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करने को कहते, ये क्या सीधे-सीधे टिकट लेकर हम कार्यकर्ता को कहेंगे कि हमलोग इनकी बहू के लिए काम करें। ये तो असहनीय है।

मतलब साफ है कि रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास मुश्किलों में हैं। उनके साथ भाजपा के कार्यकर्ता जो दिख रहे हैं। वे सही मायनों में उनके साथ हैं भी या नहीं। कहा नहीं जा सकता। क्योंकि जमशेदपुर पूर्व में भाजपा के कार्यकर्ताओं में रघुवर दास के प्रति इतना गहरा आक्रोश हैं कि उस आक्रोश को माप पाना भी मुश्किल है। जिनके मुंह से देखों, वो सिर्फ यही कह रहा है कि इस बार काम परिवारवाद के खिलाफ होगा। मतलब परिणाम क्या आयेगा? भाजपावालों को पहले से ही सोचकर रख लेना चाहिए।

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