नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने काबिल बन रहे एक पत्रकार को औकात बताई, पत्रकार की हेकड़ी बंद
बेवजह के सवालों और बार-बार की टोका-टाकी से तंग आकर नगर विकास मंत्री ने वही किया, जो उन्हें लगा कि उन्हें करना चाहिए। उन्होंने सीधे उक्त पत्रकार की क्लास ले ली। पत्रकार ने जब देखा कि सीपी सिंह आक्रोशित हो रहे है, तो उसकी आवाज धीमी होती चली गई, हालांकि उसने प्रयास किया कि मंत्री को अपने बातों से पटके, पर सी पी सिंह कहा उसकी बातों से पटकाने वाले थे। हालांकि एक दक्षिण भारत से संचालित हिन्दी पोर्टल ने इस समाचार को प्रसारित करने में स्वभावानुसार एकतरफा पत्रकार का पक्ष लिया और नगर विकास मंत्री के सम्मान के साथ खेलने में कोई कोताही नहीं बरती, जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है।
ये घटना आज की है, रांची के हरमू वार्ड नम्बर 25 की, जहां सी पी सिंह एक पार्क का शिलान्यास का उद्घाटन करने आये थे, उसी वक्त उक्त पत्रकार ने रांची के साफ-सफाई से संबंधित एक सवाल इस अंदाज में पुछा, कि सी पी सिंह को गुस्सा आना लाजिमी था।
जरा देखिये, पत्रकार और नगर विकास मंत्री के बीच हुए हॉट-टॉक को, एक दक्षिण भारतीय हिन्दी पोर्टल ने ट्विस्ट कर कैसे प्रसारित किया, जबकि उसी पोर्टल में दिये गये विडियो को जब आप देखेंगे तो आपको खुद ब खुद सच्चाई का पता चल जायेगा, वीडियो की सच्चाई आपके सामने है…
मंत्री – अरे चल जाओ न मोदी जी, तुम्हें पीएस में ऱख लेंगे।
पत्रकार – नहीं जरुरत है, न सर।
मंत्री – रख लेंगे तेरे को, जाओ।
पत्रकार – इतना दिन खराब नहीं आया है कि मोदी जी के बगल में बैठेंगे।
मंत्री – इतना दिन खराब नहीं आया है तो ऐसे ही झोला लटका के घुमते रहते।
पत्रकार – हमको इसी में संतुष्टि है।
मंत्री – अरे कोई संतुष्टि नहीं है, मजबूरी है, मजबूरी है बोलो, बोलो मजबूरी है, बस मजबूरी है बोलो, मजबूरी में घूम रहे हो, संतुष्टि है, क्या बात करते हो?
पत्रकार – मजबूरी नहीं है।
मंत्री – हमको पता नहीं है, सीखा रहे हो, जातीयता करते हो, अरे सुनो…
(इतना प्रसारित करने के बाद, पोर्टल कहता है कि जब मंत्री जी को लगता है कि कुछ ज्यादा हो गया तो उन्होंने सफाई कुछ इस अंदाज में दे दी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था, मंत्री ने अपनी बात उसी तेवर में रखी, जिस तेवर में वे पहले से बात कर रहे थे।)
मंत्री – मै प्रेस के लिए कोई कमेन्ट नहीं करता हूं, माफ कीजियेगा। (फिर पत्रकार द्वारा टोका-टाकी) मैं फिर कह रहा हूं न, प्रेस चलाने की जिम्मेवारी सी पी सिंह की नहीं है, मुझे आपसे सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं, जो सही है, वो सही है, कंपनी के द्वारा सफाई व्यवस्था जो होनी चाहिए, वो नहीं हो रहा।
ऐसे भी रांची में पत्रकारों की गजब स्थिति है, ऐसे तो पूरे देश में सिर्फ कहने को, पत्रकार रह गये हैं, जबकि सच्चाई यही है कि सभी अब नौकरी करते हैं, आजीविका करते हैं, क्योंकि उन्हें घर चलानी है। इसी चक्कर में, जहां वे काम करते हैं, और जिस संस्थान के लिए जीने-मरने की कसमें खाते हैं, उस संस्थान में काम कर रहा संपादक ही, उन्हें मौत के मुंह में ढकेल देता हैं, रांची में ही कार्यरत एक कैमरामैन जिसने आत्महत्या कर ली, इसका उदाहरण है।
इसी रांची में जब मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा मुख्य मंत्री थे, तब एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने एटीआई में, पत्रकारों और मुख्यमंत्री का परिचय पति-पत्नी के रुप में कराया था, जिसका विरोध किसी पत्रकार ने नहीं किया, उलटे जिस पत्रकार ने इसके खिलाफ आवाज उठाया, उसका ही मुंह बंद करने के लिए यहां के पत्रकार ऐसी हरकते करने लगे, जैसे लग रहा था कि उक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा द्वारा पति-पत्नी के रुप में कराया गया परिचय एक तरह से सही ही था। इसी रांची में राजभवन के मुख्य द्वार पर उस वक्त के एक तत्कालीन उप मुख्यमंत्री के कार से एक चैनल के पत्रकार के हाथों को चोट भी आई थी, पर वह इसका कोई प्रतिकार ही नहीं किया। मतलब समझे या नहीं, अरे जनाब यहां तो ये सब चलता ही रहता है, कैसी इज्जत और किसकी इज्जत?