अपनी बात

अपमान का घूंट पीकर सदन से बाहर निकलते ही झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा स्पीकर का कृत्य राजनीति से प्रेरित, अपमानजनक व लोकतंत्र के लिए घातक

भोजनावकाश के बाद 1932 के खतियान को लेकर स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो ने चर्चा करा दी। चर्चा में सर्वप्रथम मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने भाग लिया। भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी, नीलकंठ सिंह मुंडा, समरीलाल, झामुमो के सुदिव्य सोनू आदि ने भाग लिया। लेकिन आश्चर्य इस बात की रही कि बाबूलाल मरांडी को बोलने तक नहीं दिया गया। जिससे बाबूलाल मरांडी ने स्वयं को अपमानित होता देख सदन से बाहर निकलने में ही बुद्धिमानी समझी और वे बिना कुछ कहे सदन से बाहर निकल गये। सदन से बाहर निकलते वक्त उनके चेहरे पर अपमान की लकीरें साफ दिख रही थी।

आश्चर्य इस बात की भी है कि नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी को जैसे ही बोलने को स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो ने कहा। अमर कुमार बाउरी ने इस मुद्दे पर बाबूलाल मरांडी से बुलवाने को कहा। अमर कुमार बाउरी के बार-बार अनुरोध करने पर स्पीकर ने कहा कि वे उनको (बाबूलाल मरांडी को) भी समय देंगे। फिर क्या था, स्पीकर की बातों पर विश्वास कर अमर कुमार बाउरी ने अपनी बात रखनी शुरु कर दी। इसके बाद नीलकंठ सिंह मुंडा को बोलने दे दिया गया।

इसी बीच बाबूलाल मरांडी आसन को इशारा कर बोलने देने का अनुरोध किया। पर अध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। इसी बीच विधानसभाध्यक्ष ने समरीलाल, नीलकंठ सिंह मुंडा और सुदिव्य सोनू से बुलवा लिया। मतलब सभी को मौके मिलते जा रहे थे। पर बाबूलाल मरांडी का नाम एक बार भी स्पीकर ने नहीं पुकारा। थोड़ी देर बाद प्रदीप यादव के एक बयान पर स्पीकर ने 1932 के मामले का सदा के लिए पटाक्षेप कर दिया। फिर क्या था बाबूलाल मरांडी अपनी कुर्सी से उठे और सदन के बाहर चल दिये।

बाबूलाल मरांडी को सदन में बोलने का नहीं मौका मिलने पर नेता प्रतिपक्ष ने आपत्ति जताई। लेकिन उस आपत्ति का कोई असर स्पीकर पर नहीं पड़ा। इसी बीच बाबूलाल मरांडी सदन से बाहर निकले और मीडिया के समक्ष अपनी पीड़ा बताई। उन्होंने कहा कि स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो का व्यवहार लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं। वे उनके इस व्यवहार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराते हैं।

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि वे संसद में भी रहे हैं। वहां उन्होंने देखा है कि जब कोई सीनियर सांसद किसी भी मुद्दे पर कुछ बोलने के लिए उठते हैं या हाथ उठाते हैं। वैसी हालत में अध्यक्ष उन्हें एक-दो मिनट बोलने का समय देते हैं। उनकी बातों का संज्ञान लेते हैं। लेकिन यहां क्या हो रहा है। मैंने कई बार हाथ उठाया। लेकिन स्पीकर ने मेरी बातों का संज्ञान ही नहीं लिया। हमें बोलने का अवसर ही नहीं दिया। नेता प्रतिपक्ष के साथ-साथ कई लोगों को बोलने का समय दिया। लेकिन मुझे बोलने का समय नहीं दिया। आखिर ये दुर्भावना नहीं तो और क्या है?

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि वे आज मन से काफी दुखी हैं। स्वयं को पीड़ित महसूस कर रहे हैं। भले ही वे मुझे पार्टी की ओर से समय नहीं देते। इसकी मुझे चिन्ता नहीं। लेकिन एक विधायक के तौर पर तो तो दे सकते थे। आखिर मैं भी तो किसी इलाके का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। आज का मामला झारखण्ड की जनता से जुड़ा मामला था। इस मामले में मुझे नहीं बोलने देना, नजरंदाज कर देना, मेरा अपमान नहीं तो और क्या है?