अपनी बात

प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी यह भी बता दें कि वो कौन ऐसी विधा उनके पत्रकार जानते हैं कि जेल में बंद कैदी से वे खास बातचीत कर लेते हैं? भाई थोड़ा शर्म/हया है भी या नहीं कि सब बेच खाये

शर्म करो बेशर्मों, वोटरों को जगाने से ज्यादा अच्छा है कि तुम खुद जग जाओ, झूठी खबरें परोसना बंद करों, पाठकों की आंखों में धूल झोंकना बंद करो। लेकिन तुम ऐसा करोगे, हमें विश्वास नहीं होता, क्योंकि तुम सुधरनेवाले ही नहीं हो। हर जगह तुम्हारी किरकिरी होती है। तुम्हारे ध्येय वाक्य अखबार नहीं आंदोलन की धज्जियां उड़ाई जाती है। लेकिन तुम ऐसे हो कि तुम इस अपमान को भी मान समझकर कठदलिली में लगे रहते हो।

अगर आप एक सामान्य पाठक हैं तो आप कहेंगे कि यह हम ऐसा क्यों लिख रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि इसके कई कारण है। अब जरा देखिये, प्रभात खबर मतदाताओं को जगाने के लिए निकला है। शहर में मतदाता जागरुकता रैली निकाल रहा है। इस रैली में उसके प्रधान संपादक के साथ-साथ उस अखबार में काम कर रहे कई मठाधीश भी शामिल है। रांची के उपायुक्त और अन्य सामाजिक, निजी विश्वविद्यालय तथा अन्य संगठनें भी शामिल है। जिनका काम अखबार के कार्यक्रमों में शामिल होकर अपना चेहरा चमकाना तथा उस अखबार में अपना स्थान पाना है।

हालांकि इन रैलियों से कुछ होता नहीं है। न तो मतदाता जगते हैं और न मतदाता इस प्रकार की रैलियों में रुचि रखते हैं। ये पूर्णतः अखबार और सामाजिक संगठनों की सहजीविता के सिवा दूसरा कुछ नहीं होता, क्योंकि मतदाता जानता है कि इसमें शामिल लोग चालाक लोग है। जो किसी न किसी प्रकार से मतदाता को ही बेवकूफ बनाते है।

राजनीतिक पंडित तो कहते है कि जितना ज्यादा रुचि इस प्रकार के बनावटी कामों में प्रभात खबर में काम करनेवाले लोग और विभिन्न संगठनें ले रही हैं, वे केवल अपना और अपने घरों में ही रहनेवालों का शत प्रतिशत मतदान करवा दें तो बड़ी कृपा हो जायेगी। लेकिन यहां तो फोकसबाजी ही ज्यादा है। ऐसे भी यहां वोट तो 25 मई को होना है, ऐसे में इस वक्त मतदाताओं को जगाने से क्या हो जायेगा।

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि मतदाताओं को वोट देने के लिए जगाने से अच्छा है कि अखबार अपने दायित्वों का निर्वहण ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के साथ करें। लेकिन ये कर क्या रहे हैं। ये अपना सारा काम छोड़कर वो काम करते हैं, जो इन्हें करना ही नहीं चाहिए। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि क्या अखबार का काम विज्ञापन के नाम पर पैसे वसूल कर विज्ञापन देनेवालों को चेहरा चमकाना है। जैसा कि प्रभात खबर ने कृपा शंकर सिंह वाले मामले में किया। ओबीसी एकता अधिकार मंच के अध्यक्ष ब्रह्मदेव प्रसाद वाले मामले में किया।

और आज तो प्रभात खबर ने हद ही कर दी। जेल में बंद कैदी की खबर वो भी ‘खास बातचीत’ में आज छाप दी। सभी जानते है कि गत दस मार्च को बिहार में ईडी ने बालू कारोबारी और लालू यादव के करीबी सुभाष यादव को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। सुभाष यादव अभी भी जेल में बंद है। यही सुभाष यादव 2019 में लोकसभा चुनाव में चतरा से चुनाव भी लड़े और तीसरे स्थान पर रहे। अब सवाल उठता है कि प्रभात खबर के संवाददाता ने जेल में बंद सुभाष यादव से खास बातचीत कब और कैसे कर ली? इसका जवाब पाठकों को कौन देगा?

अगर ये खास बातचीत दस मार्च के पहले यानी सुभाष यादव के जेल जाने के पहले की है, तो ये पाठकों को कौन बतायेगा? या इसके संवाददाता जेल में जाकर बातचीत कर ली तो किस तारीख को कौन से जेल में खास बातचीत की, ये पाठकों को कौन बतायेगा? और जब इसका संवाददाता इतना तेज है कि वो ईडी द्वारा गिरफ्तार जेल में बंद सुभाष यादव का इंटरव्यू तक कर सकता है तो जनता को यह भी जानने का अधिकार है कि वो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का इंटरव्यू कब प्रकाशित करने जा रहा है।

हम तो कहेंगे कि मतदाता जागरुकता रैली निकाल रहे प्रभात खबर और उसमें शामिल सभी संगठनों से एक जागरुक मतदाता को पूछना चाहिए कि ये अखबार कब जगेंगे, ये कब अपने विज्ञापन धर्म को छोड़कर पत्रकारिता धर्म को अपनायेंगे, ये कब उलूल-जुलूल छापकर मतदाताओं को दिग्भ्रमित करना बंद करेंगे। जिस दिन मतदाता ये सब पूछना शुरु कर देगा। अखबारों की मठाधीशी ही नहीं, बल्कि उनके सारे कुकर्म भी बंद हो जायेंगे। हालांकि इस प्रकार के झूठी समाचार को छापने या दिग्भ्रमित करनेवाले समाचारों पर नकेल कसने का काम चुनाव आयोग का भी है। लेकिन यहां चुनाव आयोग कैसे काम करता है, भला किसको मालूम नहीं? इसलिए जनता को खुद जागना होगा।