शर्मनाक, अधिकारियों को बचाने में सदन को नहीं चलने दी सरकार
एक बार फिर विधानसभा का बजट सत्र अपने समय से एक सप्ताह पूर्व ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। इसकी जानकारी सभी को कल ही हो गई थी। कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में ही यह सुनिश्चित हो गया था कि आज सत्र का अवसान हो जायेगा और वहीं हुआ। आज अंतिम दिन कई विभागों के बजट पेश किये गये और उसे विपक्ष की अनुपस्थिति में पारित करा दिया गया।
आज संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय नाराज दीखे, वे विधानसभा पहुंचे जरुर पर बमुश्किल चार मिनट ही सदन में दिखाई दिये और उसके बाद वे अपने कक्ष में ही ज्यादातर समय जमे रहे। उन्होंने कल ही सीएम को अपनी नाराजगी जता दी थी, अपने पद से हटने की इच्छा जाहिर कर दी थी।
आखिर ये जो सदन नहीं चला, इसके लिए दोषी कौन है? अगर सत्तापक्ष से पूछिये तो वह विपक्ष को दोषी ठहरायेगा, और विपक्ष से पूछिये तो वह इसके लिए सत्तापक्ष को दोषी ठहरायेगा। सच्चाई यह है कि पिछले दो सालों से सदन ठीक से नहीं चल पा रहा, और यह हंगामें की भेंट चढ़ जा रहा हैं, पर सत्तापक्ष और स्पीकर ने सदन चले, इसके लिए कभी भी ईमानदार प्रयास नहीं किया। जबकि सभी जानते है कि सदन चलाने की पहली और अंतिम जिम्मेवारी सत्तापक्ष की है, अगर सत्तापक्ष ही संकल्प कर ले कि उसे सदन चलाने में विश्वास नहीं हैं तो फिर वहीं स्थिति होगी जो आज झारखण्ड विधानसभा में दिखी।
आखिर विपक्ष ने मांग ही क्या रखी थी? विपक्ष ने तो सिर्फ यह कहा था, सरकार मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और एडीजी को बर्खास्त करें, आप भले ही इन्हें बर्खास्त नहीं करे, पर सदन में इन पर चर्चा तो करा ही सकते थे, विपक्षी नेताओं को अपना जवाब तो दे सकते थे, पर सत्तापक्ष ने जवाब देने का भी संकल्प नहीं लिया। कई बार कार्यमंत्रणा में सरकार की हठधर्मिता दिखी और स्पीकर सत्तापक्ष का समर्थन करते रहे, यहीं कारण रहा कि कल सोमवार को नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने स्पीकर पर ही गंभीर आरोप लगाया और कहा कि स्पीकर एकतरफा सदन चला रहे हैं।
आज एक बार फिर सदन में जमकर हंगामा हुआ, सीएम बोलते रहे और हंगामा होता रहा। आज तो स्थिति इतनी खराब हो गई कि सत्तापक्ष के ही एक विधायक ने सरकार को स्थानीय नीति और नियोजन नीति पर घेरा और सरकार की बोलती बंद कर दी। सत्तापक्ष के एक विधायक का कहना था कि विधानसभा की एक कमेटी बनाई जाये जो यह तय करे कि स्थानीय नीति किस प्रकार का हो। यहीं नहीं गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में स्थानीयता खत्म कर दिये जाने पर भी सत्तापक्ष के लोगों ने ही सरकार को घेरा, पर सरकार अपने ही विधायकों को संतुष्ट नहीं कर पाई। आज कांग्रेस के इरफान अंसारी और झाविमो के प्रदीप यादव ने मधुपुर में केवल ठेका-पट्टे के लिए बनाये जा रहे अनुपयोगी एवम् अलाभकारी फ्लाई ओवर के निर्माण पर रोक लगाने की मांग को लेकर विधानसभा के मुख्य द्वार पर धरने पर बैठ गये।
राज्य में अगर सरकार चलाना इसी को कहते है तो समझ लीजिये सरकार चल रही हैं, पर जो यहां की स्थिति हैं, वह बेहद नारकीय है। मुख्यमंत्री रघुवर दास के क्रियाकलापों से उनके मंत्री ही नहीं, बल्कि उनके ज्यादातर विधायक नाराज है, पर बोल नहीं पा रहे। कार्यकर्ता तो इन्हें देखना पसन्द नहीं करते। पिछले दो सालों से सदन नहीं चल रहा, यह भी एक रिकार्ड है। एक सप्ताह पहले सदन को जबर्दस्ती अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कराया जाता है, यह भी एक रिकार्ड है। हम सरकार से पूछना चाहते है कि क्या सरकार वित्तीय कार्यों के लिए और सिर्फ बजट पास कराने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाती है, क्योंकि देखने में तो यहीं आ रहा है, क्या सदन सिर्फ इसी के लिए बना है, या चर्चा के लिए बना है और जब चर्चा ही नहीं होगी, बहस ही नहीं होगा, वार्ताएं नहीं होगी तो फिर विधानसभा का क्या मतलब? सरकार का क्या मतलब?
सुंदर लेखनी का परिचय 👏👏👏