जिसके कहने पर RPC के कार्यक्रम में माफिया व धनपशु मंच पर बैठे हैं, उनको अपने उपर थू कर लेना चाहिए
“अपने ही कार्यक्रम में आज सिर शर्म से झुक गया। राँची प्रेस क्लब के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों और सदस्यों के ‘शपथ ग्रहण समारोह’ में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जस्टिस अमरेश्वर सहाय और कतिपय बुद्धिजीवियों के साथ माफिया, अपराधी और धनपशुओं ने भी मंच शेयर किया।
मंगलवार रात को हुई आखिरी बैठक में मंच पर सिर्फ मुख्यमंत्री और जस्टिस सहाय के बैठने की बात तय हुई थी, पर कार्यक्रम शुरू होने के समय सारा शिड्यूल चेंज हो गया। कई अखबारों के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार नीचे थे। जिस अपराधी के खिलाफ हमारे क्राइम रिपोर्टर लगातार लिखते हैं, वे आज उन्हें पुष्प गुच्छ दे रहे थे।
जाहिर है उन्हें मंच पर बिठाने के पीछे बड़ा ‘खेल’ हुआ होगा। आज पत्रकारों के क्लब ने पत्रकारिता की तौहीन की। मुख्यमंत्री और जस्टिस सहाय के साथ हमारे जैसे सैकड़ों पत्रकार अपमानित हुए। यह असहनीय है।“ ये उद्गार है वरिष्ठ पत्रकार व दैनिक भास्कर में कार्यरत हमारे मित्र विनय चतुर्वेदी के, जिन्होंने इसे फेसबुक पर लिखा है।
इनके यह उद्गार लिखने के बाद कई पत्रकारों ने भी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिनमें हम कुछ आपके समक्ष रख रहे हैं। राज सिंह – भैया सहमत है। आपकी बातों से कुछ समय के लिए तो लगा कुछ औकात ही नहीं है हमारी। परवाज ए खान – प्रेस क्लब में दारु मिलेगा, सब्सिडी में उसी का शपथ है, तो उम्मीद क्या पाले हैं। नीतू मिश्रा – जैसा बीज बोया है, फल भी वैसा ही मिलेगा। संजय कृष्ण – यानी दिशा तय हो गई। शाहनवाज अख्तर – सुना है नाश्ता भी लूट पाट हुआ है।
सुशील सिंह मंटु – मैं भी उसी मुद्रा में था, मंच पर जो अनुशासनहीनता दिखी, शर्मनाक थी। राजेश कृष्ण – दुखद, इसकी ही उम्मीद थी। आनन्द दत्ता – शर्मनाक। जिसके कहने पर ऐसे लोग मंच पर बैठे हैं, उनको अपने उपर थू कर लेना चाहिए। ऐसे तो कई रिएक्शन उनके फेसबुक पर मौजूद है, पर संभव नहीं है कि सबको हम यहां स्थान दे दें, पर जहां तक संभव हो सका, जिन्हें मैं जानता हूं, उनको यहां स्थान दिया।
अब पहला सवाल रांची प्रेस क्लब के नव-निर्वाचित पदाधिकारियों से आप यह बताएं कि शपथ कब लिया जाता है, पदभार ग्रहण करने के पूर्व या पदभार ग्रहण करने के बाद, और जब आप या आपके पदाधिकारियों ने पूर्व में पदग्रहण कर लिया, तो फिर इस प्रकार के आयोजन का क्या मतलब? आप कहेंगे कि ऐसा नहीं हुआ है, तो मेरे पास उसका सबूत है और आपके एक अधिकारी ने बड़े ही प्रेम से फेसबुक में उस पदभार ग्रहण करने के मौके का विस्तार से वर्णन भी किया है, जिससे साफ लगता है कि आप सभी ने इस शपथ ग्रहण समारोह का नाटक के सिवा और दूसरा कुछ किया ही नहीं।
अब बात कौन मंच पर होगा या कौन नहीं, इसका फैसला कौन करेगा? एक लोकोक्ति है कि हंसों की सभा में बगूलों का क्या काम? तो जनाब प्रेस क्लब के कार्यक्रम में वह भी तथाकथित शपथ ग्रहण समारोह में, (जैसा कि विनय चतुर्वेदी ने लिखा) माफिया, अपराधी और धनपशुओं का क्या काम? इसका मतलब है कि आप सभी ने इन माफियाओं, अपराधियों और धनपशुओं से किसी न किसी प्रकार का लाभ लिया है, जिसके कारण आपने अपने मंच पर उन्हें स्थान देकर उनका महिमामंडन किया।
आपके इस हरकत पर आनन्द दत्ता जैसे नवोदित पत्रकार का आश्चर्यजनक व बेहद शर्मनाक कमेन्ट्स आया हैं तो वह गलत भी नहीं, शर्म आनी चाहिए आपको। आपने सारे पत्रकार बिरादरी जो सचमुच में पत्रकार हैं, मैं उनकी बात कर रहा हूं, उन्हें आपने कहीं का नहीं छोड़ा, और जो आप हैं, जो आपने पूर्व में परम्परा बनाकर, जिस प्रकार चलने का रास्ता अख्तियार किया है, वो भयानक हैं, निःसंदेह आप इन माफियाओं, अपराधियों व धनपशुओं से आप उपकृत हो जायेंगे, पर याद रखिये सम्मान कही नहीं मिलेगा।
रही बात प्रेस क्लब के चुनाव जीतने की, तो वो तो हमारे यहां लोकसभा, विधानसभा या पंचायत-नगर निगम के चुनाव में कौन और कैसे लोग जीतते हैं, सभी को पता है। रांची प्रेस क्लब के चुनाव में किस प्रकार जातीयता हावी रही हैं और कैसे लोग जीत रहे हैं, उसका क्या परिणाम अब आ रहा है, पत्रकार ही क्या, रांची की जनता भी देख रही है।
अंत में, जब आपने खुले दिल से भाजपा और अन्य दलों के विधायकों, धनपशुओं, माफियाओं व अपराधियों को आमंत्रित किया तो रांची के विधायक सीपी सिंह ने कौन सा पाप किया था? जिन्हें आपने बुलाना ही उचित नहीं समझा, इतनी नफरत सीपी सिंह से क्यों पाल लिये भाई, आप तो इतने उदार है कि माफियाओं, ्अपराधियों व धनपशुओं में भी पत्रकारों के मसीहाओं को देख लेते है, ये बेचारा पूर्व नगर विकास मंत्री और रांची का भाजपा विधायक का तिरस्कार किसने सीखा दिया आपको?
यही सब करने के लिए प्रेस क्लब बना है..