अपनी बात

इस महामारी में नफरत की दुकान खोलकर बैठे नक्सलियों, मोदी-विरोधियों, मीडियाकर्मियों से बचें और देश को भी बचाएं

कोरोना तो बहाना है, असली मकसद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाना, उन्हें पूरे विश्व में नीचा दिखाना, जिसके लिए केवल भारत के विपक्षी दलों, नक्सलियों, मीडियाकर्मियों के समूह ही नहीं, विश्व के ऐसे देश जिनका काम ही भारत का विरोध करना है, उनसे मिलकर भारत में बैठे कुछ देशद्रोही, भारत की साख को तो धूमिल कर ही रहे हैं, भारत की जनता को तिल-तिल मरता देख आह्लादित भी हो रहे हैं, जिसकी जितनी निन्दा की जाय, उतना कम है।

कमाल इस बात की है कि इन दिनों भारत और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इस प्रकार की अफवाहें फैलाई जा रही है, जिससे भारत की जनता मोदी के खिलाफ ऐसा विद्रोह कर दें, जिससे केन्द्र की सरकार धूल-धूसरित हो जाये, चाहे उसके बदले कोरोना पूरे देश की जनता को ही क्यों न निगल लें। जरा देखिये, इसके लिए ये लोग कर क्या रहे हैं? चाहे वे नक्सली हो या भाजपा के घुर विरोधी दल अथवा मीडिया के लोग, ये सुनियोजित तरीके से चौबीसों घंटे मोदी का मान-मर्दन कर रहे हैं, लेकिन वे ये नहीं सोच रहे है कि इसका खामियाजा देश को कितना उठना पड़ रहा हैं, उन्हें तो सिर्फ खुशी इस बात की होती है कि मोदी को कितनी गाली सुनने को मिली।

इन मीडियाकर्मियों को जहां से भी कोई खबर मिलती है, जिसमें मोदी या भारत को नुकसान होता दिख रहा होता है, वे उन खबरों को आजकल प्रमुखता से छाप रहे हैं। उसका उदाहरण भी मैं दे रहा हूं, समझने की कोशिश करिये। भारत ने कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए रॉ मैटिरियल अमरीका से मांगी, अमरीका ने मना कर दिया। इस खबर को मीडिया/सोशल मीडिया के लोगों ने यह कहकर अफवाहें फैलाई कि भारत की विदेश नीति की पोल खुल गई, लेकिन जब इसी अमरीका ने भारत को रॉ मैटेरियल देने की बात कर दी, वह भी यह कहकर कि अमरीका को भारत ने कोरोना संकट में काफी मदद की थी, तब इनकी बोलती ही बंद हो गई।

दैनिक भास्कर ने मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए प्रथम पृष्ठ पर देखिये आज क्या छापा?

जरा देखिये, एक अखबार दैनिक भास्कर ने न्यूयार्क टाइम्स की सहायता से प्रथम पृष्ठ पर क्या छाप दिया, “भारत में कोरोना से मौतों की वास्तविक संख्या पांच गुना अधिक, असल संख्या छिपाने के लिए राज्य सरकारों पर केन्द्र का दबाव” लेकिन इस दैनिक भास्कर ने यह नहीं छापा कि उसने इन मौतों से खुश होकर कल यानी 25 अप्रैल को क्या विज्ञापन छापा, वह भी दस प्रतिशत छूट देकर, यानी इसने मौतों को भी आपदा का अवसर बनाकर, उनसे विज्ञापन लेने का सौदेबाजी शुरु कर दिया। क्या ऐसे अखबारों को इस प्रकार का समाचार छापने का हक है, उदाहरण के लिए दैनिक भास्कर का ये विज्ञापन देखिये, पता लग जायेगा।

इन्हीं मीडियाकर्मियों से पूछिये कि उन पर तो दाग गोदी मीडिया होने का है, तो ये खबर गोदी मीडिया होने के कारण मोदी के खिलाफ तो नहीं छपना चाहिए था, पर छप कैसे गया? दो दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की, तब अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इसका लाइभ कैसे करवा दिया? क्या उस वक्त मोदी विरोधियों को ये बोलते शर्म आ रही थी कि आज से गोदी मीडिया नहीं, गजरीवाल मीडिया हो गया। अरे भारत का मीडिया तो वो मीडिया हैं, जिसे जो चाहे नचाकर चला जाय, अपने गोद में बैठा कर, उसे गर्भवती कर जाय, क्योंकि ये तो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है, जैसा कि दैनिक भास्कर ने मौतों के सौदों के लिए विज्ञापन तक निकाल दिया।

पहले भारत पर संकट आने पर सारे दल एक हो जाया करते थे, आज खुद की गलती होने पर भी केन्द्र को दोषी ठहराते हैं?

देखा गया है कि अब तक स्वतंत्रता के बाद, भारत पर जब भी संकट आया, सारे के सारे विपक्षी दल एक होकर, उस संकट का मुकाबला किये, चाहे अंदरुनी कितने भी झगड़े क्यों न हो। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी तो कई बार कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखा, भारत को सम्मान दिलाया, जब भारत में उनके दल की सरकार भी नहीं थी, पर आज क्या हो रहा है?

कोरोना की जानलेवा दुसरी लहर में नक्सलियों ने भारत बंद कर सिद्ध कर दिया कि वे आला दर्जे के देशद्रोही हैं

नक्सली भारत बंद करा रहे हैं, अब बताओ, इस बंद से इस वक्त किसका लाभ होगा? अगर ट्रेनें बंद हो गई तो जरुरतमंद अस्पतालों में ऑक्सीजन कैसे पहुंचेगा, वह भी तब जब पटरियों को नक्सलियों ने उड़ाने का काम किया हो अगर भारत बंद होगा तो ऑक्सीजन से भरी सामग्रियां समय पर कैसे पहुंचेगी, इससे मोदी का नुकसान हो रहा है, या देश अथवा देश की जनता का। अब पूछो, उन मोदी विरोधियों से किस नेता ने नक्सलियों के भारत बंद का विरोध किया, उत्तर होगा किसी ने भी नहीं, अरे ये करेंगे भी तो कैसे, इनका नक्सलियों से याराना जो हैं।

याद रखियेगा जब पीएम मोदी वैक्सीनेशन पर जोर दे रहे थे तब विपक्षी दलों के कई नेता इस वैक्सीनेशन का मजाक उड़ा रहे थे

जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन पर जोर दे रहे थे, तो यही समाजवादी पार्टी का नेता व उत्तर प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी व कई वामपंथी नेताओं का समूह कोरोना के खिलाफ बन रही वैक्सीन के प्रति अफवाह फैला रहे थे, और आज कोरोना की वैक्सीन के लिए दिमाग लगा रहे हैं। यही कारण रहा कि जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोरोना वैक्सीन को लेकर पत्र लिखा तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन ने उन्हें अपने कांग्रेसी नेताओं को भी ऐसा पत्र लिखने की सलाह दे डाली। यानी ये नेता कब क्या करेंगे, क्या बयान देंगे, कब क्या कर बैठेंगे, इन्हें खुद भी नहीं पता।

ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री PM मोदी की कोरोना मीटिंग से हमेशा गायब रही, जबकि नवीन पटनायक और हेमन्त सोरेन ने अपनी जिम्मेदारी निभाई

इसी देश में एक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री है- ममता बनर्जी, जिसने पीएम मोदी द्वारा कोविड को लेकर जब भी मीटिंग बुलाई गई, इसने कभी उस मीटिंग में भाग ही नहीं लिया, यानी भारत में रहकर भारत के प्रधानमंत्री से इतनी नफरत ये लोग कहां से लेकर आते हैं, कौन इनमें इतना विष भरता है, समझ में नहीं आता, जबकि इसी देश में ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक है, जो न एनडीए से जुड़े हैं और न यूपीए से, पर कोरोना से मुक्ति दिलाने के लिए आजकल जिस प्रकार ये ऑक्सीजन की आपूर्ति अपने राज्य से करवा रहे, ऐसे मुख्यमंत्री की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। दूसरी ओर झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी है, जिन्होंने कभी भी कोरोना को लेकर कोई राजनीति नहीं की, बल्कि केन्द्र के साथ मिलकर कोरोना से अपने राज्यवासियों को मुक्त कराने के लिए दिन-रात एक किये हुए है।

देश के लोगों को चाहिए कि ऐसे लोगों को पहचाने कि कोरोना काल में कौन ऐसा नेता है, कौन ऐसा संगठन है, कौन ऐसा मीडिया है, जो देश हित में काम कर रहा है अथवा देश को नुकसान पहुंचा रहा है। समझने की कोशिश करिये, कि ये महामारी है, जिस किसी की भी सरकार रहती, इस महामारी को संभाल पाना उसके बूते के बाहर है। अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, इटली जैसे विकसित देश कोरोना के कारण तबाह हो गये, भारत की क्या बिसात? फिर भी कम संसाधनों के बावजूद पीएम मोदी ने भारत को जो बचाने का काम किया, अपने लोगों को हौसला बढ़ाने का काम किया। अपने स्वास्थ्यकर्मियों का हौसला बढ़ाने व उनके प्रति लोगों का सम्मान बढ़ाने के लिए जो तालियां बजवाई, घंटिया बजवाई वो भी जरुरी था। लॉकडाउन भी जरुरी था।

ऐसे भी इसे आप इस तरह समझिये। भारत के हर घर में एक या दो ही शौचालय होता है, ऐसे में ये शौचालय हमेशा घर के लिए इतनी संख्या में उचित हैं, पर अचानक उसी घर में पचास की संख्या में लोग आने लगे, तो वे शौचालय सभी को समय पर उपलब्ध नहीं होंगी। इसीलिए किसी भी राज्य में अस्पतालों की भी एक निश्चित संख्या होती है, ऐसे में अगर महामारी हो जाये और लाखों की संख्या में लोग प्रभावित होने लगेंगे तो लाजिमी है, ये अस्पताल कम पड़ जायेंगे, और स्थिति भयावह होगी। सबके लिए बेड तो दूर, अस्पताल भी कम पड़ जायेंगे।

लेकिन इसी बीच हम विधवा प्रलाप, रोना-धोना छोड़कर, किसी पर दोषारोपण बंद कर, ईमानदारी से जो समस्या आई है, उसको केन्द्र में रखकर मुकाबला करना शुरु कर दें, तो ये समस्या ही नहीं दिखेंगी, लेकिन आज हम कर क्या रहे हैं, आपदा में अवसर ढूंढ रहे हैं, माल बनाने में लगे हैं, पीएम मोदी को दोष दे रहे हैं, खुद को ईमानदार घोषित करने में लगे हैं, ये ढिठई/बेशर्मी नहीं तो और क्या है?