अपनी बात

जगदगुरु शंकराचार्य पर कुछ भी अल-बल बकने से बचिये, ये न तो सनातन धर्म के लिए ठीक है और न ही भारतवर्ष के लिए

मैं देख रहा हूं कि आजकल जैसे-जैसे 22 जनवरी का दिन निकट आता जा रहा है। जगदगुरु शंकराचार्य पर सोशल साइट पर अल-बल लिखनेवालों और बोलनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। ये अल-बल लिखने-बोलनेवाले वे लोग हैं, जो ठीक से एक वाक्य क्या एक शब्द भी नहीं बोल सकते, लेकिन देख रहा हूं कि स्वयं को महान पंडित घोषित कर, शंकराचार्य को अनाप-शनाप बोले जा रहे हैं और इसी चक्कर में उन्हें ये नहीं पता कि वे अपना कितना अहित किये जा रहे हैं।

शंकराचार्य के खिलाफ की गई टिप्पणी अक्षम्य अपराध है। उनकी विद्वता, उनकी योग्यता पर सवाल खड़े करना अपनी मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर है। मैं देख रहा हूं कि एक अखबार ने पिछले दिनों द्वारका पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द जी के खिलाफ झूठी खबरें छाप दी और जब द्वारका पीठ के शंकराचार्य ने जब उक्त अखबार के पत्रकार का क्लास लेना शुरु किया तो संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित सारे अखबार उक्त पत्रकार के पक्ष में गोलबंद होने लगे। उस पत्रकार की गोलबंदी के बावजूद भी जिस प्रकार से द्वारकापीठ के शंकराचार्य ने अपनी बातें जोरदार ढंग से रखी हैं। उसकी प्रशंसा करनी ही होगी। आप पत्रकार हो गये तो कुछ भी किसी के बारे में छाप देंगे।

इधर देखा जा रहा है कि जब से अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मंदिर में भगवान के विग्रह को प्राण-प्रतिष्ठा करने तथा मंदिर के उद्घाटन की बात आई है, और इस तिथि को लेकर जब से शंकराचार्यों ने अंगूलियां उठाई हैं। कुछ लोग बैठे-बैठाएं स्वयं ही शंकराचार्य बन गये और जो सही में शंकराचार्य है, उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी योग्यता देखी हैं। अपना आचरण और चरित्र देखा है। आप किसी जिंदगी में शंकराचार्य के आस-पास भी भटकने की ताकत रखते हैं और जब नहीं रखते तो फिर आपको ये कैसे अधिकार मिल गया कि आप शंकराचार्य के खिलाफ आग उगलने लगे। इतनी दुस्साहस जिनके लिए आप दिखा रहे हैं, उतनी दुस्साहस करने की ताकत तो उनमें भी नहीं। तो फिर आप क्यों आग-बबूला हो रहे हैं।

ठीक हैं। शंकराचार्य की बातें, आपको अच्छी नहीं लग रही। आपने जो ठान लिया है। वे करके ही रहेंगे। लोगों का सहयोग भी आपको मिल ही रहा है। फिर भी शंकराचार्य को आप क्यों निशाने पर ले रहे हैं। उन्हें बोलने दीजिये। आप अपना काम करते रहिये। लेकिन वो गलत को गलत भी नहीं कहें। ऐसा कहने और करने का अधिकार आप सभी को कैसे मिल गया? दुनिया में ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं, जो अपनी आवश्यकता के अनुरुप ही गृह प्रवेश या कोई संस्कार करवाते हैं। अगर उनके अनुकूल नहीं हुआ तो पंडितों से अपने अनुकूल पंचागापेक्षित निर्णय करवाते ही हैं। आप भी करा ही रहे हैं तो दिक्कत क्या है?

शंकराचार्य हाथ पकड़कर रोक तो नहीं रहे। वे आपके कार्यों में बाधाएं तो नहीं डाल रहे हैं। ऐसा तो नहीं कि उन्होंने अपने लोगों को ये आहवान कर दिया हो कि आप लोग सभी अयोध्या चले और 22 जनवरी के कार्यक्रम में बाधा डालें। जब ऐसा नहीं हैं तो फिर शंकराचार्य पर इतने घिनौने शब्दों की बौछार क्यों? अरे भाई पीड़ा होती है। अंत में, जान लीजिये कि आपको अपने धर्म के मूल स्वरुप की रक्षा के लिए शंकराचार्यों के पास ही आना होगा। आपको उस वक्त कोई राजनीतिक दल नहीं बचा पायेगा। राजनीतिक दल की शुरुआत और अंत राजनीति से ही शुरु होती हैं और राजनीति पर ही खत्म हो जाती है।

इसलिए शंकराचार्य का सम्मान करना सीखें और उनके खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि ये आपके ही पाप में वृद्धि का कारण बनेगा और इस पाप से आप ही समूल नष्ट हो जायेंगे। हमें याद है कि दक्षिण के एक राज्य में एक महिला मुख्यमंत्री के शासनकाल के दौरान उस वक्त के शंकराचार्य पर जमकर अत्याचार किया गया। उन्हें जेल में डाला गया। उस घटना से उस वक्त के एक केन्द्रीय मंत्री जो बाद में राष्ट्रपति भी बने, बड़ी दुखी हुए थे। (संयोग कहिये वे आज इस दुनिया में नहीं हैं, अगर वे आज होते तो, निश्चय ही शंकराचार्य पर हो रही आजकल की टिप्पणियों से बहुत दुखी होते।)

आप कहेंगे कि उस घटना से क्या हुआ? उस घटना से यही हुआ कि उस पाप से वो दोनों पार्टियां ही बिलाने के कगार पर पहुंच गई। अब इससे ज्यादा मैं क्या कहूं? श्रीराम तो सबके प्रिय है। जितने आपको, उतने मुझे भी और उतने ही शंकराचार्यों को। हमलोग अज्ञानी है, पर विद्वता में शंकराचार्य से कोई टक्कर ले ही नहीं सकता। वे सनातन धर्म के सिरमौर है। वे आदिगुरु शंकर द्वारा बनाये गये पीठों के पीठाधीश्वर है। उन्हें चुनौती देना, सीधे आदिगुरु शंकर को चुनौती देने के बराबर है।

आप यह भी जान लीजिये कि जिस प्रकार भगवान शंकर राम को भजते हैं, ठीक उसी प्रकार भगवान राम भी अपने हृदय में शंकर को धारण करते हैं। दक्षिण में तो दोनों एक दूसरे के नाम से जाने जाते हैं। नाम आपने सुना होगा, एक जगह का नाम भी है – रामेश्वरम्। इसलिए कही ऐसा नहीं कि जिस भगवान राम के विग्रह को आप प्रतिष्ठापित कर रहे हैं। वे भगवान अपने शंकर के अंश के अपमान से नाराज हो जाये। अगर ये नाराज हो गये तो आप जानते ही हैं क्या होगा? इसलिए यह वक्त किसी को नाराज करने का नहीं। भगवान राम सभी के हैं। सभी चाहे वो राम के नाम पर क्रुद्ध हो या राम के नाम पर शांत, वे सभी का उद्धार करेंगे। यह मानकर काम करेंगे तो ही सभी का कल्याण होगा।