बाबू लाल मरांडी मतलब उधार का नेता, उधार का नेता मतलब झारखण्ड में हेमन्त सोरेन और मजबूत
हेमन्त सोरेन ने विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत क्या दिखाई। भारतीय जनता पार्टी की सारी हवाई किला ही ध्वस्त हो गई। कल तक जो एक बार फिर रघुवर सरकार, घर-घर रघुवर का जो नारा दिलवाते थे। वे भी साफ हो गये। हेमन्त की आंधी ने तो भाजपा को इस कदर बर्बाद किया, कि भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो हेमन्त के सामने खड़ा भी हो सके और ये स्थिति खुद भाजपा ने ही बनाई है।
क्योंकि पंचम विधानसभा का त्रिदिवसीय प्रथम सत्र संपन्न हो गया। विधानसभा में मुख्यमंत्री के रुप में हेमन्त सोरेन थे, पर नेता प्रतिपक्ष कही नहीं दिखा, ऐसा भी नहीं कि भाजपा में नेता का अभाव है। अगर सीपी सिंह या नीलकंठ सिंह मुंडा में से किसी को भी ये पद दे दिया जाये, तो वे बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, पर दिल्ली व रांची में बैठे भाजपा नेताओं को इन पर भरोसा नहीं। वे नेता प्रतिपक्ष आयात करने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं।
बाजार में तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही हैं, और ये अफवाहें ऐसे ही नहीं उड़ रही, भाजपाइयों ने खुद इसे उड़वाया है, ताकि इसका नफा-नुकसान पहले ही पता चल जाये, पर सच्चाई यह है कि बाबूलाल मरांडी नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए ये सब करते हैं तो विद्रोही24.कॉम का मानना है कि आनेवाले समय में उन्हें उधार का नेता ही कहा जायेगा, और इसका प्रतिफल यह होगा कि उसी दिन यह भी क्लियर हो जायेगा कि हेमन्त सोरेन झारखण्ड में और मजबूत हो जायेंगे, पर ये तभी संभव होगा कि हेमन्त सोरेन को जाम्बवन्त जैसा सलाहकार प्राप्त हो, क्योंकि भाजपा के तिकड़म को खत्म करने के लिए, उन्हें एक जाम्बवन्त की जरुरत है, जो उन्हें और बेहतर ढंग से जनता के बीच ताकतवर बना दें।
फिलहाल कहा जा रहा है कि बाबू लाल मरांडी विदेश दौरे पर हैं, जैसे ही विदेश दौरे से लौटेंगे, वे खरमास समाप्ति के बाद हिन्दुत्व का नारा बुलंद करेंगे, भाजपा में शामिल हो जायेंगे अर्थात् वे बाबू लाल जिन्होंने कल तक कसमें खाई थी कि उनका अब भाजपा से सदा के लिए नाता टूट गया, वे अमित शाह और नरेन्द्र मोदी का जप करेंगे। ये वहीं बाबू लाल मरांडी है, जैसे ही नीतीश कुमार भाजपा के गोद में बैठकर बिहार में शासन करने लगे, तो नीतीश कुमार तक से दूरियां बना ली, अब फिर उनका भाजपा प्रेम जाग चुका है।
शायद उन्हें लग रहा है कि जब से उन्होंने भाजपा छोड़ा हैं, उनकी कुल कमाई अब तक तीन विधायक ही हैं, इससे ज्यादा अगर बढ़ भी रहे हैं तो उनके विधायक उछलकर सीधे भाजपा में शामिल हो जाते है, वर्तमान की जो स्थिति हैं, उसमें एक का तो कांग्रेस में जाना कन्फर्म हैं, और दूसरे उधेड़बून में हैं, क्योंकि दूसरे को कोई घास नहीं डाल रहा।
एक बात मैं और स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि झारखण्ड का ये दुर्भाग्य रहा है कि झारखण्ड में ज्यादातर नेता ऐसे ही हुए, जिन्होंने राज्य को ठेंगे पर रखा और अपने कैरियर तथा परिवार को महत्व देते हुए, हर हाल में भाजपा या कांग्रेस की परिक्रमा करने में ही समय बिताया, जिसका परिणाम हुआ, कि उस नेता ने अपनी कैरियर और राज्य दोनों को तबाह कर दिया। यकीन मानिये, यही हाल बाबूलाल मरांडी का होने जा रहा है, ये जो सोच रहे है कि भाजपा में शामिल हो जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष बनकर तहलका मचा देंगे, तो ये संभव नहीं। क्योंकि उनके सामने एक युवा नेता हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री पद पर विद्यमान है, जो हमेशा उन्हें (बाबू लाल मरांडी को) सम्मान दिया, साथ ही बाबू लाल मरांडी शायद ही विधानसभा या दूसरे मंचों पर उनसे आंख से आंख मिलाकर बातें कर पायेंगे।
एक सवाल और जब बाबू लाल मरांडी भाजपा में चले जायेंगे और नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे तो वे किस मुंह से जनता के बीच जायेंगे। जब जनता पूछेगी कि आपकी पार्टी के पूर्व विधायक जो भाजपा में गये थे, उनके खिलाफ आप विधानसभाध्यक्ष के पास क्यों गये, उनकी सदस्यता समाप्त कराने के लिए क्यों जोर लगाया, जब आप वर्तमान में भाजपाई बनने के लिए इतने उत्सुक थे, शायद बाबू लाल मरांडी इस सवाल का जवाब दे भी दें, पर अपनी आत्मा को क्या कहेंगे, क्या उससे भी झूठ बोलेंगे?
इसमें कोई दो मत नहीं कि जिन्होंने बाबू लाल मरांडी का मुख्यमंत्रित्व काल देखा हैं और जो उनके बाद में मुख्यमंत्री हुए, उनसे उनकी तुलना कभी नहीं की जा सकती, पर यह भी सच है कि ये सारा यश खुद वे मिट्टी में मिलायेंगे, जब भाजपा का दामन थामेंगे। हालांकि अभी-अभी झाविमो के केन्द्रीय महासचिव अभय सिंह का बयान आया है कि बाबू लाल मरांडी सौदेबाजी की राजनीति नहीं करते। वे राज्य या राष्ट्रहित में जो भी फैसला लेंगे, पूरी पार्टी की केन्द्रीय कार्यसमिति उनके साथ खड़ी है। कहने का मतलब, जब तक भाजपा में बाबू लाल मरांडी शामिल नहीं हो जाते, तब तक गफलत में रहिये।
अंततः कहने को तो लोग आज भी कह रहे है कि भाजपा के लोगों ने ही बाबू लाल मरांडी को कहा था कि वे अपनी पार्टी को झारखण्ड की सभी सीटों से चुनाव लड़वाये, ताकि महागठबंधन में वोटों का बिखराव हो, और भाजपा को जीत का फायदा मिले, पर हुआ यहां उलटा। झाविमो तीन सीटों पर सिमट गई। ये सारी सीटें झाविमो की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत है, पर 16 जनवरी के बाद अगर बाबू लाल मरांडी ने भाजपा का दामन पकड़ा तो इस बात की भी पुष्टि हो जायेगी कि भाजपाइयों ने चुनाव पूर्व हेमन्त सोरेन और महागठबंधन को रोकने के लिए अजब-गजब फार्मूले तैयार किये थे। फिलहाल 16 जनवरी का इंतजार कीजिये, आज सुना है कि बाबू लाल मरांडी का जन्मदिन है, जमकर उन्हें मुबारकबाद दीजिये, क्या पता बाबू लाल मरांडी आनेवाले समय में क्या गुल खिला दें?