बाबू लाल मरांडी इस कविता के भाव को समझिये, अचल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में…
“अरे देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी-बारी, मतलब की दुनिया है सारी, बिछड़े सभी बारी-बारी” 1959 में बनी “कागज के फूल” का यह गीत, जिसे कैफी आजमी ने लिखा, मो. रफी ने गाया, धुन सचिन देव बर्मन ने बनाई। आज झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री एवं झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी पर खूब फिट बैठता है, इन्होंने जिस–जिस पर ज्यादा विश्वास किया, उसी ने इनके पीठ पर छूरा घोपने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसकी कोई औकात नहीं थी, उसे खड़ा किया और वह भी राजनैतिक हैसियत प्राप्त होने के बाद, अपनी औकात को बड़ा बनाने के चक्कर में बाबू लाल मरांडी को धोखा दिया और अब तो प्यादे टाइप के नेता, जिनकी कोई औकात ही नहीं, वे भी बाबू लाल मरांडी को ठेंगे दिखा रहे हैं, और उनकी पार्टी से मुंह मोड़ ले रहे हैं।
जब बाबू लाल मरांडी झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सर्वाधिक विश्वास झामुमो से दल–बदल कर आये अर्जुन मुंडा पर किया, जब 2003 में उनकी सरकार पर गाज गिरी, जब वे मुख्यमंत्री पद से हटे, तब उन्होंने ही मुख्यमंत्री के लिए अर्जुन मुंडा का नाम आगे किया और जब मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा बने तो बाबू लाल मरांडी को भाजपा में कमजोर करने के लिए एवं उन्हें खलनायक बनाकर पेश करने में जबर्दस्त लॉबिंग की, यहीं नहीं उनके पीए को भी इस प्रकार से हटाया गया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, हालांकि जब मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी हटे थे, तभी बाबू लाल मरांडी के पीए को तत्काल वहां से दूरी बना लेनी चाहिए थी, पर होना तो कुछ और था।
धीरे–धीरे जितने अर्जुन मुंडा भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं से अपना पी–आर मजबूर कर रहे थे, बाबू लाल मरांडी उतने ही पार्टी से दूर चले जा रहे थे, अपनी पार्टी में लगातार उपेक्षा होते देख, उन्होंने भाजपा से दूरी बनाई और 2006 में नई पार्टी झारखण्ड विकास मोर्चा बनाई, जिसमें भाजपा के दीपक प्रकाश, संजय सेठ, रवीन्द्र राय के साथ–साथ झामुमो के भी कई शीर्षस्थ नेता भी जुड़े लेकिन धीरे–धीरे भाजपा के दीपक प्रकाश, संजय सेठ और रवीन्द्र राय फिर से भाजपा में आये और अपनी साख बना ली।
लेकिन जिस प्रकार से रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उनके छह विधायकों को प्रलोभन देकर, तोड़ा गया, उन्हें मंत्री बनाया गया, और अब तो धीरे–धीरे कई झाविमो के नेता और कार्यकर्ताओं ने भाजपा का दामन थामा, उससे लगता है कि अब बाबू लाल की पार्टी में केवल बाबू लाल ही रह गये, बाकी कोई है ही नहीं, पर जो राजनीतिक पंडित है, उनका कहना है कि बाबू लाल मरांडी की सबसे बड़ी कमजोरी है, उनका सभी पर विश्वास कर लेना। ऐसे भी राजनीति की सबसे बड़ी कमजोरी यहीं है, जो बाबू लाल को ले डूब रही है।
यहीं नहीं उनके जो राजनीतिक सलाहकार हैं, वे भी उचित सलाह नहीं देते, बल्कि वे बाबू लाल मरांडी के राजनीतिक कद का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते है, जिसका फायदा उन्होंने एक नहीं अनेक बार उठाया, और फायदे उठाते भी जा रहे हैं, ऐसे भी जब कोई राजनीतिक व्यक्ति खुद ही अपनी लूटिया डूबाने में मशगूल हो, तो उसे किया ही क्या जा सकता है, ऐसे भी तीन–चार महीने बाद झारखण्ड में विधानसभा चुनाव होने है, ऐसे में जबकि आपके पार्टी से जीते लोग भाजपा में जा चुके है और जो बचे–खुचे टूटपूंजिये टाइप के नेता थे, वे भी भाजपा में जाकर अपना स्थान बनाने के लिए लग गये हैं, ऐसे में आप महागठबंधन बनने के बाद किस आधार पर सीटें मांगेंगे, इसलिए कि आप पूर्व में आठ सीटें जीती थी, ये तो आधार नहीं बन सकता।
इसमें कोई दो मत नहीं कि बाबू लाल मरांडी में अभी भी राजनीतिक ताकत इतनी भरी पड़ी है, कि वे अपनी राजनीतिक हैसियत के आधार पर भाजपा को चुनौती दे सकते है, क्योंकि वे भाजपा और उनके सहयोगी संगठनों की राजनीतिक पृष्ठभूमि को अच्छी तरह जानते हैं।राजनीतिक पंडितों की माने, तो बाबू लाल मरांडी वो नेता है, जो शून्य से शिखर पर पहुंच सकते है, पर इसके लिए जरुरी है कि वे उनके तथा उनकी पार्टी के साथ घटित घटनाओं के संकेत को समझे।
कभी–कभी प्रकृति भी कुछ संदेश देती है, और जो उस संदेश को समझ लेता है, वह बहुत आगे निकल जाता है, प्रकृति ने उन पर ये कृपा किया है कि उन्हें किसी को निकालने की जरुरत नहीं पड़ी, वे खुद निकल गये और वहां जाकर गिरे हैं, जहां गिरनेवालों की तादाद अभी और बढ़ेंगी, इसका मतलब है कि जो जायेंगे वे त्याग की प्रतिमूर्ति बनने के लिए तो गये ही नहीं, वे कुछ वहां चाहेंगे और जब उन्हें वहां नहीं मिलेगा तो फिर अंगूर उनके खट्टे होंगे, ऐसे हालात में बाबू लाल मरांडी को चाहिए कि ऐसे लोगों के लिए झाविमो का गेट सदा के लिए बंद कर दे और अपने पार्टी कार्यालय के सामने उनके लिए नो इंट्री का बोर्ड लगा दें।
जहां तक झारखण्ड में वर्तमान राजनीतिक स्थिति हैं, वह भाजपा के लिए सुखद नहीं हैं, जो भी दल–बदलकर अभी भाजपा की ओर मुखातिब है, उनकी कुछ मजबूरियां है, वे उस मजबूरियों के तहत गये हैं, कुछ को प्रलोभन भी मिला है तो कुछ को भय भी दिखाया गया है, इसलिए ऐसे लोग आनेवाले समय में झाविमो के लिए ही कब्र खोद देते।
इसलिए जनता की अभी पहली पसंद भाजपा नहीं, बल्कि वो पार्टियां है, जो भाजपा को शिकस्त देने की स्थिति में है, जाहिर है, इसमें भाजपा को छोड़ वो सारी पार्टियां है, जो भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रही है, इसलिए बाबू लाल मरांडी को चाहिए कि अगर और भी कोई उनके पार्टी का व्यक्ति भाजपा में जाकर अपना वजूद तलाशने की कोशिश कर रहा है, तो उसे प्रोत्साहित करें कि जल्द जाये और फिर नये सिरे से पार्टी को खड़ा करें।
क्योंकि राजनीति में नेता तभी मरता है, जब वह जनता का विश्वास खो देता है, वो नहीं मरता या वो पार्टी नहीं मरती, जिसके यहां से नेताओं का दल इधऱ से उधर चला जाता है, बल्कि इधर से उधर जानेवाला ही अंततः अपना वजूद खो देता है, जरा उदाहरण देखिये, डा. अजय कुमार कंघी लेकर झाविमो पार्टी से जमशेदपुर से सांसद बने, फिर झाविमो को ठेंगा दिखाया, कांग्रेस में चले गये, आज उनकी कांग्रेस और उनकी पार्टी का प्रदेश में क्या हाल है?
इसलिए बाबू लाल मरांडी को चाहिए, खुद को बुलंद करें, खुद को आगे बढ़ाए, नये युवाओं को प्रोत्साहित करें, नये लोगों को राजनीति के गुण सिखाएं, और जब तक ये कविता हमेशा याद रखेंगे, उन्हें और उनकी पार्टी को कोई ताकत नीचा नहीं दिखा सकती, कविता के बोल है – अचल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में, मिली सफलता जग में उसको, जीने में मर जाने में।
Aap bhut hi achha likhte hai bhaiya
Bhaiya pranam aapka shubhchintak
Rohit Bharti giridih tisri