बाबूलाल ने भाजपाइयों को आलू की टिकिया, भुंजिया, चोखा, सब्जी के स्वाद तथा सलाद परोसने के गुणों को समझाया तथा दीपक प्रकाश के समय के अधिकारियों को कहा डरें नहीं, डटे रहिये
एक लोकोक्ति है कि ‘अंत भला तो सब भला’, पर ये क्या जो आज के मैन ऑफ द मैच है, जो आज के बारात के दुल्हा है, जो आज से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालने जा रहे है, हां जी, हम बात कर रहे हैं, झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की। जिनके लिये आज स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया था। आज बाबूलाल मरांडी के भाषण के अंत में उनका माइक ही जवाब दे गया।
माइक की बत्ती ही गुल हो गई। बेचारे चार मिनट 28 मिनट तक माइक के ठीक होने का इंतजार करने में लगा दिये। जब उन्हें माइक ठीक होने की कोई स्थिति दिखाई नहीं दी, तो उन्होंने अंत में यह कहकर अपना भाषण समाप्त किया कि पार्टी के जो पुराने पदाधिकारी हैं, वे अपना काम करते रहे, अपने दायित्वों का निर्वहण करते रहे।
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि अपने यहां सामूहिक निर्णय लिये जाते हैं, इसलिए जब तक नई रचना नहीं हो जाती, वे अपने पद पर बने रहे। बाबूलाल मरांडी का ये बयान सुनते ही मंच पर बैठे दीपक प्रकाश के समय के बने पूर्व पदाधिकारियों के दिलों में ठंडक पहुंची, वे हर्षित दिखे। कई तो मन ही मन माइक की खराबी को दिल से धन्यवाद भी दिया।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो उनका कहना था कि ये माइक भी गजब है। कर्मवीर सिंह, अन्नपूर्णा देवी, समीर उरांव, दीपक प्रकाश के भाषण के समय तो माइक टाइट रहा, पर नये प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के समय दांत निपोड़ दिया, और जैसे ही फिर लक्ष्मीकांत वाजपेयी का नाम पुकारा गया, माइक ठीक हो गया। मतलब है न आश्चर्य। धन्य है वो माइक वाला, जिसने बड़ी मेहनत कर, ऐसे माइक को इजाद किया कि वक्त आने पर ठीक भी जल्द हो जाये और वक्त आने पर माइक जल्द दांत भी निपोड़ दें।
अब बात काम की। बाबूलाल मरांडी ने अपने भाषण के क्रम में बूथ को मजबूत करने की बात की। ये कोई नई बात नहीं। सच्चाई यह है कि जो भी पार्टी अपने बूथों को मजबूत करती हैं, वही जीत भी हासिल करती है, पर ये तब होता है, जब पार्टी में एकता होती है, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं होती, सभी में प्रेम होता है।
बात भले स्नेह की हो या नहीं, कार्यक्रम का नाम स्नेह मिलन हो या न हो, वहां घृणा का कोई स्थान न हो, पर जहां मुख्य वक्ता के माइक को ही खराब करने की परिकल्पना हो, उन्हें अपनी बात नहीं रखने का दिमाग लगाया जाता हो, तो समझ लीजिये कि उस पार्टी के अंदरुनी क्या हालात है? मैं फिर कहता हूं कि भाजपा में ऐसी परिपाटी जब तक रहेगी, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की सत्ता को कोई चुनौती नहीं दे सकता।
बाबूलाल मरांडी को एक बात की दाद देनी होगी। उन्हें आलू और सलाद पर अच्छी पकड़ है। उन्हें यह भी पता है कि सलाद को कैसे परोसा जाय, तो लोग सलाद जमकर खाते हैं और कैसे रखा जाता है तो लोग उसे देखना भी पसंद नहीं करते। उन्हें आलू की टिक्की, आलू का चोखा, आलू का भुंजिया और आलू की सब्जी के स्वाद पर भी अच्छी पकड़ हैं तभी तो उन्होंने स्नेह मिलन में आये पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को इसकी विशेषता बताते हुए, जनता को जोड़ने का प्लान बता दिया। सचमुच हमें पता ही नहीं था कि आलू भी एक बहुत बड़ी चीज है।
इधर दीपक प्रकाश भी आज खूब बोले। उन्हें वो ईंट याद आई, जिस ईंट को कभी तकिया बनाकर बाबू लाल मराडी और वे साथ-साथ सोया करते थे। उन्हें वो भी याद आया कि वे कैसे पार्टी कार्यालय में झाड़ू बुहारा करते थे। उन्होंने ये बात खुद कही, पर उन्होंने वो डेट नहीं बताया कि वो तिथि वो समय कब का था, जैसे उन्होंने यह कहा कि वे कितने वर्षों और कितने महीने तक प्रदेश अध्यक्ष पद पर जमे रहे।
दीपक प्रकाश ने ये भी बताया कि कैसे विधानसभा और सचिवालय घेराव के आंदोलन को उन्होंने चलाया, पर उन्होंने ये नहीं बताया कि वो कौन सी तकनीक थी, जिसमें प्राथमिकी दर्ज करने की बात प्रशासन की ओर से होती थी, तो उस प्राथमिकी में अन्य भाजपा कार्यकर्ता व नेताओं का नाम तो होता था, पर उनका नाम गायब हो जाता था। सचमुच धन्य है भाजपा और धन्य है भाजपा के नेता। वे कितने मासूम होते हैं। वे कितने अपने आपको ईमानदार जनता के सामने शो करते हैं।
काश, राज्य की जनता और वो बेकार युवाओं के पास भी ऐसी तकनीक होती, कि जैसे ईंट को तकिया बनाकर सोनेवाले दीपक प्रकाश और बाबूलाल मरांडी आज नर्म तकिया लेकर सोते हैं, वैसी ही तकिया कम से कम राज्य की जनता और बेकार युवाओं को भी नसीब हो। हमें लगता है कि इनके पास जरुर ‘अलादीन का चिराग’ आ गया होगा, तभी तो ये लोग इस स्थिति में आ गये होंगे कि अब ईंट की तकिया की जरुरत ही नहीं पड़ती होगी।