बाबूलाल मरांडी सिर्फ नाम के प्रदेश अध्यक्ष, असली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तो कर्मवीर सिंह है, तभी तो प्रदेश मुख्यालय में सभी कर्मवीर को खोजते व उनकी परिक्रमा करने में रुचि दिखाते हैं
भले ही भाजपा के लोग ढोल पीट-पीटकर फाड़ दें। गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाएं और कहें कि उनके प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी हैं। पर सच्चाई यही है कि भाजपा के असली प्रदेश अध्यक्ष कर्मवीर सिंह है और संगठन मंत्री का काम बाबूलाल मरांडी संभाल रहे हैं। नहीं तो, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को बने छः महीने बीतने को आये, भाजपा के बड़े नेता या केन्द्रस्तरीय नेता या बाबूलाल मरांडी ही बताएं कि उन्होंने अपनी टीम अब तक क्यों नहीं बनाई?
आखिर वे दीपक प्रकाश की टीम को लेकर अब तक क्यों ढो रहे हैं, जब दीपक प्रकाश की टीम से ही भाजपा को काम लेना था तो फिर दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की जरुरत ही क्या थी? राजनीतिक पंडितों का कहना है कि दरअसल छः महीने बीत चुके पर अभी तक बाबूलाल मरांडी को खूले तौर पर काम करने की छूट नहीं मिली है।
बाबूलाल मरांडी भले ही कभी संकल्प यात्रा तो कभी आदिवासी अधिकार रैली निकाल लें, लेकिन लगता है कि अभी तक भाजपा के तथाकथित बड़े लोग उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाये हैं। राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि भाजपा तो बार-बार हेमन्त सरकार को यह कहकर कोसती थी कि हेमन्त सरकार बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में विरोधी दल का नेता नहीं बनने देने के लिए तरह-तरह के अड़ंगे डाल रही है।
लेकिन भाजपा के नेता ही अब बताएं कि बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बने हुए, छः माह बीतने को आए, आखिर उन्हें अपनी टीम बनाने क्यों नहीं दिया जा रहा? आज भी जिसे देखिये, जैसे ही भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुंचता हैं, वो बाबूलाल मरांडी को कम, लेकिन संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह को ज्यादा खोजता है, वह कर्मवीर सिंह की परिक्रमा करने में ज्यादा रुचि लेता हैं, शायद उसे पता है कि जब तक कर्मवीर सिंह झारखण्ड में हैं, उसकी राजनीतिक नैया भाजपा में कर्मवीर सिंह ही पार लगायेगे, न कि बाबूलाल मरांडी।
पूर्व में देखा जाता था कि जो भाजपा में संगठन मंत्री होते थे, वे सिर्फ संगठन में रुचि लेते थे, संगठन कैसे मजबूत हो, इस पर ध्यान देते थे। पर इधर भाजपा के संगठन मंत्रियों में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। वे स्वयं को ज्यादा प्रभावशाली बनाने/दिखाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। तभी तो आजकल मीडिया में आने की भी उन्हें ज्यादा रुचि रहती हैं। पूर्व में ऐसा नहीं देखने को मिलता था।
आज तो संगठन मंत्री मीडिया को बयान भी देते हैं, मंच पर भी बैठते हैं, कार्यक्रम में नेतृत्व भी संभालते हैं, जबकि सच देखा जाये तो पूर्व में भाजपा के संगठन मंत्री पर्दे के पीछे से काम करते थे। पूर्व के कार्यकर्ता बताते हैं कि पहले के संगठन मंत्री फोटो खिचाने, अपना वीडियो बनवाने में रुचि नहीं दिखाते थे, अगर किसी ने बनाने की कोशिश की, तो डांट देते थे।
मीडिया को भी कहते थे कि उनका नाम या फोटो नहीं दिया जाये, पर अब तो संगठन मंत्री स्वयं नेता बनकर अपना नाम व चेहरा चमकाने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं, क्योंकि अब संगठन मंत्री को भी चुनाव लड़ने का मन धीरे-धीरे ही सही पर करने लगा है। यही कारण है कि आज तो स्थिति यह हो गई कि अब तो बिना संगठन मंत्री के पटाखे भी नहीं फूटते और न अबीर-गुलाल चलता है।
इधर देखने में तो यह भी आ रहा है कि संगठन मंत्री यह भी डिसाइड करने लगा है कि भाजपा की ओर से मीडिया के लिए बनी व्हाट्स्एप्प ग्रुप में कौन पत्रकार रहेगा और कौन पत्रकार नहीं रहेगा, जो भी पत्रकार उन्हें आइना दिखाने का काम करता है, वो मीडिया प्रभारी से कहकर, उस पत्रकार का मीडिया ग्रुप से नाम ही हटवा देता है, जैसे लगता है कि अगर भाजपा के लिए बनी मीडिया ग्रुप में उसका नाम नहीं रहेगा तो भाजपा की अंदरुनी गतिविधियों की उक्त पत्रकार को जानकारी ही नहीं मिलेगी और पत्रकार बेरोजगार हो जायेगा। उसका प्रमाण है कि हाल ही में एक और पत्रकार को भाजपा के व्हाट्सएप ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा की यही सोच, भाजपा का झारखण्ड में कब्र खोद रही है। जो भाजपाई हाल ही में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व राजस्थान में भाजपा को मिली जीत पर खूब पटाखे छोड़ें हैं, अबीर गुलाल उड़ाया हैं। उन्हें यह नहीं मालूम कि झारखण्ड की जनता ने पहले से क्या सोच रखी हैं। आज भी अगर भाजपा कोई रांची में बड़ा कार्यक्रम रख लें तो उसे आदमी नहीं जूटे वाली हाल है, पर इनके बोल बच्चन देखिये।
रही बात छोटे कार्यकर्ताओं की, तो अब तो इनकी पुछ ही नहीं रही, ये लोग तो बड़े-बड़े सेठ-साहूकारों, बिल्डरों-पूंजीपतियों को शान से अपनी पार्टी में शामिल कराकर बम-बम हो रहे हैं, और उन्हें ये नहीं पता कि इन्हीं सभी कारणों से उनके समर्पित कार्यकर्ता, जिनकी समाज में अलग प्रकार की धाक हैं, उस पर नजर अन्य दलों की चली गई हैं और वे उन कार्यकर्ताओ को अपने दल में शामिल करने के लिए एक नई स्कीम पर काम कर रहे हैं, जिसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है।
जबकि दूसरी ओर, प्रदेश भाजपा में एकोsहं द्वितीयोनास्ति का खेल चल रहा है। फिलहाल संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह जो असली में प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, उनके कार्यों का आनन्द लीजिये, और फिर से 2024 प्रदेश में हेमन्त सरकार का आनन्द लेने के लिए तैयार रहिये, क्योंकि संघर्ष करनेवाले भाजपा के कार्यकर्ताओं को इन्होंने सड़क पर छोड़ दिया हैं।
अब जितने धनाढ्य लोग हैं, उनमें से किसी को पदाधिकारी तो किसी को संसद में भेजने का काम करना शुरु कर दिया हैं, ऐसे में राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा एक दल न होकर, झारखण्ड में एक क्लब बनकर रह गई है, जिसका मजा वे ले रहे हैं, जिनके पास अथाह-अकूत संपत्ति हैं, बाकी तो इनके जमीनी कार्यकर्ता व संघ से जुड़े स्वयंसेवक इन जैसे लोगों के लिए शायद झोला ढोने के लिए बने ही हैं।