का. महेन्द्र सिंह की 13 वीं बरसीं पर, उन्हें श्रद्धांजलि देने को बगोदर में उमड़ा जनसैलाब
बगोदर एक बार फिर इतिहास बना गया, अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देने को लेकर। आज बड़ी संख्या में अपने प्रिय नेता कां. महेन्द्र सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग अपने-अपने गांवों से निकल पड़े। ज्ञातव्य है कि कां. महेन्द्र सिंह की हत्या 16 जनवरी 2005 को नक्सलियों द्वारा कर दी गई थी। इस राज्य का दुर्भाग्य है कि जनसंघर्ष के लिए यहां कोई नेता अब महेन्द्र सिंह जैसा नहीं दीखता, जिनके दिलों में आम जनता के लिए संघर्ष करने का दृढ़ निश्चय हो।
उन्होंने अपनी जनता को कभी झूठा आश्वासन नहीं दिया, हमेशा उनके दुख-सुख में साथी बने रहे, यहीं नहीं, जब भी हमारी उनसे मुलाकात हुई, वे जनता के लिए मुखर रहे। जब विधानसभा चलती तो सरकार को कटघरे में खड़ा करने का काम अगर किसी का होता तो वे थे – महेन्द्र सिंह। मैंने कई बार सदन में देखा कि जब वे सरकार से सवाल करते तो सरकार निरुतर हो जाती। शायद यहीं कारण रहा कि उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने सदन में ही महेन्द्र सिंह की तारीफ की और अपने विधायकों को कहा कि वे भी जब सदन में आये तो तैयारी के साथ आये, जैसा कि महेन्द्र सिंह तैयारी करके आते थे।
क्या जाड़ा, क्या गर्मी, मैने उन्हें हमेशा हाफ शर्ट में ही देखा। विभिन्न मुद्दों पर खुब बातचीत होती। ये हमारा सौभाग्य है कि मैं उस वक्त ईटीवी रांची में कार्यरत था, कई बार उनसे विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई और उनके बयान ईटीवी पर प्रसारित हुए। भाजपा के लोग जो राजनीति में शुचिता, शुद्धता की जो बातें करते हैं, हमें तो वह सिर्फ दिखावा लगता है, अगर सही शुचिता एवं शुद्धता देखनी हैं तो आप महेन्द्र सिंह की जीवन यात्रा को देखे। निडरता, जनता के प्रति समर्पण, सदन के प्रति ईमानदारी ये ऐसे गुण थे, जो औरो से उन्हें अलग करते थे।
हमने देखा कि सदन में भाकपा माले के एकमात्र विधायक कां. महेन्द्र सिंह, पर सर्वाधिक समय वे ही ले जाते, उसका मूल कारण था कि जब विपक्ष के कुछ लोग सवाल उठाते तब प्रत्युत्तर में जैसे ही सरकार सहीं जवाब नहीं देती तो वे अपने अनुभवों तथा संवैधानिक दृष्टांतों और विभिन्न उदाहरणों को लेकर सरकार को घेरने से नहीं चूकते और यहीं कारण था कि वे सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के केन्द्र में रहते। हमने कई विधायकों को देखा, जो महेन्द्र सिंह के इन गुणों से प्रभावित न होकर, ईर्ष्या भी करते, पर इसका प्रभाव महेन्द्र सिंह पर मैंने कभी नहीं देखा।
झारखण्ड गठने के बाद से ही झारखण्ड विधानसभा सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार देती है, एक बार इन्हें वह पुरस्कार देने की घोषणा की जानी थी, पर कां. महेन्द्र सिंह ने बड़ी ही विनम्रता से इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि वे इस पुरस्कार के योग्य नहीं, जबकि सच्चाई है कि अब तक जिन-जिन विधायकों को सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार मिला है, कहीं से भी वे महेन्द्र सिंह के आस-पास भी नहीं दीखते और न ही वैसी आदर्शवादिता, चूंकि एक परंपरा बन गई है, इसलिए सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार देने का निर्वहण होता है, पर सर्वश्रेष्ठ विधायक कौन होता है, वो तो मरणोपरांत बगोदर में आयोजित होनेवाली उनके नाम पर आज का दिन और उसमे जुटनेवाली जनसैलाब का दृश्य ही बता देता है, कि नेता कौन हैं? किसी ने ठीक ही कहा है…
दो किस्म की नेता होते हैं, एक देता हैं, एक पाता हैं
एक देश को लूट के खाता है, एक देश में जान गवांता हैं
एक जिंदा रहकर मरता है, एक मर कर जीवन पाता है,
एक मरा तो नामोनिशां ही नहीं, एक यादगार बन जाता है