बसंती देवी, जिसने मुसीबतों के आगे अपना सिर नहीं झूकाया, दूसरों को भी जीने की राह दिखाई
मुसीबतें किसके पास नहीं आती। कुछ लोग मुसीबतों के आगे सिर झूका लेते हैं। मुसीबतों के सामने खुद को असहाय महसूस करते हैं। स्वयं को बेबस कर डालते हैं। लेकिन कुछ लोग इन्हीं मुसीबतों में स्वयं को निखारते हैं। रास्ता बनाते हैं और दूसरों को भी जीने की राह दिखा देते हैं। आजकल तो अखबारों में ज्यादातर यही पढ़ने को मिलता है कि फलांने ने मुसीबतों के आगे स्वयं को असहाय महसूस करते हुए जीवन को दिशाहीन कर डाला, स्वयं को बर्बाद कर डाला।
पर, आज हम इसके विपरीत आपको ऐसी महिला की कहानी बता रहे हैं कि उसके पास मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन वो उन मुसीबतों के आगे झूकी नहीं, बल्कि दूसरों को भी शान से जीने की प्रेरणा दे रही हैं। उस महिला का नाम है – बसंती देवी। ये हमेशा रांची के लोहरदगा गेट आती है। सब्जी बेचती है और इसी से अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं। ये इतनी हंसमुख महिला हैं कि इनको देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि यह एक बड़ी मुसीबतों का सामना कर अपने परिवार को चला रही है। लेकिन सच्चाई तो सच्चाई ही है।
लोग बताते हैं कि इनको एक भी बेटा नहीं हैं। इन्होंने आठ बेटियों को जन्म दिया। जिनमें से एक बेटी चल बसी। सात बेटियां बची। जिसमें सभी को बिना किसी से कर्ज पैंचा लिये। पढ़ाया-लिखाया। सात में से छः बेटियों की शादी कर दी। एक बेटी बची है। जिसका वो भरण-पोषण कर रही हैं। जल्द ही उसके भी हाथ पीले कर देगी। पूछने पर बताती है कि भगवान की कृपा से उनके सारे दामाद अच्छे मिले हैं। सारी बच्चियां खुश है। उन्हें ईश्वर से कोई शिकायत नहीं।
लोग बताते है कि बसंती देवी बेड़ो थाना के इडरी गांव की रहनेवाली है। पति जगदीश साव हमेशा नशे में धुत रहता है। उसे यह भी नही पता रहता कि घर में किस चीज की कमी है, क्या जरुरत है, घर कैसे चलेगा? घर और बेटियों की चिन्ता अगर किसी को रही तो वो सिर्फ बसंती देवी को ही रही। वो जैसे-तैसे सब्जी बेचकर, अपने घर को देखने में समय लगाया तथा बच्चों की अच्छी परवरिश दी। मतलब अपनी सात बेटियों को सिर्फ पढ़ाया ही नहीं, बल्कि उनमें से छः को अकेले शादियां भी करवा दी।
गांव के लोग बोलते हैं कि हमलोगों को आश्चर्य होता था कि एक तो इसका पति नशे में रहता है। उस पर से इतनी बेटियों का होना, बसंती कैसे अपना घर चलायेगी, कैसे अपने बच्चों को खिलायेगी-पिलायेगी, इन्हें अच्छा पढ़ायेगी-लिखायेगी, उन्हें लायक बनायेगी, उनका अच्छे घर में शादी करायेगी। लेकिन बसंती देवी ने अपने हौसले से ये सारे काम को अंजाम दिया। जो सराहनीय है। सम्मानीय है। बसंती देवी ने अपने हौसलों से वो सब कर दिया, जिसको करने में सामान्य लोगों की हालत खराब हो जाया करती हैं। लोग टूट जाते हैं।