सावधान भाजपाइयों, कहीं आपकी बत्ती गुल न करा दें, फिल्म – बत्ती गुल मीटर चालू
झारखण्ड समेत पूरे देश के कई सिनेमाघरों-मल्टीप्लेक्सों में आज एक नई फिल्म ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ आज रिलीज हुई। हमें डर है कि कहीं ये फिल्म आनेवाले लोकसभा चुनाव या कुछ ही महीनों के अंदर होनेवाले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बत्ती न गुल कर दें, क्योंकि ये फिल्म शुरु से लेकर आखिरी तक कहीं न कहीं भाजपा के विकास के नारों और अच्छे दिनों पर ही सर्वाधिक कटाक्ष करते हुए, भाजपा को कुछ ज्यादा ही लपेट लिया है।
फिल्म उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल में रह रहे एक परिवार से संबंधित है, जो बिजली कंपनी में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की मनमानियों के कारण, अपना पूरा धंधा चौपट कर बैठता है, उसके पास 54 लाख की बिजली की बिल आ जाती है, वह इतनी बड़ी रकम न देने के कारण आत्महत्या का प्रयास करता है, फिर भी बच जाता है, लेकिन इसी बीच उसके नहीं रहने पर कई नाटकीय घटनाएं होती है, जो देश में चल रहे बिजली समस्या और इसे सुधारने के नाम पर चल रही सिस्टम में बढ़ता भ्रष्टाचार को स्पष्ट रुप से दिखाता है, खुशी इस बात की है कि इसका अंत सुखद है, जिससे लोगों को सुकून मिलता है।
हां, ये मत भूलिये, जहां ये फिल्म बनी, वहां भाजपा का ही शासन है, और अब हम जहां की बात करने जा रहे हैं, यानी झारखण्ड वहां भी भाजपा का शासन है। ऐसे तो पूरा देश बिजली की समस्या से प्रभावित है, पर झारखण्ड की जनता इन दिनों बिजली के नहीं रहने और अनाप-शनाप बिजली के बिल आने से कुछ ज्यादा ही परेशान है, सर्वाधिक परेशानी अगर कोई झेल रहा है, तो वह हैं धनबाद-बोकारो का इलाका, जहां कब बिजली आयेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं, लेकिन बिजली जायेगी, इसकी गारंटी अवश्य है।
लोग सड़कों पर प्रतिदिन उतरते हैं, सरकार का पूतले जलाते हैं, सरकार के खिलाफ खूब जी-भरकर नारे लगाते हैं, पर हार-थककर शाम को खुद को कोसते हुए सो जाते हैं, बिजली को सुधारने के लिए यहां की सरकार बहुत लंबे-लंबे फेकती हैं, कभी कहती है कि राज्य के पूरे गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, कभी कहती है कि बिजली पहुंचाने का काम जारी है, कभी कहती है कि बिजली की सेवा, नवम्बर तक सामान्य हो जायेगी, पर लक्षण वैसे दीखते नहीं।
आश्चर्य तो इस बात की भी है कि जनता परेशान है, पर सरकार के उपर इसका कोई असर नहीं दीखता, इसके विधायक अपनी सेना बनाकर, धनबाद के इलाके में खूब रौब ऐठता है, यहीं नहीं कोयला उठानेवाली कई कंपनियों से रंगदारी वसूलता है और जो नहीं रंगदारी देता है, उसे सबक भी सिखाता है, जिसकी गवाह अखबारों की कतरनें हैं, पर चूंकि सरकार का ही उसे वरद् हस्त प्राप्त है, तो उसकी ओर कोई नजर नहीं उठाता।
फिल्म देखकर निकले, दर्शकों ने बताया कि फिल्म तो अच्छी है, पर थोड़ी बोझिल है, इंटरवल के पूर्व तो माथा में दर्द पैदा करनेवाली स्थिति है, पर इंटरवल के बाद से कहानी पटरी पर उतरती दिखती है, जिससे लोगों को पता लगने लगता है कि बत्ती गुल मीटर चालू का मतलब क्या है? भाजपा शासनवाले इलाकों में चल रहे विकास और कल्याण तथा अच्छे दिनों पर फिल्म में करारा व्यंग्य किया गया है, जो लोगों को अच्छा लगता है, लोगों को लगता है कि अगर ये फिल्म ज्यादा दिनों तक सिनेमाघरों में रह गई और लोगों को पसंद आ गया तो भाजपा के लिए ये सुखद नहीं है, क्योंकि आगामी चुनावों में भाजपा की इससे बत्ती गुल होना तय है।