देश के हुक्मरान हो या राज्य के हुक्मरान, भोजपुरी, अंगिका, मैथिली व मगही के साथ राजनीति ना करें: के एन त्रिपाठी
आज दिनांक 20 सितम्बर को गांधी स्मृति टाउन हॉल के परिसर में मगही युवक मोर्चा के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री व इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष के० एन० त्रिपाठी ने कहा कि मै मगही युवक मोर्चा के मांगो का पूर्ण रूप से समर्थन करता हूं।
उन्होंने कहा कि अपनी पार्टी एवं झारखंड सरकार दोनों से आपकी मांगो को मानने के लिए पूरी तरह से बात करूंगा। मैंने पहले भी कुछ मामलों में बात किया है और कुछ बात आगे भी होगी। हमें लगता है कि मै पूर्ण रूप से आश्वस्त एवं विश्वस्त हूं कि हमारी पार्टी और सरकार भी आपकी मांगो के साथ खड़ी होगी। खड़े होने के पीछे कारण है कि आपका लौकिक एवं तर्क सही है।
उन्होंने बताया कि जिस तरह से पूर्व की सरकार ने झारखंड राज्य को 13 और 11 जिलों दो भागों में अलग अलग कानून बनाकर बांटने का कार्य किया था तो आपलोगो के आंदोलन से वह कानून सरकार को बदलना पड़ा चाहे भले ही पण्डवा थाना मे रात गुजारना पडा हो।
जो बातें उस समय कही गई वहीं बातें सत्य हुआ और हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने भी बोला कि यह कानून गलत है उसको निरस्त करते हैं। उसी तरह यह कानून भी बदलना पड़ेगा। झारखंड राज्य मे 24 जिले है और सभी जिलों में बराबर का अधिकार है। 11 और 13 जिलों में झारखंड राज्य को नहीं बांटा जा सकता है। भाषा के आधार पर 12 और 04 भाषाओं में नहीं बांटा जा सकता है।
एक समय था कि जब मगध साम्राज्य का इतिहास ही भारत का इतिहास था। उस समय भारत देश मे मगध साम्राज्य स्थापित था। उसकी भाषा मगधी व मगधी प्राकृत भाषा प्राचीन भाषा थी। उस समय मगध का साम्राज्य गया, पटना, राजगीर से लेकर अफगानिस्तान, दक्षिण भारत तक फैला हुआ था।
कटक कलिंगा, ओड़िशा से लेकर के पुरा का पुरा भारत बांग्लादेश तक फैला हुआ था। यही मगध साम्राज्य था और इसकी भाषा मगधी प्राकृतिक थी और मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा थी। आज नहीं आज से 5000 साल पुराना इतिहास है। मगध साम्राज्य का शासक जरासंध हुआ करता था, जब द्वापर में भगवान श्री कृष्ण थे। इसी धरती पर बिन्दुसार, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य व अशोक से लेकर भगवान बुद्ध, भगवान महावीर ने जो उपदेश दिया है वह मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा है।
आगे उन्होंने कहा कि हम इहे भाषा में हम भाषण देती लेकिन हम चाहत ही की जो हम बोलें पुरा भारत देश, झारखंड राज्य एवं देश के सभी राज्यों के लोग सुनें और जाने। आपकों बता दें कि झारखंड सरकार ने जिन बारह भाषाओं को लिए है। उनमें से अधिकांश भाषाएं बंगाली, बांग्ला, उड़िया खोरठा, नगपुरीया, आसामी यह मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा का ही अपभ्रंश है।
इसी भाषा से निकलकर के सारी भाषाओं का निर्माण हुआ है। मगध साम्राज्य मैथिली, अंगिका, भोजपुरी, उत्तर प्रदेश -वाराणसी, आसाम की भाषा सारे भाषा अपभ्रंश है और यही भाषा पुरा भारत की भाषा मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा है। पूरे भारत की संस्कृत है और इसी से ही सभी भाषाओं का उद्भव हुआ है। हम कैसे इस भाषा को छोड सकते हैं? जिससे अन्य भाषाओं का उद्भव हुआ है। इसको छोड़ना संभव नहीं है।
मगध साम्राज्य का इतिहास चन्द्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त का इतिहास मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा है। लोग कहते है यह भाषा नहीं बोली है। अब जानकारी का अभाव है तो क्या करें? आप नालंदा विश्वविद्यालय के अभिलेखों को आप देखिए और आप उनको कहिए कि इस भाषा की जो लिपि थी वह न्यायपालिका की भाषा थी। इसकी लिपी कैथी लिपि थी।जो पहले राज्य-शासन के न्यायपालिका में चला करता था।
आज पूरे राष्ट्र की भाषा हिन्दी है और हमें फक्र है। हम हिंदी इसलिए बोलते हैं की हम राष्ट्रवादी है और भारत राष्ट्र के साथ खड़े है। हिन्दी भाषा भी मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा की टूटी हुई भाषा है। मातृभाषा संस्कृत है। जो मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा है जो हमारी भाषा है।
इस भाषा का इतिहास इतना पुराना है कि मगध साम्राज्य के न्यायपालिका की भाषा, महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर जैन, राजवंशों की भाषा मगधी प्राकृत प्राचीन भाषा थी। आप यह कैसे कह सकते हैं कि ये भाषा को नहीं रखेंगे? झारखंड के 11 जिलों में जो भाषा बोली जाती है उसको रखना ही पड़ेगा। उससे भी बड़ी बात हमारी इतिहास हमारा धरोहर है।
झारखंड राज्य की पहचान एवं अधिकारों पर यह कुठाराघात नहीं होने देंगें। मगध का हर एक दशक एवं एक शतक मे सीमाएं बदलती एवं बिगड़ती रही हैं। मै बिहार नाम से आपत्ति करता हूं कि जब बंगाल एवं बिहार का विभाजन हुआ था तब इसका नाम मगध दिया जाना था।
झारखंड के सवा तीन करोड़, 24 जिला एवं 267 प्रखंड एवं एक एक पंचायत के लोगों को ध्यान में रखना होगा तो सरकार कैसे ये कह सकती है कि यह हमारी भाषा नहीं है झारखंड के लोग जो चयनित 12 भाषाओं को नहीं जानते हैं उन सभी के लिए यह चार भाषाओं को रखना ही पड़ेगा।
जब बिहार बंगाल से अलग हुआ तो उसका नाम बिहार पड़ा उससे भी मुझे आपत्ति उसका नाम मगध होना चाहिए था यदि सरकार इस पर ध्यान नहीं देगी चाहे वह जो पहले सरकार थी या वर्तमान सरकार है तो मगध की सीमाएं फिर बदलेगी भारत में मगध की सीमा बदलती आई है और बदलती रहेगी इसको ध्यान रखा जाए हुक्मरानों चाहे वह देश के हुक्मरान हो या राज्य के हुक्मरान हो या बिहार के हुक्मरान भोजपुरी अंगिका मैथिली व मगही के साथ राजनीति ना करें।
यह सोचना होगा कि झारखंड के सवा तीन करोड़ लोग दबे कुचले आदिवासी अनुसूचित जाति जनजाति एवं अन्य सभी को झारखंड में नौकरी से वंचित ना कर दिया जाए, यह नहीं सोच सकते कि किसी की पहचान मिटा दी जाए,राज्य के 24 जिला 267 प्रखंड और सभी पंचायतों और गांव के सभी लोग को ध्यान में रखकर चलना है।
हमारे देश की सरकार और राज्य सरकार को नीति बनाने से पहले यह सोचना होगा की इससे हमारे राज्य के अधिकांश लोग प्रभावित तो नहीं हो रहे हैं अगर हम ऐसा नहीं सोचेंगे तो हमारा लिया हुआ शपथ व्यर्थ चला जाएगा। उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होगी जिसके लिए हम सभी शपथ लेते हैं।
हमारे संविधान में भी लिखा है कि हम सभी को बराबरी का अधिकार है। सभी न्याय संगत बननी चाहिए। सभी 24 जिले के रहने वाले लोगों का भी अधिकार है और उनका भी अपना पहचान है सभी की पहचान जुड़ी हुई है मगध से लिए इन सभी को इनकी पहचान देना सभी सरकार व राजनीतिक पार्टियां का सबसे सबसे पहले कर्तव्य है वह मैं मगही युवक मोर्चा के सभी मांगो के साथ हूं क्योंकि यह उचित है संविधान के अनुरूप है सरकारों के नैतिक फैसले के अनुरूप है।