सुरेन्द्र किशोर जैसे वरिष्ठ पत्रकार पर अंगूली उठाने के पूर्व शिवानन्द व श्याम जैसे राजनीतिबाजों को सौ बार अपने गिरेबां में झांककर देख लेना चाहिए
सच पूछिये, तो मैं कभी भी वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर जी से नहीं मिला हूं, हालांकि वे वहीं रहते हैं, जहां से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व में, मैं रहा करता था, बराबर पटना आना-जाना लगा रहता है, फिर भी कभी उनके यहां गया नहीं। इस जीवन में एक बार सिर्फ उनसे मोबाइल पर बातचीत हुई, जब मुझे किसी राजनीतिक रैली पर एक कमेन्ट्स उनसे लेनी थी, उन्होंने दिया भी।
पर इतना जरुर रहा कि उनके आलेख मैने खुब पढ़ी हैं, और पढ़कर उनसे बहुत कुछ सीखा भी है, मतलब पत्रकारिता मे अदब की क्या अहमियत हैं, अपने विचारों की क्या अहमियत है, सत्य को कैसे जनता के बीच में परोसना चाहिए, अगर कोई पत्रकार ये जानना चाहें तो सुरेन्द्र किशोर जी से अभी भी सीख सकता है। एक बात और, मुझे इस बात का गर्व है कि मैं उनके साथ फेसबुक पर जुड़ा हुआ हूं, और उनके आलेख मुझे स्वतः मिलते रहते हैं।
फिलहाल वे बिहार के एक राजनीतिज्ञ शिवानन्द तिवारी के किसी पोस्ट पर बिहार के ही एक राजनीतिज्ञ श्याम रजक द्वारा की गई टिप्पणी और शिवानन्द तिवारी की हरकतों से थोड़ा आहत दिखे, और आहत वे भी दिखे, जो वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर को जानते हैं, समझते हैं, आदर देते हैं।
जैसे ही श्याम रजक की टिप्पणी लोगों को मिली, वे आपे से बाहर है, क्योंकि श्याम रजक ने ऐसी ओछी टिप्पणी की है, जिसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता। अपने ही पोस्ट पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा की गई कमेन्ट्स पर सुरेन्द्र किशोर ने जो विचार लिखे हैं, वो बताता है कि सुरेन्द्र किशोर किस मिट्टी के बने हैं, जरा पहले इसे ही पढ़िये…
“यदि वह मानहानि कारक टिप्पणी श्याम रजक की भीत पर रही होती तो शायद मैं नजरअंदाज भी कर देता। पर, श्याम जी ने शिवानंद तिवारी के वॉल पर वह बात लिखी थी। इस प्रसंग के दौरान मेरे फेसबुक वॉल पर कई लोगों ने श्याम रजक के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। मैंने भरसक वैसी सारी टिप्पणियों को डिलीट कर दिया है। लेकिन यह काम तिवारी जी ने नहीं किया। यानी, वे श्याम जी से सहमत थे।”
सुरेन्द्र किशोर जी द्वारा लिखी ये बातें स्पष्ट करती है कि उनकी सोच क्या है? सही भी है कि हर व्यक्ति का अपना विचार व दृष्टिकोण होता हैं, वो उस विचार व दृष्टिकोण को कहने व रखने के लिए स्वतंत्र है, पर जब वही विचार व दृष्टिकोण दूसरे के वॉल पर जब वह रखता है और संबंधित व्यक्ति, उसके विचार व दृष्टिकोण पर कोई टिप्पणी या अपना दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं करता।
तो माना जाता है कि जिसने उसके वॉल पर जो कमेन्ट्स किये, उसमें उसकी भी सहभागिता है, और शायद यही सुरेन्द्र किशोर जी के दुख का कारण है, पर सच्चाई यह भी है कि जब लिखनेवाला और जिनके पोस्ट पर शब्द लिखे गये, दोनों के विचार एक हो तो, फिर इसमें किसी किन्तु-परन्तु की कोई बात ही नहीं होती, क्योंकि शिवानन्द हो या श्याम दोनों फिलहाल राजद के कार्यालय में बंधे गाय-बैलों की तरह हैं, वे उससे अधिक कुछ हो भी नहीं सकते।
चूंकि सुरेन्द्र किशोर की जो भाषा हैं, वो इन दोनों की भाषा की तरह नहीं हैं, कि वे ऐसी भाषा दूसरे के लिए प्रयोग करें, लेकिन जो सुरेन्द्र किशोर का सम्मान करते हैं, भला वे ऐसे में अपने आपको कैसे संभालें, फिर भी सुरेन्द्र किशोर जी ने अपने स्वाभावानुसार उनके पोस्ट पर जो भी कमेन्ट्स आये हैं, उसके साथ न्याय किया है, कोई भी आपत्तिजनक कमेन्ट्स को अपने यहां टिकने नहीं दिया है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है। अब जरा सुरेन्द्र किशोर जी ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा क्या है? जरा इसे ध्यान से पढ़े…
श्री शिवानंद तिवारी के फेसबुक वॉल पर एक संदर्भ में बिहार सरकार के पूर्व मंत्री श्याम रजक जी ने मेरे बारे में आज निम्नलिखित टिप्पणी की है, ‘‘सुरेंद्र किशोर चमचावाद के प्रतीक हैं भैया, वो दिखावटी सोशलिस्ट और डेमोक्रेसी का नाटक करते हैं।’’ उनकी टिप्पणी पर मैंने जो कुछ लिखा हैं,उसे यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
‘‘श्याम जी,
चमचागिरी पद या पैसे के लिए की जाती है। मुझे कोई पद मिला होता तो आपको भी मालूम होता। जहां तक पैसे का सवाल है,उसके बारे में अपने पत्रकारिता जीवन में, जो काफी लंबा है, मेरा शुरू से यह संकल्प रहा है कि जिस पैसे के लिए मैं मेहनत नहीं करता, उसे स्वीकार नहीं करता। कभी किया भी नहीं।
यहां तक कि नीतीश सरकार की पत्रकार पेंशन योजना के तहत 6 हजार रुपए हर माह पाने के लिए मैंने आवेदनपत्र भी नहीं दिया। जबकि मैं उसे पाने की पूरी पात्रता रखता हूं। हालांकि 6 हजार रुपए का मेरे लिए अब भी महत्व है। उम्र बढ़ने पर दवाओं का खर्च बढ़ जाता है। वैसे एक बात बता दूं कि लालू प्रसाद 1990 में जब मंडल आरक्षण विरोधियों के खिलाफ डटकर खड़ा हो गए थे तो मैंने उनका लिखकर पूरा समर्थन किया था। तब भी कुछ लोगों ने मुझे लालू का चमचा कहा था।
देश-प्रदेश के लिए क्या व कौन अच्छा है, यह चुनने का अधिकार जितना आपको है, उतना ही मुझे भी। अपवादों को छोड़ दें तो राजनीति में या समाज में कोई भी व्यक्ति 24 कैरेट का सोना नहीं है। वैसे गहना भी 22 कैरेट के सोने से ही बन पाता है। फिर भी एक नागरिक व वोटर के नाते सबको नेताओं या सरकारों में से किसी एक को चुनना-पसंद करना पड़ता है।अपनी -अपनी पसंद व सुविधा के अनुसार कुछ लोग बेहतर को छोड़कर बदतर चुनते हैं और कुछ अन्य लोग बदतर छोड़कर बेहतर।
वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एवं पूर्व झारखण्ड प्रभारी भाजपा हरेन्द्र प्रताप कहते है कि वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार सुरेन्द्र किशोर बिहार के है, इसका उन्हें गर्व है। देशव्यापी दौरे के दौरान विभिन्न राज्यों में जब वे जाते थे, तो वहां के पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के बारे में उनसे पूछा करते थे। उन्होंने पत्रकारिता के श्रेष्ठतम मानदंडों को स्थापित किया है। कुछ राजनेताओं की उनके खिलाफ की गई टिप्पणी ठीक नहीं है।
श्याम रजक हो या शिवानन्द तिवारी, अगर ये दोनों अलग-अलग पार्टियों में होते तो क्या श्याम रजक, शिवानन्द तिवारी के पोस्ट पर इस प्रकार की घटिया कमेन्ट्स वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के खिलाफ करते, जाहिर है – नहीं, तब उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि फिलहाल दोनों एक ही जगह पर हैं, और वर्तमान में सुरेन्द्र किशोर जी द्वारा लिखी हर बात इन दोनों को चुभती है, तो ऐसे में वहीं होगा जो आज दीख रहा है, अगर यही श्याम रजक जनता दल यूनाइटेड में होते, तो देखते मजा।
दरअसल इन नेताओं का कोई धर्म या जाति या मजहब नहीं होता, ये विशुद्ध रुप सें जनता को ताखा पर बिठानेवाले व अपने परिवारों, रिश्तेदारों के लिए शुभ देखनेवाले लोग होते हैं, ये कर्पूरी-कर्पूरी भजते हैं, पर ये जीवन में कभी कर्पूरी नहीं बनते, क्योंकि कर्पूरी बनने पर आलीशान बंगले व लाइफ स्टाइल वह भी विदेशवाली का लाभ नहीं मिल पता, लेकिन जैसे ही कोई पत्रकार सत्य को उजागर करता हैं तो इन्हें लगता है कि ये पत्रकार उन पर अंगूली कैसे दिखा दिया?
जरा देखिये शिवानन्द तिवारी को, वे राजद में क्यों गये, कब गये, किसलिए गये, अरे जब नीतीश ने भाव नहीं दिया तो राजद में गये, अपने परिवार के लिए टिकट उपलब्ध कराने के लिए गये। लेकिन सुरेन्द्र किशोर जैसे पत्रकार के लिए इन सभी से क्या मतलब? ऐसे सुरेन्द्र किशोर अकेले काफी है, ऐसे लोगों को देख लेने के लिए, क्योंकि सत्य के आगे भला असत्य करोड़ों की संख्या में भी आकर खड़ा हो जायेगा तो सत्य का भला क्या उखाड़ लेगा, पर जब सत्य अपने पर आया तो असत्य का क्या हाल होगा, वो शिवानन्द और श्याम जैसे राजनीतिबाजों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।