अपनी बात

घोर आश्चर्यः रांची प्रेस क्लब के समस्त पदाधिकारियों ने अपने ही अध्यक्ष सुरेन्द्र सोरेन के खिलाफ सर्वसम्मति से निन्दा प्रस्ताव पारित किया और 17 दिनों बाद उसे वापस भी लिया मतलब …

रांची प्रेस क्लब सचमुच आठवां आश्चर्य है। यहां वो-वो काम होता है, जिसकी आप कल्पना ही नहीं कर सकते। यहां के पदाधिकारी और मार्गदर्शक मंडल में शामिल सभी सदस्य भारत के महान आश्चर्यजनक व्यक्तित्वों में से एक हैं। ऐसे-ऐसे कार्य करते हैं कि आप इनकी हरकतों को देख खुद पागल हो जायेंगे, लेकिन इन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ेगा भी कैसे? उन्हें सम्मान और अपमान का फर्क मालूम हो तब न।

अब हम आपको बताते हैं। आठ सितम्बर को जब रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों की एक बैठक क्लब में शुरु हुई तो उस बैठक में कई निर्णय लिये गये। इन्हीं निर्णयों के दौरान क्लब के एक कार्यकारिणी सदस्य ने अध्यक्ष सुरेन्द्र सोरेन के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पेश किया, जिस पर बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने सहमति जताई और उसे पारित भी कर दिया।

इसी बीच इस पूरे प्रकरण की घटना की जानकारी प्रेस क्लब के सदस्यों को नौ सितम्बर को मिली, जब मिनट्स टू मिनट्स की जानकारी प्रेस क्लब के व्हाट्सएप ग्रुप में डाली गई। बताया जाता है कि आठ सितम्बर को हुई मिनट्स टू मिनट्स की जानकारी प्रेस क्लब के अधिकारी देने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन जैसे ही कुछ सदस्यों ने इसकी डिमांड रखी। व्हाट्सएप ग्रुप में इसे जारी कर दिया, जिसे पढ़कर लोग आश्चर्य में पड़ गये।

जो लोग निन्दा प्रस्ताव का अर्थ समझते थे। वे तो भौचक्क रह गये। लेकिन जिनको सम्मान जाये या आये, कोई फर्क ही नहीं पड़ता। वे हमेशा की तरह दांत निपोड़ते देखे गये। इसी बीच बताया जाता है कि जब इसकी जानकारी मार्गदर्शक मंडल के कुछ सदस्यों को मिली तो उन्होंने उन लोगों पर दबाव बनाया, जो अध्यक्ष के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव लाये थे और सभी प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को इस निन्दा प्रस्ताव को वापस लेने को राजी किया। जिस पर हार-पछताकर सभी प्रेस क्लब के अधिकारी 25 सितम्बर को अध्यक्ष सुरेन्द्र सोरेन के खिलाफ लाये गये निन्दा प्रस्ताव को वापस ले लिया।

लोग बताते है कि यह निन्दा प्रस्ताव इसलिए लाया गया था, क्योंकि अध्यक्ष पर आरोप था कि वे रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की शिकायत उनके संस्थानों के प्रमुखों से कर रहे थे, जिस पर प्रेस क्लब के सदस्यों की घोर नाराजगी थी। उनका कहना था कि प्रेस क्लब से संबंधित शिकायतों को उनके संस्थानों के प्रमुख से कहना ठीक नहीं हैं। जिस पर इन सब ने निन्दा प्रस्ताव लाया और उसे पारित भी करवाया।

इधर रांची प्रेस क्लब के कई सदस्यों ने इस प्रकरण पर विद्रोही24 को कहा कि पहली बात कि किसी भी सूरत में रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र सोरेन के खिलाफ अगर कोई नाराजगी थी तो प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को इतना बड़ा कदम नहीं उठाना चाहिए था। निन्दा प्रस्ताव उनके खिलाफ नहीं लाना चाहिए था। सहमति नहीं जतानी थी, उसे पारित नहीं कराना था और जब पारित करा दिया तो फिर उसे वापस लेनी नहीं थी। लेकिन जिस प्रकार से निन्दा प्रस्ताव पारित किया गया और फिर उसे वापस ले लिया गया। ये तो ‘थूक कर चाटनेवाली’ लोकोक्ति चरितार्थ हो गई।

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