अपनी बात

केवल बतोलाबाजी व हवाबाजी में ही भाजपा आगे जबकि गांव/पंचायत स्तर पर झामुमो कार्यकर्ताओं ने इनकी सारी हवाई किले को किया ध्वस्त, भाजपा के लिए इस बार राह नहीं आसान

लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है। सबसे पहले भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ झारखण्ड की सभी 14 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं। यहीं नहीं, इनके प्रदेश के नेता कभी चुनावी प्रबंधन के नाम पर, तो कभी बूथ कमेटी को मजबूत करने के नाम पर, तो कभी कार्यकर्ताओं के जुटान के नाम पर, तो कभी सोशल मीडिया हैंडल करने के नाम पर, मतलब तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर बतोलाबाजी व हवाबाजी करने में लगे हैं।

लेकिन सच्चाई यही है कि इस बार इनकी राह इतनी आसान नहीं हैं, क्योंकि दूसरी ओर झामुमो के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी बतोलेबाजी व हवाबाजी के अपना काम जमीन पर उतारना शुरु कर दिया है। ये भाजपा के द्वारा बनाये जा रहे हवाई किलों को आराम से ध्वस्त करते जा रहे हैं। झामुमो कार्यकर्ताओं को यह मनोबल मिला है, उस वक्त से, जब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को ईडी ने जेल में डाल दिया।

झामुमो कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों का मानना है कि हेमन्त सोरेन निर्दोष हैं, उन्हें भाजपावालों ने फंसाया है, जिसका वे विरोध हर तरीके से करने की हामी भर दी है। उधर कल्पना सोरेन ने जब से धुंआधार राजनीतिक दौरा शुरु किया है। तब से झामुमो कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों को और प्राणशक्ति मिल गई। जबकि दूसरी ओर लाख कोशिश करने के बावजूद भाजपा की सारी हेकड़ी गुम होती दिख रही है।

खासकर तब, जब जेपी पटेल ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन पकड़ इनकी सारी हेकड़ी निकाल दी। लोग भूले नहीं जेपी पटेल भाजपा के सचेतक थे, झारखण्ड विधानसभा में। यही नहीं रामटहल चौधरी और गिरिनाथ सिंह जैसे दिग्गज भाजपाइयों का अचानक पाला बदल लेना इनके सारे सपनों पर पानी फिरवा दिया। धनबाद में तो उसके भाजपा के कार्यकर्ता ही दो खेमे में बंटे नजर आ रहे हैं।

एक है जो अपराध जगत के बेताज बादशाह व भाजपा के घोषित प्रत्याशी ढुलू महतो का समर्थन कर रहे हैं तो दूसरा ऐसा है कि पं. दीन दयाल उपाध्याय के बोले वचनों को इस बार जमीन पर उतारने का फैसला कर लिया है। मतलब वो किसी भी हाल में ढुलू महतो के साथ नहीं हैं। वो बस इंतजार कर रहे हैं कि इंडिया गठबंधन अपनी ओर से किसे कैंडिडेट घोषित कर रहा है। अगर इंडिया गठबंधन ने मनोनुकूल कैंडिडेट दे दिया तो फिर धनबाद से ढुलू महतो और भाजपा का बेड़ा गर्क होना तय है।

यहीं नहीं कई इलाकों में तो अब भाजपा के कैडिंडेटों का विरोध होना भी शुरु हो गया है। कही भाजपा के कार्यकर्ता तो कही झामुमो कार्यकर्ता ही इनके सामने आ जा रहे हैं। हाल ही में सरहुल के दिन आदिवासी समुदायों के द्वारा हेमन्त सोरेन के समर्थन में निकली झांकी ये बताने के लिए काफी था कि भाजपावाले चेत जाये, इस बार आदिवासी उनके साथ नहीं और न उन्हें वोट करने जा रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि रांची, जमशेदपुर, धनबाद व पलामू के शहरों में बैठकर बतोलाबाजी करने से अच्छा है कि भाजपा के नेता गांव का रुख करें और ग्रामीणों का मन टटोलें। सच्चाई यह है कि ग्रामीणों के मन से तो कब के ये लोग चले गये। रही सही कसर इनके द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को माइनस कर अपने ढंग से कैंडिडेट को थोप देने की वजह से इनके कार्यकर्ता भी मायूस हैं और ढीले-ढाले तरीके से प्रचार-प्रसार में लगे हैं।

भाजपा का क्या हाल है। आप बाबूलाल मरांडी का एक ट्विट देखकर ही पता लगा सकते हैं, जिसमें वे खुद लिख रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में अपनी हार निश्चित देखकर हताशा में झामुमो कार्यकर्ताओं ने कल प्रचार के दौरान सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा एवं उनके समर्थकों को घेरकर क्षति पहुंचाने का प्रयास किया है। हैरानी की बात है कि मुख्यमंत्री के गृह जिला में रहने के बावजूद प्रशासन सुरक्षा मुहैया नहीं करा पा रहा है। झारखण्ड के डीजीपी तत्काल मामले का संज्ञान लेकर दुस्साहस करनेवाले लोगों पर अविलंब कार्रवाई सुनिश्चित करें।

मतलब साफ है कि भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा जो पहले कांग्रेस में थी अब भाजपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं। उन्हीं के इलाके के लोगों ने उनका अब विरोध करना शुरु कर दिया है। बाबूलाल मरांडी का कहना है कि ये झामुमो के लोग हैं। लेकिन ये झामुमो के लोग हैं या स्थानीय ग्रामीण हैं, ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन सच्चाई यही है कि ये वहां के मतदाता है और गीता कोड़ा से नाराज है। विरोध कर रहे हैं।

उधर कोडरमा में भी अन्नपूर्णा देवी का विरोध सुनने को मिल रहा है। पलामू में बीडी राम को तो हर जगह ग्रामीणों द्वारा खरी-खोटी सुनने को मिल रही है। जमशेदपुर में विद्युत वरण महतो को जिताने में भले ही लोग लगे हो, पर विद्युत वरण महतो वहां से निकल ही जायेंगे, कहना मुश्किल है। यही हाल दुमका में सीता सोरेन का है।

मतलब केवल मोदी के सहारे अगर ये सोच रहे है कि पूरी सीट झारखण्ड का अपनी झोली में डाल लेंगे तो हम कहेंगे कि गलतफहमी में रहने का सबको अधिकार है। इधर हजारीबाग में भी मनीष जायसवाल के हालत पस्त दिख रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भाजपा बतोलाबाजी में अभी लगी है। इस बतोलाबाजी से इसको इस बार कुछ नहीं मिलनेवाला सिवाय नुकसान के।

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि रांची में भाजपावालों ने बहुत सारे ऐसे कार्यालय खोल लिये हैं। जहां लोग बतोलाबाजी ही करते हैं। लेकिन इस बतोलाबाजी और भोकाल से किसको क्या मिला, ये तो चार जून को पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा के पास बतोलाबाजी और भोकाल करनेवालों की अच्छी खासी फौज तैयार हो गई है तो झामुमो के पास काम करनेवाले व समर्पित रहनेवाले कार्यकर्ताओं की फौज। ऐसे में झारखण्ड में कौन ताकतवर है, आप खुद ही चिन्तन करिये।