राजनीति

भाजपा रच रही झारखण्ड की पहचान को समाप्त करने की बहुत बड़ी साजिश, हम बर्दाश्त नहीं करेंगे, पुरजोर विरोध करेंगे, संसद में कहे भाजपा सांसद के काले शब्द राज्य के लिए अशुभः सुप्रियो

भाजपा क्या चाहती है कि सिदो कान्हों का नाम मिटा दिया जाय, पोटो हो, तेलंगा खड़िया का नाम मिटाते हुए कोल्हान को ओडिशा में मिला दिया जाये, नीलाम्बर-पीताम्बर, शेख भिखारी, जतरा भगत, बुधु भगत के नाम को मिटाते हुए दक्षिणी छोटानागपुर को छत्तीसगढ़ में मिला दिया जाये, मानभूम, सिंहभूम, धालभूम आदि को प. बंगाल में मिला दिया जाये।

जो हजारों शहादत, कुर्बानी और त्याग के बाद जो झारखण्ड राज्य मिला, उसकी पहचान ही समाप्त कर दी जाये, मतलब न रहेगा बांस न बांजेगी बांसुरी वाली कहावत चरितार्थ करते हुए झारखण्ड को ही समाप्त करने की तैयारी का ऐलान संसद में कर दिया गया। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। पार्टी इसका जोरदार विरोध करेगी। ये कहना है झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्ट्राचार्य का, जो आज एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित कर रहे थे।

सुप्रियो ने कहा कि भाजपा के नौ सांसद लोकसभा में हैं, जिसमें एक ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अब बचे आठ सांसद को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ेगी कि उनका नजरिया क्या है? संघीय ढांचा को तहस-नहस करने के लिए जो ये कर रहे हैं और झारखण्ड को समाप्त करने की जो ये बात कह रहे हैं, उसका पुरजोर विरोध झामुमो करेगा।

सुप्रियो ने कहा कि भाजपा ने विभाजनकारी राजनीति की बुनियाद देश में रख दी है। उसका प्रतिफल बड़ा विकट होनेवाला है। जब से शिवराज सिंह चौहान झारखण्ड के प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हेमन्ता बिस्वा शर्मा सह प्रभारी बनाये गये हैं। हेमन्ता ने आते ही धर्म व जाति के नाम पर जहर घोलना शुरु कर दिया।

ये जहर का ही प्रतिफल है कि संसद में भाजपा के एक प्रतिनिधि ने झारखण्ड के संताल परगना, बिहार के कोसी प्रमंडल और बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद को मिलाकर एक नया केन्द्र शासित प्रदेश की मांग उठा दी। ये साधारण बयान नहीं हैं। ये सोची समझी साजिश है। बिहार, बंगाल व झारखण्ड को विखंडित करने के लिए यह भाजपा की दूरगामी सोच है।

सुप्रियो ने कहा कि दरअसल झारखण्ड में विधानसभा चुनाव जल्द होने हैं। 2025 में बिहार विधानसभा तो 2026 में बंगाल में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए इस बयान को उसी रुप में देखा जाना चाहिए। चूंकि जिस प्रकार पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को इन्होंने दो भागों में बांटते हुए एक लद्दाख और दूसरा जम्मू-कश्मीर बना दिया और आज पांच साल होने को आये, वहां विधानसभा चुनाव तक नहीं करवा पाये, लोकसभा की जम्मू कश्मीर की तीन सीटों पर अपना उम्मीदवार तक नहीं दे पाये, लद्दाख सीट बुरी तरह हार गये। यहां भी उसी प्रकार की विभाजन की तैयारी है।

सुप्रियो ने कहा कि यहां कौन सी डेमोग्राफी चेंज हो रही, उलूल-जूलूल लोग बोल रहे हैं। एक चैनल में बैठकर नक्शा दिखाया जाता है। अरे जो गंगा हमारे यहां बहती है, वहीं बांगलादेश में जाकर पद्मा हो जाती है। उस प्रोटेक्टेड वाटर लैंड पर कौन पहरा देता है, वो तो एसएसबी और बीएसएफ के लोग है। उसका जिम्मा तो गृह मंत्रालय के पास है, तब ऐसे में उसका जिम्मा किस पर हैं।

असम के मुख्यमंत्री हेमन्ता ने खुद कहा था कि घुसपैठ बंगाल और असम से होता है तो असम के मुख्यमंत्री किसके हैं। केन्द्र सरकार से उनका रिश्ता क्या है? अगर बंगाल से घुसपैठ हो रहा हैं तो केन्द्र वहां क्या कर रही हैं? झारखण्ड का तो कोई सीमा भी दूसरे देशों से नहीं लगता। मुद्दाविहीन लोगों ने राज्य के विभाजन की तैयारी शुरु कर दी है।

सुप्रियो ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी अब अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि क्या वे बिहार के विभाजन को तैयार है? क्या भाजपा के स्पीकर और दो-दो उपमुख्यमंत्री इस प्लान के साथ खड़े है? इस पर चर्चा तो झारखण्ड विधानसभा में भी होनी चाहिए कि भाजपा के लोग बताएं कि क्या वे झारखण्ड को विभाजित करना चाहते हैं या नहीं, सरना धरम कोड को लागू करना चाहते हैं या नहीं। असम के मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि उनके चाय बागानों में काम करनेवाले यहां के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देंगे या नहीं, क्योंकि जिसने ये मुद्दा उठाया है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। संसद में कही बात तथ्य और डाक्यूमेंट का काम करते हैं। ये बाते संसद के आर्काइव में चली गई। ये काले शब्द झारखण्ड के लिए अशुभ है।