अपनी बात

भाजपा अब झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन की शरण में मतलब झारखण्ड में डूबती भाजपा को तिनके यानी सीता सोरेन का सहारा

भाजपा की झारखण्ड में इतनी हालत खराब है कि झामुमो का एक साधारण कार्यकर्ता भी अगर भाजपा में शामिल होने की बात किसी भी हाई-फाई भाजपा नेता या फर्श पर पड़े नेता से कर दें तो उसे भाजपा में शामिल कराने के लिए राज्य से लेकर केन्द्र तक का नेता एड़ी-चोटी एक कर देगा। आज वहीं स्थिति दिल्ली से लेकर रांची में देखने को मिली, जब झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन की भाजपा ज्वाइन करने की खबर भाजपाइयों ने ऐसे ढंग से फैला दी, जैसे लगता हो कि भाजपाइयों ने झारखण्ड फतह कर लिया हो। कुछ मूर्ख मीडिया में काम करनेवाले लोल पत्रकारों ने तो यहां तक लिख डाला या दिखला दिया कि झामुमो को बड़ा झटका। लेकिन सच्चाई यह है कि झामुमो को इस घटना से बहुत बड़ी राहत मिली है।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि जो भी व्यक्ति झारखण्ड की राजनीति की एबीसीडी भी जानता है तो उसे पता है कि सीता सोरेन की राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है? सीता सोरेन शिबू सोरेन परिवार के बिना ठीक उसी प्रकार है, जैसे जल बिन मछली। वो अपने बल पर विधानसभा का चुनाव भी नहीं जीत सकती। सीता सोरेन को लोगों ने विधायक के रुप में इसलिए स्वीकारा कि वो झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू हैं।

हालांकि विद्रोही24 को मालूम था कि सीता सोरेन भाजपा ज्वाइन करेंगी, क्योंकि उन पर दबाव पहले से ही बन रहा था। स्थितियां-परिस्थितियां भी ऐसा ही दबाव डाल रही थी। सीता सोरेन को लग रहा था कि भाजपा में जाने से ही उनका कल्याण हो सकता है, उन पर जो आपराधिक मुकदमा चल रहा हैं, उससे राहत भी मिल सकता है, क्योंकि जिस दिन हेमन्त सोरेन को जेल में डाला गया था। सीता सोरेन को भी लगा था कि जब झामुमो व झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर रहते जैसे हेमन्त सोरेन जेल चले गये, तो उसकी (सीता सोरेन की) बिसात क्या है?

राजनीतिक पंडित बताते हैं कि चूंकि सीता सोरेन डेढ़ करोड़ के लेन-देन में फंसी है। सीता सोरेन पर 2012 के मार्च महीने में राज्यसभा चुनाव में डेढ़ करोड़ रुपये के हार्स-ट्रेडिंग का आरोप है। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। दो साल बाद ही 2014 में सीता सोरेन जब फरार थी, तब उनके धुर्वा स्थित सेक्टर 3 विधायक आवास की कुर्की जब्ती भी की गई थी। सीता सोरेन इस मामले में जेल भी जा चुकी है।

सीबीआई का कहना था कि निर्दलीय प्रत्याशी आर के अग्रवाल ने डेढ़ करोड़ रुपये में वोट देने हेतु सीता सोरेन को राजी किया था। अग्रवाल की ओर से यह पैसा सीता सोरेन के पिता बी माझी ने ग्रहण किया था। ये सारी खबर उस वक्त अखबारों की सुर्खियां भी बनी थी, जिसे हर कोई जब चाहे, जब किसी भी डिजिटल समाचार पत्र के माध्यम से समझ सकता है। चूंकि हाई कोर्ट ने इनकी अपराधिक मुकदमा रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट गई थी। सीता सोरेन के कारण ही अब शिबू सोरेन पर भी इसी प्रकार से मिलते-जुलते एक पुराने मामले में तलवार लटकने का खतरा बढ़ गया है।

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि आज की घटना यानी सीता सोरेन के भाजपा ज्वाइन करने की घटना ने झामुमो को बहुत बड़ी राहत दी है। हर बात पर जो सीता सोरेन द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन तथा दिशोम गुरु शिबू सोरेन को जो धमकियां दी जाती थी। अब उन धमकियों से पूरे परिवार को मुक्ति मिल गई। अब वे लोकसभा का चुनाव और बहुत शानदार ढंग से लड़ सकते हैं, तथा इसके लिए जनता को किन्तु-परन्तु का जवाब भी देना नहीं पड़ेगा। जिस बात के लिए कल्पना सोरेन को बार-बार अग्नि परीक्षा देने से गुजरना पड़ता था। वो भी अब खत्म हो गई।

इधर भाजपा को अब परेशानी बढ़नेवाली है। जो कल तक झामुमो को परिवारवाद का तमगा देकर कटघरे में खड़ा करती थी। अब उसे अपने कार्यकर्ताओं तथा मतदाताओं को बताना पड़ेगा कि झामुमो के परिवारवाद के ही एक फुलवाड़ी से आये एक सदस्य को स्वयं की पार्टी में क्या समझ कर शामिल कर लिया। राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि क्या सीता सोरेन को अब सीबीआई के शिकंजे से मुक्ति मिल जायेगी? क्या सीता सोरेन को भाजपावाले इतनी आसानी से भाजपा में वो पद देंगे, जो झामुमो में था। मतलब असली परीक्षा तो अब दोनों का होना है कि दोनों एक दूसरे को किस तरह से मदद करते हैं और यह मदद लोकसभा में क्या गुल खिलाता है। फिलहाल आज की घटना ने झामुमो को तो बड़ी राहत दी है।