BJP को बाबूलाल या बाबूलाल को BJP की जरुरत, हेमन्त को सत्ता से हटाने के लिए पहला प्लान तैयार
जब से हेमन्त सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। कइयों की नींद उड़ गई हैं। केन्द्र में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ही नहीं, बल्कि भाजपा के अंदर ही कई ऐसे नेता हैं, जो कई दिनों से ठीक से सो नहीं पाये हैं। सोने के लिए तो झारखण्ड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी भी नहीं सो पाये हैं, वे हैं तो विदेश यात्रा पर, पर उन्हें रह-रहकर दिल में टीस उठ रही हैं कि हम राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बनने के बाद भी, दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बने, पर हेमन्त ने तो बड़ी तेजी दिखाई, जल्दी ही झामुमो को राज्य की प्रथम बड़ी पार्टी भी बना दिया और खुद मुख्यमंत्री भी बन बैठा।
शायद इसी गम में वे इस बार तीन सीट जीतने के बाद भी कुछ गेम प्लान करने में लग गये और उनकी पहली प्राथमिकता बन गई, अब खुद को सीएम के रुप में किसी भी हाल में प्रतिष्ठित करना और उसके लिए झारखण्ड विकास मोर्चा को भी दांव लगानी पड़ जाये, तो कोई बात नहीं। भाई, जो राजनीति में आता हैं, वो सधुवई करने तो आता नहीं, बल्कि उसकी भी महत्वाकांक्षा होती हैं, और वह अपनी महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है, ऐसे में अगर बाबू लाल मरांडी भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा साधने के लिए भाजपा में जा रहे हैं तो क्या गलत है?
झारखण्ड में बाबू लाल मरांडी का अपना इमेज हैं, उनके शासनकाल में झारखण्ड ने एक नई उड़ान भरी थी, पर ये अलग बात है कि डोमसाइल की आग में झारखण्ड ऐसा उलझा तथा उस समय के नीतीश भक्त लालचंद महतो, जलेश्वर महतो, रमेश सिंह मुंडा, मधु सिंह, बच्चा सिंह आदि नेताओं ने ऐसी लंघी मारी की, वे अर्जुन मुंडा को सत्ता सौंपने के बाद झारखण्ड की मुख्य राजनीति से ऐसे गायब हुए कि उन्हें खुद पता है कि वे अपनी पार्टी को भी ठीक से खड़ा नहीं कर पाये, उनकी पार्टी के चुने विधायक भी उनका साथ नहीं दे पाये और उन्हें ठेंगा दिखाकर रघुवर के पक्ष में हर-हर रघुवर कहने लगे।
जिस अर्जुन मुंडा को उन्होंने उत्तराधिकारी चुना था, बाद में वहीं अर्जुन मुंडा ने उनकी राजनीतिक कद को छोटा करने के लिए वह हर प्रयास किया, जो अर्जुन मुंडा को लगता था, और इस प्रकार भाजपा से जो दूरियां बनी, वो बनती चली गई, लेकिन अब फिर भाजपा के प्रति बाबू लाल का प्रेम और भाजपा का बाबूलाल के प्रति प्रेम का उमड़ना, हर को आश्चर्य कर रहा है।
भाजपा कार्यकर्ता तो मन बना चुके हैं, वे उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब बाबू लाल भाजपा प्रदेश मुख्यालय पहुंचेगे। वे अभी से ही स्वागत के मूड में आ गये हैं। उन्हें लगता है कि अगर बाबू लाल मरांडी भाजपा ज्वाइन कर लेंगे तो भाजपा झारखण्ड में फिर से ऊर्जान्वित हो जायेगी, हेमन्त सोरेन को चुनौती देनेवाला कोई नेता उनके पास होगा, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जो पार्टी और कार्यकर्ताओं की धज्जियां उड़ाई हैं, उससे भाजपा अभी तक उबर नहीं पाई।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो बाबू लाल मरांडी के आने से एक बात तो क्लियर हो जायेगा कि अब रघुवर दास और अर्जुन मुंडा के दिन सदा के लिए लद गये, इनका सूर्य सदा के लिए जयश्रीराम में विलीन (मतलब समझते रहिये) हो गया, क्योंकि बाबू लाल मरांडी के आगे इन दोनों का निस्तेज होना स्वाभाविक है, क्योंकि ये दोनों इनके जूनियर रहे हैं और दोनों इनके मुख्यमंत्रित्व काल में मंत्री पद पर विराजमान रहे हैं, ये अलग बात है कि अभी ये दोनों, इनके नहीं रहने पर काबिल बन गये थे, तथा इन दोनों की पुछ भाजपा में बढ़ गई थी।
भाजपा के वरीय नेताओं और संघ के प्रमुखों को बहुत अच्छी तरह पता है कि बाबू लाल मरांडी का बैकग्राउंड क्या है? बाबू लाल मरांडी ने भी इतने वर्षों तक अपनी हैसियत पता लगा ली है कि अकेले रहने पर तीन से ज्यादा उनकी औकात नहीं, तो ऐसे में क्यों नहीं अपनी-अपनी दोनों ताकत बढ़ायें और एक दूसरे को फायदा पहुंचाएं, क्योंकि हेमन्त सोरेन के सत्ता में आने के बाद जो भाजपा के दिग्गज नेताओं की झारखण्ड में प्लानिंग रही हैं, वो प्लानिंग में बाधाएं आनी स्वाभाविक है।
हेमन्त सोरेन ने तो राज्यपाल के अभिभाषण में क्लियर कर दिया कि सीएनटी-एसपीटी में कोई बदलाव उन्हें मंजूर नहीं, कोई छेड़छाड़ मंजूर नहीं, पर कभी सत्ता में रहने पर बाबू लाल मरांडी इसमें बदलाव के पक्ष में थे, ऐसे में हेमन्त को सत्ता से हटाने के लिए, बाबू लाल मरांडी और भाजपा के दिग्गजों ने एक दूसरे से अगाध प्रेम करने का निश्चय किया है। पहले दोनों ने प्लानिंग भी कर ली है। दोनों ने अपना विलेन हेमन्त सोरेन को बना लिया है। सत्ता के रास्ते से हटाने का पहला प्लान तैयार है और इसे कार्यरुप जल्द दे दिया जायेगा।
लेकिन दूसरी ओर हेमन्त सोरेन की ओर से हेमन्त के जाम्बवन्त ने भी ताल ठोक दी है, कि अगली बार फिर हेमन्त सरकार ही होगी, चाहे भाजपा-बाबूलाल का प्रेम कितना भी परवान क्यों न चढ़े। जाम्बवन्त ने तो ताल ठोक दी है कि अगली बार फिर से हेमन्त की सरकार ही बनेगी, पर इसके लिए हेमन्त को भी जाम्बवन्त की बात माननी होगी। अगर हेमन्त सोरेन ने जाम्बवन्त की बातों को मान लिया, तो फिर समझ लीजिये,आगे क्या होगा? श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड का पहला चौपाई याद करिये – जामवंत के वचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।