अपनी बात

अनिल टाइगर की हत्या के विरोध में भाजपा का रांची बंद शांतिपूर्ण, केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री बंद कराने सड़क पर उतरे, उधर विधि-व्यवस्था को लेकर झारखण्ड विधानसभा में भाजपा का जोरदार हंगामा, विरोध में सत्तापक्ष भी वेल में

कल बुधवार को भाजपा नेता व जमीन कारोबारी अनिल टाइगर की हुई नृशंस हत्या के विरोध में भाजपा द्वारा बुलाया गया रांची बंद पूर्णतः शांतिपूर्ण रहा। रांची के सभी प्रमुख व्यापारिक प्रतिष्ठान व गलियां स्वतःस्फूर्त बंद रही। हम कह सकते हैं कि भाजपा के आज के बंद का स्थानीय नागरिकों का समर्थन मिला, ऐसे भी राजधानी रांची की जनता दिन-प्रतिदिन सरेआम चल रही गोलियां और हत्याओं से आजिज हो चुकी है।

आज के रांची बंद का आजसू, झारखण्ड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा समेत कई जातीय सामाजिक संगठनों ने भी समर्थन किया था। राजधानी रांची की ज्यादातर सड़कें- गलियां इस दौरान वीरान रही। बड़ी गाड़ियां सड़कों पर नहीं दिखाई दी। छोटे-छोटे वाहन भी कम दिखाई दिये। निजी विद्यालयों ने पहले से ही आज के बंद को देखते हुए अपने स्कूल बंद रखे थे। उधर आज के बंद को देखते हुए पुलिस प्रशासन व स्थानीय प्रशासन भी डरी हुई दिखी। इसलिए उसने जहां भी भाजपा कार्यकर्ताओं/नेताओं को देखा, उन्हें हिरासत में लेने की योजना बना डाली। फिर भी भाजपा का आज का बंद सफल ही माना जायेगा।

दूसरी ओर केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ अपने रांची आवास से रांची बंद कराने के लिए अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ रातू रोड में निकल पड़े। लोगों से रांची बंद को सफल कराने का अनुरोध किया और आगे बढ़ते चले गये। संजय सेठ का कहना था कि दिन दहाड़े भाजपा नेता अनिल टाइगर की हत्या ने साबित कर दिया कि रांची में अपराधी बेलगाम है और शासन प्रशासन पूरी तरह से पंगु बन चुका है। इस दिल दहलानेवाले हत्याकांड के बाद आज रांची का जनमानस सड़कों पर है। इस जनविरोध के बाद शायद पुलिस प्रशासन अपनी सक्रियता बढ़ाएं।

उधर झारखण्ड विधानसभा जैसे ही सात मिनट विलम्ब से चला। भारतीय जनता पार्टी के सभी विधायकों ने अनिल टाइगर की नृशंस हत्या और राज्य में गिरती कानून व्यवस्था को लेकर सरकार को घेरना चाहा। भाजपा नेताओं ने कहा कि आसन हत्यारी सरकार को समर्थन देना बंद करें। इसी बीच मंत्री सुदिव्य सोनू ने हजारीबाग की घटना पर कुछ जैसे ही बोलने की कोशिश की, विपक्ष आक्रामक होकर वेल में आ गया। विपक्ष को आक्रामक होता देख, सत्तापक्ष के लोग भी वेल में आ गये। इसी बीच स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो ने सदन 12.55 तक के लिए स्थगित कर दी।

जब सदन दुबारा जैसे ही प्रारम्भ हुआ। विपक्ष फिर आक्रामक दिखा। इसी बीच नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी सदन में उठे और अपनी बातें रखी। उन्होंने कहा कि कांके थाना से मात्र 100-200 मीटर की दूरी पर हत्या हो जाना शर्म की बात है। आश्चर्य तो यह है कि अनिल की हत्या होने के बाद उसका चरित्र हनन का प्रयास पुलिस द्वारा किया जा रहा है। इस घटना को लातेहार में हुई घटना से जोड़ा जा रहा है। मतलब साफ है कि पुलिस महानिदेशक द्वारा इस मामले को कमजोर बनाने का प्रयास हो रहा है।

आज जनता जानती है कि राज्य में विधि-व्यवस्था ठप होती जा रही है। रांची के एसएसपी लॉ एंड आर्डर को कंट्रोल करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि दरअसल अपराध बढ़ने का मूल कारण सारे पुलिस थानों को वसूली में लगा देना है। ऐसे में शासन व्यवस्था कैसे चलेगी, कानून व्यवस्था को नीचे जाना ही है।

नेता प्रतिपक्ष के बाद संसदीय कार्य मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने कहा कि कल की घटना से केवल जनता ही नहीं, सरकार भी मर्माहत है। हम इस घटना को दलीय आधार पर नहीं देखते। इस घटना के दोषी बख्शे नहीं जायेंगे। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी तय है। विपक्ष का कहना कि कानून व्यवस्था ठप हैं, वे इसे नहीं मानते। इससे बेहतर कानून व्यवस्था हो भी नहीं सकती। राधा कृष्ण किशोर ने जैसे ही ये वक्तव्य दिया। प्रेस दीर्घा में बैठे कई पत्रकार अपनी हंसी नहीं रोक सकें। इसी बीच हंगामा चलता रहा और सदन को स्पीकर ने भोजनावकाश तक के लिए स्थगित कर दिया।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि आज का रांची बंद और विधानसभा में हुआ हंगामा, पर सरकार कुछ भी कह लें। लेकिन इतना जरुर है कि जनता की नजरों में सरकार की छवि ढीली पड़ती जा रही हैं। जनता को लग रहा है कि राज्य में किसी की भी जिंदगी अब सुरक्षित नहीं और इसके लिए कोई दोषी हैं, तो राज्य की पुलिस, जो अपने कर्तव्यों का पालन करने में ढीली देखी जा रही हैं।

इस पुलिस को ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों को हिरासत में लेकर तीन-तीन दिनों तक बिना कसूर के हिरासत में रखने में शर्म महसूस नहीं हो रही (याद करिये हाल ही में रांची के डोरंडा थाने की पुलिस द्वारा एक बेकसूर को तीन दिनों तक अकारण हिरासत में रखा गया था, जिस मामले को सीपी सिंह ने सदन में भी उठाया था)। लेकिन गुंडों, अपराधियों और हत्यारों पर अंकुश लगाने में इनके हाथ-पांव फूल जा रहे हैं। अगर इसी प्रकार से चलता रहा, तो पुलिस का कुछ नहीं जायेगा, सरकार की छवि को वो नुकसान होगा, जिसकी भरपाई कभी पुलिस नहीं कर पायेंगी और न सरकार स्वयं कर पायेगी।

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