धन्य हैं सम्मान लेनेवाले और सम्मान देनेवाले और धन्य है अखबार में ऐसे समाचारों को आधा पृष्ठ उपलब्ध करा देनेवाले
ऐसा पत्रकार जो धन-धान्य से परिपूर्ण हैं अगर उसने अपनी बेटियों को आर्थिक रुप से मजबूत कर दिया या लायक बनवा दिया, क्या ऐसा पत्रकार, पुरस्कार या सम्मान के लायक हैं? अथवा वो पत्रकार, सम्मान या पुरस्कार पाने के लायक हैं, जो धन का अभाव होने के बावजूद, अपनी बेटियों के साथ-साथ, दूसरे के घर की बेटियों के जीवन में भी उजाला भर दिया।
सच्चाई तो यह है कि कोई भी पत्रकार अगर अपनी बेटियों के लिए कुछ भी करता हैं या किसी भी महिलाओं की समस्याओं को उजागर करता है, तो यह उसका फर्ज है, न कि वो इसके लिए सम्मान या पुरस्कार का हकदार है। अगर कोई संस्था या फाउंडेशन ऐसे लोगों को सम्मानित या पुरस्कृत करता हैं या कोई पत्रकार उस सम्मान या पुरस्कार को स्वीकार करता है तो इससे साफ संदेश जाता है कि इसमें दोनों यानी संस्था/फाउंडेशन के साथ-साथ उक्त पत्रकार की किसी न किसी प्रकार से कोई न कोई संबंध अवश्य है।
होना तो यह चाहिए, ऐसा देखा भी गया है कि जो सचमुच पत्रकार होते हैं, जैसे ही इस प्रकार की पुरस्कारों/सम्मानों की बात उनके नाम की होती हैं, वो इससे किनारा कर लेते हैं, पर यहां तो बात ही कुछ और है। झारखण्ड में ऐसे कई संस्था/फाउन्डेशन हैं, जो किसी न किसी प्रकार का आयोजन कर, कोई न कोई बहाने से पत्रकारों को सम्मानित करने का मौका नहीं छोड़ते हैं और इनमें वे ही पत्रकार होते हैं, जिन्होंने किसी न किसी प्रकार से उक्त संस्था या फाउंडेशन से संबंधित व्यक्ति को फायदा पहुंचायें हो या उन संस्थाओं से जुड़े हुए लोगों से उन पत्रकारों के मधुर संबंध रहे हो।
आजकल तो देखने में ये भी आ रहा है कि इन संस्थाओं/फाउंडेशन का केवल नाम सुनते ही प्रेस क्लब भी हृदय खोलकर अपना प्यार लूटा रहा हैं और लूटा रहे वे भी हैं जो एक अखबार के संपादक होने के साथ-साथ रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी है। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि जब से जनाब रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष बने हैं, उन्होंने स्वहित में अखबार का इस्तेमाल करना भी खुब शुरु कर दिया है।
जरा देखिये, उपरोक्त 7 मार्च का प्रभात खबर अखबार का कटिंग, जो फाउंडेशन, केन्द्र व क्लब के संयुक्त कार्यक्रम से संबंधित है, उसके कार्यक्रम को कितने प्यार से अखबार में जगह दे दी गई है। पूरा आधा पृष्ठ इस संस्था को समर्पित कर दिया गया है और बारीकी से देखे तो इसी पृष्ठ में ऐसे-ऐसे संपादक/पत्रकार के नाम भी हैं, जिनके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं, उनके बारे में लिखा गया है कि इन्होंने अपनी बेटियों को महान बना दिया।
एक पत्रकार के बारे में तो यह भी लिख दिया गया कि उसने अपनी पत्नी को पंचायत समिति का सदस्य बना दिया। अरे भाई वो पत्रकार भी हैं, उसने अपनी पत्नी को पंचायत समिति का सदस्य भी बना दिया, तो इससे समाज को क्या भला हुआ, भला तो उस पत्रकार को हो गया कि वो पत्रकार भी हैं और साथ में उसकी पत्नी पंचायत समिति की सदस्य भी हो गई।
मतलब तो साफ है कि फाउंडेशन, केन्द्र व क्लब को अपनी वाहवाही करानी है। वाहवाही करने-कराने के लिए कुछ आयोजन तो होने चाहिए। आयोजन होगा तो उसका विषय भी होगा। विषय भी आजकल आसानी से उपलब्ध हो जाता है। चलो कुछ लोगों को इसी बहाने सम्मान दिला देते हैं। अब बाजार में सम्मान देनेवाला और लेनेवाला बहुतायत की श्रेणी में हैं तो फिर कहना क्या हैं? सबकी जय-जय हो गई।