अपनी बात

विक्षिप्त और सनकी दोनों शब्द समानान्तर लगते हैं मगर है नहीं, विक्षिप्त का इलाज हो सकता है, पर सनकी का नहीं – वरीय अधिवक्ता की कलम से

विक्षिप्त और सनकी दोनों शब्द समानांतर लगते हैं मगर है नहीं। विक्षिप्त का इलाज हो सकता है। सनक का कोई इलाज नहीं। आज व्यवहार न्यायालय में, गवाही कराने गया था। गवाह के साथ, (शिकायतकर्ता व अभियुक्त का नाम जानबूझकर कर नहीं लिख रहा) गवाह का प्रतिप्रशिक्षण शुरू हुआ। एक ही सवाल को अनेकों तरह से बार बार पुछा जाने लगा। तो मैंने आपत्ति की, कानून के तहत आप ऐसा नहीं कर सकते, अनर्गल सवाल नहीं पुछ सकते।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मुख्य प्रशिक्षण के बाद प्रति प्रशिक्षण में मुख्य प्रशिक्षण में जो गवाह ने बोला है, उस पर ही सवाल कर सकते हैं। मैंने उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय से प्रार्थना की। इस पर अभियुक्त मुझसे ही तर्क-कुतर्क करने लगे। मैंने उनसे निवेदन किया। आप न्यायालय के समक्ष प्रार्थना करें। यह न्यायालय है यहां पर तर्क संगत बहस होता है। जो मैंने बोला अंग्रेजी में है।

“This is a court of law where every submission is made as per law, arguments are also based on legal basis only by raising voice you cannot bark upon the advocate and public, please make your submission to Honourable court, not raise your voice on advocate or public.”

न्यायालय ने मेरी बातों को कानून सम्मत मानते हुए मेरे प्रार्थना को स्वीकार कर लिया, तथा उन्हें सिर्फ मुकदमा के बात पर गवाह से प्रश्न करने को बोला। इस बात पर वो भंयकर रूप से क्रोधित हो गए, क्रोधित ही नहीं, आग बबूला हो कर मेरे तरफ मुंह कर के जोर-जोर से चिल्लाने लगे, मैंने फिर न्यायालय से प्रार्थना किया।

उसके उपरांत तो वो भंयकर आग बबूला हो गए और अपने दाहिने हाथ को मेरे उपर चला दिया, मुझे लगा तो नहीं, मगर मैंने उनका हाथ पकड़ पर न्यायालय को दिखाया, देखिए ये अभियुक्त हैं। यही इन पर आरोप है, न्यायालय कक्ष के बाहर सूचक को मारने का। यही कार्य यह न्यायालय के अंदर करना चाह रहे थे। न्यायालय ने कहा आप एक शिकायत वाद दे दें। कैमरा का डांटा में सब संरक्षित रहता है।

मैंने प्रार्थना की कोई जरूरत नहीं। शिक़ायत से फिर यह मुकदमा रुक जाएगा, हो सकता है यह कार्य मुकदमा रोकने के लिए जानबूझकर किया हो। सन 2012 से 2023 हो गया है। 11 वर्ष। मैं कोई शिकायत नहीं करने वाला। इस प्रकार के इनकी हरकतों से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बस यही अंतर है विक्षिप्त और सनकी में। विक्षिप्त का इलाज संभव है। सनकी लाइलाज है। मुझे आज और भी जगह जाना था। 15.45 न्यायालय में ही हो गया। कहीं नहीं जा पाया। पूरी बातें अक्षरशः लिखने का प्रयास किया हूं।

– अभय मिश्रा, वरीय अधिवक्ता, झारखण्ड उच्च न्यायालय