लोगों को मूर्ख बनानेवाले ब्राह्मणवेशधारी बताएं कि किस शास्त्र में लिखा है कि धनतेरस के दिन सामान खरीदें
आज धनतेरस के बाजार सजे हैं। लोभी पंडितों, अज्ञानियों, मूर्खों और अखबारों-चैनलों में ब्राह्मणवेश धारण कर जनता को धोखा देनेवालों समूहों ने नाना प्रकार से आम लोगों के बुद्धि को भ्रमित कर रखा हैं और वे आज के महत्वपूर्ण दिन को सिर्फ और सिर्फ कुछ खरीदने और बेचने तक ही सीमित कर दिया है। जिससे सामान्य नागरिक अपने बुद्धि-विवेक को नष्ट करता हुआ, अपने घर में रखे संचित धन को सम्मान करने के बजाय, उसका उचित प्रयोग करने के बजाय, उसका संवर्द्धन करने के बजाय व्यापारियों के यहां जमा करवा दे रहा हैं, अब ऐसे में धनतेरस किसकी मन रही हैं, व्यापारियों की, अखबारों-चैनलों की या राज्य की आम जनता की?
जब मैं इन ढोंगी अखबारों-चैनलों के संपादकों तथा इन अखबारों-चैनलों में ब्राह्मणवेश धारण कर जनता को धोखा देनेवालों समूहों से पूछता हूं कि किस वेद, पुराण, शास्त्र, उपनिषदों में धनत्रयोदशी के दिन धन खरीदने की बात कही गई हैं, तो सबकी बोलती बंद हो जाती हैं, क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि किसी भी भारतीय वांग्मय में इस बात का उल्लेख नहीं कि धनत्रयोदशी के दिन बाजार जाकर सामान खरीदी जाये।
सुप्रसिद्ध विद्वान पं. कमलेश पुण्यार्क तो साफ कहते है कि दरअसल हमारे भारतीय वांग्मय में कही भी धन की महत्ता को नहीं दर्शाया गया और न ही कोई ऐसा मंत्र हैं, जिससे यह पता चलता हो कि धनत्रयोदशी या धनतेरस के दिन बाजार से सामान खरीदे जाये, ये जो आजकल पुष्य नक्षत्र के नाम पर, धनतेरस के नाम पर जो खेल चल रहा हैं, वह बाजारवाद का देन है।
सही मायनों में पूछा जाये तो एक लोकोक्ति हैं कि दुनिया में जब तक मूर्ख रहेंगे, लालची रहेंगे, धूर्त कभी भूखों नहीं मर सकते, उसका यह सुंदर उदाहरण हैं, धनत्रयोदशी के दिन सजे बाजार व अखबारों-चैनलों में की जा रही इसकी मार्केंटिग। यहां धूर्त व्यापारी जिन्होंने बाजार सजाये हैं, धूर्त अखबार व चैनल, धूर्त ब्राह्मण वेश धारण कर सबको उल्लू बनाने का महारत हासिल करनेवालों का समूह तथा मूर्ख और लालची वह जनता हैं, जो इनके जाल में फंसकर, अपने संचित धन को सही समय पर उपयोग न कर, उसका दुरुपयोग कर डालती है।
नहीं तो धन की इतनी ही महत्ता होती तो हमारे विद्वानों ने यह कभी नहीं कहा होता कि
अधमाः धनम् इच्छन्ति। धनं मानं च मध्यमाः।।
उत्तमाः मानं इच्छन्ति। मानो हि महतां धनम्।।
अर्थात् जो दुष्ट हैं, वे धन की इच्छा करते हैं, जो मध्यम हैं वे धन और मान दोनों की इच्छा रखते हैं, पर जो उत्तम लोग हैं, वे सिर्फ सम्मान रुपी धन की ही कामना करते हैं। महापुरुषों के लिए सबसे बड़ा धन सम्मान ही हैं।
सच्चाई यह है कि धनत्रयोदशी के दिन अथवा कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, जिन्हें आयुर्वेद का प्रणेता कहा जाता हैं, ऐसे भी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना जाता है, आप निरोग रहकर ही धन या किसी भी चीज का सदुपयोग कर सकते हैं, इसलिए आप स्वस्थ रहे, इसको लेकर सजग होने की जरुरत ही आज के दिन के महत्व को दर्शाता है, आज भी जो लोग आयुर्वेद से जुड़े हैं, या शाकद्वीपीय ब्राह्मण होते हैं, जिन्हें पूर्व में चिकित्सा क्षेत्र में महारत हासिल थी, इस दिन को विशेष रुप से मनाते हैं, विशेष कार्यक्रम रखते हैं, बड़े ही पारम्परिक तरीके से इस उत्सव को मनाते हैं।
यानी होना यह चाहिए कि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेष्ट रहने का संकल्प लें, साफ-सफाई पर ध्यान दें, स्वच्छता को अपनाएं, और हो क्या रहा हैं, जिसके पास जो भी थोड़ा धन घर में रखा हैं, बेमतलब की चीजें जो भले ही उनके लिए अनुपयोगी ही क्यों न हो, बाजारवाद के चक्कर में, अखबारों-चैनलों के भ्रमित करनेवाले अखबारों के विज्ञापन के चक्कर में, व्यापारियों के यहां रख आ रहा हैं, और दिवाली किसकी मन रही हैं, बड़े-बड़े धन्नासेठों की और कंगाल कौन हो रहा हैं, तो यहां की जनता।
आज भी जिस गांव में अखबार व चैनल की धमक नहीं पहुंची हैं, जरा वहां जाकर देख लिजिये, आज पूरा गांव साफ-सफाई में लगा होगा, यानी आज के बाद विशेष सफाई अभियान बंद, क्योंकि आज सायं के बाद से तो फिर पंचदिवसीय पूजा प्रारम्भ हो जायेगी, फिर मौका किसको मिलेगा, कि वह जाकर साफ-सफाई चलाएं, और जिसने साफ-सफाई नहीं की, उनके यहां शुभदाता गणेश और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का आना निषेध हो जायेगा। यहीं कारण है कि आज हर घर में लोग एक झाड़ू अवश्य खरीदते हैं, और उसका मूल लक्ष्य सफाई से ही हैं, और यह सफाई का विशेष दिवस या आरोग्य का विशेष दिवस तब तक चलता रहेगा, जब तक पूरे गांव से दरिद्रा नहीं भगा दी जायेगी।
जरा सोचिये हमारी गांव की समृद्ध परम्परा और समृद्ध भारतीय संस्कृति को किस प्रकार बाजारवाद के चक्कर में, धूर्त अखबारों-चैनलों के चक्कर में , ब्राह्मणवेशधारी धूतों के समूहों के चक्कर में, धन्ना-सेठ बर्बाद कर रहे हैं, अब भी वक्त हैं, खुद को पहचानिये, भारत को पहचानिये, बाजारवाद के चक्कर में मत पड़िये, अपने धन का सदुपयोग करिये, अगर आपको ईश्वर ने धन दिया हैं, तो आप आस-पास में देखिये, कि आपके अगल-बगल में किसी खुद्दार के घर में दीपावली मनाने का संकट तो नहीं उत्पन्न हो रहा।
और अगर ऐसा हैं तो उसके लिए आप खुद दीप बन जाइये, और उसके दुख में शरीक होकर, असली दीपावली मनाइये, धन-त्रयोदशी यहीं कहता हैं, याद रखिये मैने खुद्दार व्यक्ति का दृष्टांत दिया हैं, न कि जिन्होंने भीख मांगने को पेशा बना रखा हैं, क्योंकि जिन्होंने भीख मांगने को पेशा बनाकर रख दिया हैं, उसकी मदद करना भी एक प्रकार का अपराध हैं, क्योंकि फिर वह हमेशा आप पर आश्रित रहेगा, और आपके ही सपनों को नष्ट कर देगा। इसलिए धनत्रयोदशी के महत्व को समझिये।
Yesa ho Sakta hai , ki jis Tarah se year end par compnies stock clearance Karti hai using Tarah se vyapari bhi depawali par nai bahi khate banane ke pahle apnai sales badane ke liya Shan teras Ka use karte ho or iske liya inhone Kuch pandito Ko prlobhan dekar ise Apne fayde ke liya logo me pracharit Karwa Diya ho taki Bo dhanteras ke bad apni acchi Diwali mana sake .