भाई, अब तो अन्नपूर्णा को नई जगह और भाजपा को नया नेता मिल गया, फिर भी इनके मुंह क्यों लटके हैं?
भाई एक वक्त था, जब झारखण्ड नहीं बना था, एक बिहार था, जिसमें झारखण्ड भी समाया हुआ था। लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए, और देखते ही देखते वे पूरे देश में अपने आचरण व व्यवहार से छा गये। जो भी गरीब, चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो? उन्हें देखता तो अपनी छाती फुला लेता, उसे लगता कि उसके घर का नेता पहली बार सत्ता में आया हैं, वह उस की बात सुनेगा।
पिछड़ों–दलितों–अल्पसंख्यकों ही नहीं बल्कि वह सवर्ण वर्ग जो बहुत ही गरीबी से जीवन–बसर कर रहा था, उसे भी इनसे आस जगी और लीजिये लालू प्रसाद कहां से कहां पहुंच गये। राज्य के छोटे से इलाके छपरा को भी उन्होंने प्रतिष्ठित कर दिया, पूरा देश धीरे–धीरे जैसे आज ‘मोदी–मोदी’ चिल्ला रहा, उस वक्त ‘लालू–लालू’ कह रहा था। लालू प्रसाद ने वैसे–वैसे लोगों को संसद में भेजा, जिन्होंने कल्पना भी नहीं की थी, कि वे नगरपालिका का भी चुनाव जीत सकते हैं, पर ये तो लालू का करिश्मा था। लालू चाहते थे कि जिन्होंने कभी उजाला नहीं देखी हैं, उन्हें उजाला दिखाया जाय और उन्होंने कर दिखाया। पटना से रामकृपाल यादव और गया से भगवतिया देवी संसद पहुंच गई।
जिनके साथ दुर्व्यवहार होता था, उन्हें सम्मान दिलाया, जिनकी कोई पहचान नहीं थी, उन्हें पहचान दिलाई और आज क्या है? वहीं लोग आज लालू प्रसाद को आंख दिखा रहे हैं, उनकी पार्टी से दूरियां बना रहे हैं, पर इन्हीं में से कई ऐसे भी नेता हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी लालू प्रसाद का साथ नहीं छोड़ा, जिसमें आप रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं का नाम ले सकते हैं।
आज लालू प्रसाद चारा घोटाले में दोषी करार दे दिये गये हैं, और वे कारागार में सजा काट रहे हैं, हम आपको बता दे कि अभी निचली अदालत ने उन्हें सजा करार दी है, जबकि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की बात अभी बाकी है, ऐसे भी देश में 1947 के पूर्व न तो किसी अंग्रेज को और न ही आजादी के बाद किसी नेता को सजा मिली है, और इस मान्यता के अनुसार एक न एक दिन लालू यादव भी चारा घोटाले मामले में बाइज्जत बरी होंगे, ये लालू के चाहनेवाले खूब अच्छी तरह जानते हैं, और शायद इसीलिए प्रत्येक नेता जब कहीं फंसता है, तो उसका पहला संवाद होता है कि उसे न्यायालय पर पूरा भरोसा है, क्योंकि वह मुंशी प्रेमचंद का ‘नमक का दारोगा’ बहुत अच्छी तरह पढ़कर बड़ा हुआ हैं, जब मुंशी वंशीधर, पं. अलोपीद्दीन को अदालत तक पहुंचाते हैं और चोरी के आरोप में धन्नासेठ बने अलोपीद्दीन अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते है।
आज अन्नपूर्णा के भाजपा ज्वाइन करने से राजद का एक–एक सिपाही–कार्यकर्ता हैरान है, क्योंकि वह सपने में भी नहीं सोच सकता, कि अन्नपूर्णा देवी ऐसा कर सकती है। सभी को लगता था कि अन्नपूर्णा एक दूसरे मिट्टी की बनी है, सभी पाला बदल सकते हैं, पर अन्नपूर्णा नहीं। लेकिन अन्नपूर्णा ने वह कर दिखाया, जिसका अंदेशा न राजद के सिपाही को था और न लालू प्रसाद को। बेशक, जब ये बात लालू प्रसाद के कानों में गई होगी, तो वे बहुत मर्माहत हो गये होंगे, उन्हें नींद भी नहीं आई होगी, कि अन्नपूर्णा भी ऐसा कर सकती है।
पर कहा जाता है कि जब समय खराब होता है तो अपनी परिछाई भी दगा दे जाती है, तो क्या सचमुच लालू यादव का समय समाप्त हो गया? राजद समाप्त हो गया, उनकी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं रहा। हमें नहीं लगता, क्योंकि लालू प्रसाद स्वयं में एक संस्था है, जिन पर आज भी समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जिनकी संख्या करोड़ों में हैं, उन्हें अपना नेता मानता है, उनके दिलों से कोई लालू प्रसाद को डिलीट नहीं कर सकता, और यहीं कारण है कि लालू प्रसाद को जेल में रहने के बावजूद किसी यूपीए के नेता की हिम्मत नहीं कि उन्हें नजरदांज कर महागठबंधन बनाने की हिमायत कर सकें।
राजद का एक समर्पित कार्यकर्ता रोते हुए विद्रोही24.कॉम को बताता है कि कौन ऐसा नेता नहीं हुआ, जिनको लालू जी ने नहीं उपर उठाया और जब वे आज जेल में बंद है, तो अपने ही लोग, उन्हें आंख दिखा रहे हैं, पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, ये दगाबाजी नहीं तो और क्या है? ऐसे भी कहा जाता है कि मित्र व सहयोगी, संकट में ही नजर आते हैं, पर राजनीतिज्ञों का एक अपना अलग ही चरित्र होता है, जो जितना बदमाश वो उतना बड़ा नेता, जो जितना पार्टी बदले, वो उतना बड़ा करिश्माई, जो जितना झूठ, फरेब, इधर–उधर, लम्पटई और जमीर बेचे वो उतना ही महान। कहने का तात्पर्य हैं कि अब इन नेताओं से चरित्र की बात ही न करें, नहीं तो आपको बैठे–बैठाएं डायबिटीज, ब्ल्डप्रेशर व तनाव से संबंधित सारी बिमारियां मिल जायेगी फिर आप कहीं के नहीं रहेंगे।
जरा देखिये, कल तक बिमारी का बहाना बहानेवाली, संवाददाता सम्मेलन कराकर भाजपा ज्वाइन नहीं करने की घोषणा करनेवाली तथा भाजपा में शामिल होने की बात को मात्र अफवाह बतानेवाली अन्नपूर्णा अपने इष्टमित्रों के साथ दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में भाजपा में शामिल हो गई। उन्हें पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ाने का भी फैसला कर लिया है। घनघोर सांप्रदायिकता को जन्मदेनेवाली पार्टी अब भूपेन्द्र यादव को लालू यादव के काट के रुप में बिहार–झारखण्ड में पेश कर रही हैं।
पर भाजपा को नहीं पता कि यहां का यादव समाज कभी भी लालू को अपने दिल से नहीं हटा सकता, ये उतना ही सत्य है, जितना सूर्य का पूर्व में उगना। आश्चर्य है कि जो अन्नपूर्णा दिन–रात पानी पी–पीकर भाजपा को कोसती थी, आज वहीं अन्नपूर्णा अब भाजपा का दामन थामकर, राजद को कोसेंगी। उस राजद को, उस लालू यादव को जिन्होंने उन्हें इस लायक बनाया कि वे भाजपा में शामिल होकर, उन्हें ही कोसे। भाई, सचमुच में क्या राजनीति है? और क्या उसका चरित्र?
झारखण्ड में महागठबंधन ने भाजपा को इस प्रकार घेर रखा है कि यहां शायद ही किसी सीट पर भाजपा जीत पाये, क्योंकि इस बार आदिवासी, अल्पसंख्यक, सवर्ण, पिछड़े–अतिपिछड़े ऐसे बिदके हुए हैं कि लोकसभा का जो चुनाव परिणाम आयेगा, वह 2004 की पुनरावृत्ति न करा दें, शायद यही खतरा को भांप कर भाजपा ऐसी–ऐसी हरकत कर रही है कि इससे भाजपा को पसंद करनेवाला वर्ग भी भाजपा को इस मामले में कोसे बिना नहीं रह रहा।
ऐसे भाजपा व संघ के कार्यकर्ता तो साफ कह रहे हैं कि ये ठीक है कि वे मोदी को मानते हैं, भाजपा को मानते हैं, पर ये क्या जिसने जिंदगी भर हमारे नेता व हमारे सिद्धांतों पर अंगूलियां उठाई, उसे आज हम भाजपा के नेताओं के कहने पर अपना नेता मान लें, वोट दे दें, इससे अच्छा रहेगा कि वे महागठबंधन को वोट दे दें, क्योंकि पहली बार हुआ कि भाजपा अपने ही नेता–कार्यकर्ता को ठेंगा दिखाकर, बाहर से आयातित नेताओं पर ज्यादा भरोसा कर रही हैं, अगर उसे आयातित नेता पसंद हैं तो उन्हें आयातित कार्यकर्ताओं पर भी भरोसा होना चाहिए, हम क्यों झोला ढोए?
शायद भाजपा नेता व अन्नपूर्णा देवी को मालूम हो गया है कि उनके इस आचरण से उनके दोनों ओर के समर्पित कार्यकर्ता उनके प्रति कैसा भाव रख रहे हैं? शायद यहीं कारण है कि अन्नपूर्णा के भाजपा मुख्यालय में कदम रखने के बावजूद भी अन्नपूर्णा के चेहरे पर वो मुस्कान नहीं दिख रही और न भाजपा के उन नेताओं पर वो मुस्कान दिख रही है, जिससे वे खुद को विक्टरी की हालत में दिखा सकें, सच्चाई तो यह है कि राजनीतिक पंडित बताते है कि अन्नपूर्णा के भाजपा में शामिल होने से भाजपा ने एक अपना बड़ा वोट बैंक हाथ से गंवा दिया तो अन्नपूर्णा ने अपने जीवन भर की पूंजी ही गंवा दी। ऐसे में जनता के नजरों में इनके क्या हालत हैं, जनता से क्या छुपा है?
प्रभात भुइयां को शामिल कराने के बाद भी टिकट नहीं दिया