अपनी बात

लेकिन भाजपावाले ज्यादा न उछलें, राम टहल चौधरी से वे अपना झोला ढोवा लेंगे, इसका मौका राम टहल चौधरी इस जिंदगी में अब तो नहीं ही देंगे

भाजपाइयों ने समाचार दिया है कि भाजपा से पांच बार सांसद रहे राम टहल चौधरी एक दो पार्टियों के बगान में टहलने के बाद, फिर से भाजपा में शामिल हो गये हैं। लेकिन ये कहां शामिल हुए हैं, क्यों शामिल हुए हैं, किसके लिए शामिल हुए हैं, कौन-कौन लोग उनके दरवाजे पर पहुंचे हैं, इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया है। जोर इन्हें देना भी नहीं चाहिए, क्योंकि राम टहल चौधरी सभी का जवाब देना जानते हैं, जैसा कि जवाब उन्होंने कांग्रेस के नेता सुबोध कांत सहाय और उनकी बेटी यशस्विनी सहाय के घर से निकलने के तुरन्त बाद एक पत्रकार को दिये गये जवाब में कहा था कि वे कांग्रेस में झोले ढोने के लिए नहीं गये थे।

मतलब साफ है कि राम टहल चौधरी को अगर कोई ये सोचकर पार्टी में शामिल करता है कि वे उसका झोला ढोयेंगे तो वे समझ लें कि वे झोला ढोनेवाले नहीं, बल्कि झोला ढुलानेवालों में से हैं। ऐसे भी अब उनकी उम्र भी नहीं कि वे किसी का कुछ ढोये, बुजुर्ग है, उनका आशीर्वाद ही काफी है, अगर वे आशीर्वाद दिल से दें तो, लेकिन हमें नहीं लगता है कि वे दिल से किसी के साथ अब जुड़ भी पायेंगे। क्योंकि भाजपा के छोड़ने और कांग्रेस से जुड़ने और कांग्रेस को छोड़ने और कल भाजपा से जुड़ने के बीच रांची के स्वर्णरेखा, जुमार और हरमु नदी में बहुत सारी पानी बह गया है। मतलब समझ ही गये होंगे।

पहली बात अगर राम टहल चौधरी को सचमुच भाजपा से प्रेम होता, भाजपा से जुड़ने की लालसा होती तो यह कार्यक्रम भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित होता, जैसा कि भाजपा बराबर किया करती है। लेकिन राम टहल चौधरी के आवास पर ये कार्यक्रम का आयोजन होना, साफ बताता है कि राम टहल चौधरी को पार्टी में शामिल करना भाजपा की मजबूरी है, न कि राम टहल चौधरी की मजबूरी।

ऐसे भी राम टहल घर में हैं। वे आवेदन देने भाजपा के किसी अधिकारी को थोड़े ही गये थे कि हमें भाजपा में शामिल कर ही लो। दूसरी बात राम टहल चौधरी से भाजपा वाले ये सोचेंगे कि इस चुनाव के अंतिम वक्त पर उनसे कुछ जगहों पर कार्यक्रम करवा लेंगे तो भाजपा वाले भी जानते है कि रामटहल चौधरी झोला ढोने में विश्वास नहीं करते।

हां, रामटहल चौधरी का कद रांची में कितना बड़ा है। वो इसी से पता लग गया कि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री तरुण चुग उनके आवास पर पहुंचे और पार्टी सदस्यता का कूपन ले जाकर उनके घर पर ही सदस्यता का पर्ची भरवा पार्टी में शामिल किया। अन्य के साथ ऐसा नहीं होता। कोई पार्टी का कूपन लेकर किसी के घर नहीं जाता। अब लोग जाते है, क्योकि मौका है, दस्तूर है, पार्टी को भी पता है कि पूरे प्रदेश में भाजपा की स्थिति डांवाडोल है।

रामटहल चौधरी के आवास पर जो भी भाजपा नेता गये थे, वे सारे के सारे खोखले दावों वाले थे, जिनका रांची में ही कोई जनाधार नहीं, ये अलग बाते है कि राज्यसभा में पहुंचकर जाकर इन्होंने पार्टी की रोटी तोड़ी, जमकर मजे लिये। देश और रांची को क्या दिया? वे ही बेहतर बता सकते हैं। जैसे- महेश पोद्दार और अजय मारु। बाकी लोगों के बारे में लिखना, विद्रोही24 जरुरी भी नहीं समझता।

हां, लेकिन इतना तय है कि राम टहल चौधरी इन सबसे अलग, ऐसे नेता तो जरुर है कि जिनका अपना जनाधार है, लोग उन्हें आज भी अपना नेता मानते हैं। अपने जातिगत समाज में तो उनका पूरा जनाधार है। इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता। इन्हीं के बनाये कई नेता एनडीए में रहकर परम आनन्द की प्राप्ति कर रहे हैं और स्वयं को मठाधीश कहलाने से बाज भी नहीं आ रहे, शायद इसी को राजनीति कहते हैं कि जिसकी खाओ, जिसके कंधे पर पांव रखकर आगे बढ़ो, उसे ही जरुरत पड़ने पर ठेंगा दिखा दो।