धर्म

क्रिया योग के प्रयास मात्र से, उसकी साधना से मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना तीव्रता से जागृत होती हैः ब्रह्मचारी शांभवानन्द

योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए आज ब्रह्मचारी शांभवानन्द ने कहा कि प्रेमावतार गुरु परमहंस योगानन्द जी ने कहा था क्रिया योग के प्रयास मात्र से, उसकी साधना से मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना तीव्रता से जागृत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि क्रिया योग की साधना, यम-नियम का पालन और प्रभु पाने की तीव्र लालसा ही मनुष्य में अद्भुत भक्ति को जन्म देती है।

ब्रह्मचारी शांभवानन्द ने कहा कि साधना के उच्चतर स्तर तक पहुंचने के क्रम में कई परीक्षाओं से भी भक्तों का सामना होता है। हो सकता है कि उन परीक्षाओं में असफलता भी मिले। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि आप निराश हो जाये। निराशा की जगह आपकी ईश्वर पर भक्ति और अटूट हो जानी चाहिए, ईश्वर के पास जाकर अपनी किये गलतियों की क्षमा मांगना उस वक्त समय की मांग होती है। उन्होंने कहा कि भक्ति, विश्वास व समर्पण ये तीन ऐसी महत्वपूर्ण चीजें हैं जो श्रद्धा को जन्म देती है।

उन्होंने संत मातुस्की की कथा सुनाई कि उन्होंने कैसे मोनो प्लेन में बैठे एक चुहे के द्वारा तार कुतरने की घटना से अपनो मोनो प्लेन के साथ-साथ अपनी जान भी बचा ली। शांभवानन्द ने कहा कि संदेह हर साधक के मन में आता है, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं, पर संदेह पर सफलता भी उतना ही जरुरी है, और ये तभी संभव है, जब गुरु कृपा आपके उपर है।

शांभवानन्द ने कहा कि पवित्र जीवन जीने के लिए श्रद्धा की सर्वोच्च भावना का अपने हृदय में निहित होना बहुत ही जरुरी है। ईश्वर के समीप ले जाने के लिए श्रद्धा ही वो एकमात्र शक्ति है, जो अपने आप में काफी है, क्योंकि श्रद्धा के प्रकट होने से ही ईश्वर तुल्य गुरु आपके सन्निकट होते हैं। ऐसे भी जिनके अंदर श्रद्धा नहीं होती, उनके जीवन के अंदर आनन्द का प्रार्दुभाव हो ही नहीं सकता और जिनके अंदर श्रद्धा होगी, वो व्यक्ति कभी दुखी हो ही नहीं सकता।

शांभवानन्द ने कहा कि एक बार जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा था कि जैसे अंकुल के बीज, वृक्षों के साथ, जैसे लोहा चुंबक के साथ, जैसे पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ, जैसे नदिया समुद्र के साथ, जैसे लताएं वृक्षों के साथ अपना सद्ववहार करती है और अपने जीवन के लक्ष्य को पा लेती है, उसी प्रकार जिसके जीवन में भक्ति का समावेश हो गया, वो ईश्वर तुल्य गुरु को प्राप्त कर ही लेता है। उसका जीवन आनन्दमय हो ही जाता है।

शांभवानन्द ने कहा कि कभी ये संदेह नहीं करें कि ईश्वर आपके पास नहीं आयेंगे। ईश्वर को आपके पास आना ही हैं। बस अपनी साधना को गहराई में ले जाये। उन्होंने कहा कि गुरुजी की बतायें मार्गों पर चले, ईश्वर मिलेंगे। उनकी पाठमालाओं को बारम्बार पढ़े, ईश्वर मिलेंगे। ईश्वर का मिलना, न मिलना ये सब आपके उपर है। गुरुजी और ईश्वर सर्वव्यापी है। उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं हैं।

यह उसी तरह है, जैसे कि किसी व्यक्ति ने यह ठान लिया है कि उसे नाखुश ही रहना है, तो उस व्यक्ति को कोई भी व्यक्ति खुश नहीं रख सकता और जिसने ये ठान लिया कि उसे हमेशा खुश रहना है, तो उसे कोई व्यक्ति दुखी किसी भी हाल में नहीं कर सकता।