CAA को रवीश की नजरों से अच्छा है कि आप वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर की नजरों से देखें, यह जरुरी भी है
मैं भी 53 वर्ष पूरे करने जा रहा हूं। पत्रकारिता की उम्र मेरी भी 33 वर्ष से कम नहीं हैं। इस पत्रकारिता के दौरान पत्रकार के वेश में कई लुच्चे-लफंगे, चिरकूट टाइप के प्रतिभावान पत्रकार भी मिले। कई तो मुख्यमंत्रियों के चरण स्पर्श करते नजर आये, तो कुछ मुख्यमंत्री के चरणारविन्द को प्राप्त कर राज्यसभा ही नहीं, बल्कि उसके अंदर भी जहां तक हो सकें, उच्च पद को प्राप्त कर लिये। कई तो पद्मश्री भी प्राप्त कर लिये और जब अपने क्षेत्र के स्टेशन पर पहुंचे तो उन्हें रिसीव करने के लिए गिनती के मात्र तीन व्यक्ति ही मौजूद थे, जिनकी आज भी कोई पूछ नहीं, कारण सभी जानते हैं।
इस बिहार-झारखण्ड में ऐसे भी कई पत्रकार हैं, जिन्हें कोई लाव-लश्कर की जरुरत नहीं, उन्हें जो भी ईश्वरीय कृपा से प्राप्त हैं, उसको ही सर्वोपरि मानकर शान से जिंदगी गुजार रहे हैं, किसी से भय नहीं खाते, तथा सत्य को डंके की चोट पर कहते हैं, उन्हीं में से एक हैं पटना निवासी सुरेन्द्र किशोर। सुरेन्द्र किशोर जी से मैं आज तक नहीं मिला हूं, कभी भेंट भी नहीं हैं, एक बार सिर्फ मोबाइल पर बातचीत हुई, वह भी वार्ता पत्रकारिता और संभावित राजनीति को लेकर ही थी, शायद उन्हें पता भी नहीं हो, क्योंकि हमारे जैसे कई लोगों के उनके पास फोन आते-जाते रहते हैं, भला उनमें से हम उन्हें याद हो, संभव नहीं।
लेकिन सुरेन्द्र किशोर जी, फेसबुक में हमारे मित्र हैं। डंके की चोट पर सत्य लिखते हैं, और मैं इसी सत्य को हृदय से स्वीकार करता हूं। मैं इसके पूर्व भी लिख चुका हैं और आज एक बार फिर लिख रहा हूं, जो पत्रकारिता में हैं, या पत्रकारिता में आना चाहते हैं ( वे नहीं, जो पत्रकारिता को ग्लैमर और पैसे-पद कमाने का जरिया समझ कर इस क्षेत्र में आ रहे हैं ) उन्हें सुरेन्द्र किशोर जी के सोशल साइट पर जाना चाहिए, और अपना ज्ञानवर्द्धन करना चाहिए, क्योंकि वे जो भी लिखते हैं, उनके प्रमाण मौजूद रहते हैं, बाकी लोग तो समयानुसार अपनी जरुरतों के अनुसार कलम व कागज बदल लेते हैं, जरा देखिये आज उन्होंने सोशल साइट पर क्या लिखा है? और कैसे एक सेराज अनवर की बातों का जवाब दिया है?
सचमुच मैं सुरेन्द्र किशोर जी का कायल हूं, उनसे सीखता हूं। उनके कई आलेख हमने अखबारों में पढ़े हैं, जो आज भी अक्षरशः याद है। मैं उनसे बिना आज्ञा लिये, चूंकि फेसबुक फ्रेंडस हैं तो इस नाते तो हमें इतना अधिकार है कि उनसे बिना अनुमति के कुछ प्राप्त करुं और औरों तक उन बातों को पहुंचाऊं जो सत्य है। तो लीजिये, सुरेन्द्र किशोर जी ने सीएए को लेकर पूरे देश में जो विभिन्न राजनीतिक दलों, कुछ चैनलों, कुछ मठाधीशों द्वारा जो छाती पीटा जा रहा हैं, उसकी कैसे उन्होंने सैद्धांतिक विरोध अपना दर्ज किया है, क्यों सीएए जरुरी हैं, इसका मार्गदर्शन किया हैं, वो काबिले तारीफ है, लीजिए पढ़िये।
‘‘इहां कुम्भड़ बतिया कोई नाहीं’’
आज न तो इमर्जेंसी है और न ही 1947 की तरह देश की शासन -व्यवस्था-सेना आदि अ-सुगठित व कमजोर है। आज देश की अधिकतर जनता भी देश की एकता के प्रति अपेक्षाकृत अधिक भावुक व प्रतिबद्ध है। इसलिए कोई गलतफहमी में न रहे।
फिर कैसा देश बनेगा यह ?
वे लोग आखिर इस देश को कैसा मुल्क बनाना चाहते हैं? इसे टुकड़े -टुकड़े क्यों करना चाहते हैं? यह सवाल उनसे है जो आज सी.ए.ए.के खिलाफ आंदोलनरत हैं। उनसे भी जो इन आंदोलनकारियों का समर्थन कर रहे हैं। उन्हें आर्थिक मदद कर रहे हैं। कानूनी सहायता पहुंचा रहे हैं। उन आंदोलनकारियों व उनके समर्थकों का अन्यायपूर्ण ‘न्याय’ तो देखिए। वे रोहिंग्याओं और बंगलादेशी घुसपेठियों का तो भारत में स्वागत कर रहे हैं। पर पाक-बं.देश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के कारण यहां शरण लिए लोगों को बसाना नहीं चाहते। मान लीजिए कि पांच करोड़ एक अनुमान-घुसपैठिए भारत में बस जाएं। बस ही चुके हैं।
ऐसे अन्य घुसपैठियों के लिए भी बोर्डर खोल दिए जाएं। इधर 2 करोड़ -फिर अनुमानित आंकड़ा-शरणार्णियों को भारत में शरण न लेने दिया जाए। फिर कल्पना कर लीजिए कि यह देश अंततः कैसा बनेगा ? क्या तब इराक और सिरिया से यह बेहतर रह जाएगा ? आंदोलनकारियों को संसद,सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं है। क्या यह मध्य युग है कि लोग सिर्फ तलवार पर भरोसा करें ?
ऐसा हुआ तो कैसा रह जाएगा यह देश ?
कैसा बन जाएगा भारत जिसे अभी हिन्दुस्तान भी कहा जाता है? असहिष्णुता की बहुत बात होती रही है। कई दिनों तक कुछ लोग मुंह पर रूमाल बांध कर पुलिस पर रोड़े बरसाते रहे। सार्वजनिक संपत्ति को अपार क्षति पहुंचाते रहे। अब कई रास्तों को जाम करके लाखों लोगों को रोज -रोज कष्ट पहुंचा रहे हैं। फिर भी आम जनता की ओर से प्रतिकार नहीं हो रहा है। पुलिस पर सब कुछ सह रही है। और कितनी सहिष्णुता चाहिए ??? क्या सहिष्णुता की कोई सीमा भी होती है या नहीं होती ?
— Surendra Kishore, 29 January 2020
फेसबुक मित्र सेराज अनवर की एक टिप्पणी के जवाब में …
सेराज जी,
फेसबुक पर लिखने के अलावा भी मेरे पास कुछ काम रहता है। उसे आपने मेरी चुप्पी समझी। आपने यह भी लिख दिया कि मैं अन्य लोगों से आपकी टिप्पणियों के खिलाफ लिखवा रहा हूं। यही तो आपकी सोच है। जो लोग लिख रहे हैं, उनमें से शायद ही किन्हीं से मेरा व्यक्तिगत संपर्क है। वैसे आपकी सोच को देखते हुए लगता है कि किसी तरह की बहस की कोई सार्थकता नहीं है। आप अपनी दुनिया में खुश रहिए। मैं कोई सर्टिफिकेट नहीं दूंगा जैसा आपने मेरा गार्जियन यानी ‘कुलपति’ बन कर मुझे दिया है। संतुलित सोच वाले मेरे कई मुस्लिम मित्र-परिचित हैं जो कई बार मुझसे सहमत होते हैं। मेरी सोच के कुछ नमूने यहां पेश हैं।
मैं वरूण गांधी के हाथ काटने वाले बयान को उतना ही बुरा मानता हूं, जितना इमरान मसूद के मोदी को बोटी -बोटी काट देने वाले बयान को। मैं 15 मिनट पुलिस हटा लेने वाले अकबरूद्दीन के बयान का उतना ही विरोधी हूं, जितना अनुराग ठाकुर के गोली मारने वाले बयान का। मैं 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर 59 कारसेवकों को जला कर मार देने के उतना ही खिलाफ हूं जितना बाद के दंगों के।
मैं इस देश को वास्तविक सेक्युलर देश के रूप में विकसित होते देखना चाहता हूं जहां न तो बहुसंख्यकों का किसी अन्य पर कोई ‘वर्चस्व’ रहे और न ही कोई अन्य इस देश में खलीफा राज कायम करने की कोशिश करे। मैं गोड्से के उतना ही खिलाफ हूं, जितना जिन्ना के जिसने डायरेक्ट एक्शन करके लाखों लोगों को मरवा दिया। आदि आदि………..।
इसके बाद जो मुझे जैसा सर्टिफिकेट देना चाहते हैं, दे सकते हैं।
पर उस सर्टिफिकेट के लिए मैं लालू प्रसाद नहीं बन सकता जिन्होंने फर्जी जांच बैठाकर यह रपट दिलवा दी कि गोधरा में रेलवे कम्पार्टमेंट में कार सेवकों ने खुद ही आग लगा ली थी। मैं यह भी नहीं मानता कि गुजरात के दंगे जैसा भीषण दंगा उससे पहले इस देश में कभी नहीं हुआ और मोदी जैसा राक्षस और कोई नहीं। गुजरात दंगे में क्या खास हुआ जो किसी अन्य दंगे में नहीं हुआ था ? गुजरात के अलावा किस दंगे में 200 पुलिसकर्मियों ने दंगाइयों से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी ?
विवेक से विवेचन,
चेत न चेतन👍❣️🙏
सेराज साहब फिर राजीव जी के कथन पर कुछ बोलिये जिन्होंने बोला था कि कोई बड़ा दरख़्त गिरता है को इस तरह की घटना घटती है जिसमे लाखों शिख समुदाय के लोगो की सामूहिक हत्या हुई थी
आपने ये नही लिखा भागलपुर में मोदी जी ने दंगा करवाया था आपने ये नही लिखा कि कांग्रेस सरकार में छोटी मोटी और बड़ी भी हज़ार नही हज़ारों दंगे हुए।
दरअसल साहब आपको ये डर लग रहा है कि नेशनल रजिस्टर नागरिकों के लिए बन गया तो दूसरे देश से आतंकवाद बन्द हो जाएगा आतंक का खेल खत्म हो जाएगा फ्री का खाना और सरकारी सुविधा जो सरकार हमारे टैक्स पर लोगो को देती हैं वो दूसरे देश से आये लोगो को बंद1हो जाएगा।
सच्चाई ये है कि आप लोग राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध नही आप लोग कांग्रेस और आप पार्टी द्वारा पोषित हो कर राजनैतिक दुश्मनी साध रहे हैं क्यों कि कांग्रेस और आप पार्टी देशद्रोही हैं और आप लोग इन सभी चीजों का विरोध कर खुद व खुद आतंकवाद और आतंकवादी के समर्थक घोषित कर रहे हैं जरा सोचिए जब पाकिस्तान और बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर है तो हिंदुस्तान में इसका विरोध क्यों ?
क्योंकि आप हिंदुस्तान में हो और हिंदुस्तानी नही हो मैं ये घोषणा करता हूँ अगर होते तो इस तरह लेखक महोदय को शिक्षा नही देते लेखक महोदय आपसे ज्यादा ज्ञानी एवं जानकर हैँ और आपसे कहीं ज्यादा अनुभव भी है उनके पास ,आपको मेरा सलाह है कभी कभी सोच समझ कर अपना ये चोंच खोले अनावश्यक नही
धन्यवाद