पटना में 15 दलों के नेताओं को बुलाकर मुंगेरी लाल के हंसीन सपने दिखाने में लगे नीतीश, इशारों में बताया कि बिना मोदी के हटे उनके बेटे-बहू, बेटी-दामाद, चाचा-भतीजा का भविष्य उज्जवल नहीं
कभी राष्ट्रीय जनता दल के वर्तमान नेता व बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव व उनके भाई तेज प्रताप द्वारा पलटूराम, कुर्सी कुमार आदि नामों से विभूषित किये गये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के प्रमुख विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाई, जिसमें पन्द्रह पार्टियों के नेता मौजूद रहे। इनमें ज्यादातर वे नेता शामिल हुए, जो परिवारवाद के पोषक हैं, जिनकी प्रमुख भूमिका अपने बेटे-बेटियों-दामाद-बहूओं, भतीजा-भतीजों को पार्टी के प्रमुख पदों पर शामिल करने के साथ-साथ, उन्हें सत्ता के सर्वोच्च सिंहासनों पर पहुंचाना ही मुख्य मकसद हैं।
ये वो लोग हैं, जिनकी कभी ये धारणा नहीं रही कि देश मजबूत हो, ये ज्यादातर अपने परिवारों व खानदानों को बेहतर करने की स्थिति में लगे रहे। चूंकि पहली बार देश में कोई नरेन्द्र मोदी नाम का भाजपा से एक ऐसा नेता उभरा, जिसने इन सभी की नींद उड़ा दी और पूरे विश्व में भारत का नाम जिनके नेतृत्व में शान से लिया जाने लगा। ये पन्द्रह पार्टियों के नेता को इतना भय इतना सता रहा है कि इन्हें लगता है कि अगर नरेन्द्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आ गये तो इनके बेटे-बेटियों-दामाद-बहूओं, भतीजा-भतीजों का क्या होगा?
कही ऐसा तो नहीं कि उन्हें जेल की शोभा बढ़ानी पड़ जाये, क्योंकि नरेन्द्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता नहीं है कि बोफोर्स सौदे में शामिल घोटालेबाजों को बचाने की तरह कांग्रेस के नेताओं को बचा लें, नरेन्द्र मोदी किसी की गुनाहों को नहीं बख्शनें में विश्वास रखता है और शायद यही कारण है कि देश की जनता नोटबंदी के बावजूद फिर से उन्हें सत्ता सौंपी और ये सारा विपक्ष मुंह ताकत रह गया।
नीतीश कुमार कोई पहली बार, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आग नहीं उगल रहे, ये पहले भी आग उगल चुके हैं, पर जब दाल नहीं गली तो फिर नरेन्द्र मोदी की शरण में जाकर विश्राम लिया। अब उन्हें फिर लग रहा है कि मोदी का विरोध करना हैं और उन्हें सत्ता से हटाना है, तो वे इस अभियान में लग गये हैं और इसके लिए वे बहुत नीचे तक भी जा सकते हैं, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
नीतीश न तो जयप्रकाश नारायण है और न ही नरेन्द्र मोदी इंदिरा गांधी
कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर विपक्षी दलों के नेताओं ने 1977 की तरह भाजपा व नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ा तो नरेन्द्र मोदी की सत्ता जा सकती हैं, पर उन्हें नहीं पता कि 1977 में जो चुनाव हुआ था, वो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुआ था, जो न तो पलटूराम और न ही कुर्सी कुमार के नाम से कभी विभूषित हुए थे। उस वक्त की जो लड़ाई थी, निरंकुश शासन व्यवस्था और आपातकाल से जूझ रहे भारत को लेकर लड़ाई थी, जिसकी प्रतीक इंदिरा गांधी बनी हुई थी।
नीतीश अविश्वासी, वे कभी भी भाजपा नेताओं के घर के कुएं में जाकर पवित्र स्नान कर सकते हैं
जो आज देश में वैसी स्थिति नहीं हैं। शायद इन नेताओं को पता ही नहीं है कि आज भी गरीबों की बड़ी आबादी नरेन्द्र मोदी को अपना नेता दिल से मानती हैं कि किसी की कृपा पर नहीं मानती, जैसा कि नीतीश कुमार के साथ है। नीतीश कुमार चाहे कुछ भी कर ले, वे एक जातिवादी नेता है, जातिवाद के कारण ही वे भाजपा के साथ तो कभी राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ें और मौकापरस्ती का फायदा उठाते हुए वे जब चाहे तब तक सत्ता में शामिल रहे और हैं। कहनेवाले तो अभी भी कहते है कि अगर भाजपा से आज सौदेबाजी नीतीश कुमार की हो गई तो कल वे लोटा-डोरी लेकर भाजपा के नेताओं के घर में कुएं से पानी भरकर पवित्र स्नान करते नजर आयेंगे।
पटना की सभा में ज्यादातर वे नेता हुए शामिल, जिनकी फिलहाल देश में कोई राजनीतिक औकात नहीं
आज के पटना में हुई मीटिंग में ज्यादातर वे नेता शामिल हुए, जिनकी देश में कोई राजनीतिक औकात नहीं हैं। उदाहरणस्वरुप – खुद जदयू जिसका बिहार में कोई अस्तित्व नहीं, उसका अस्तित्व तभी हैं, जब वो किसी के साथ मिलकर लड़ती हैं, नहीं तो वो तो दो सीटों के लिए बिहार में तरस कर रह जायें। नहीं तो पूछ लीजिये, भाजपा व राजद के बिना अकेले लड़कर वो कितना सीटें लोकसभा की जीती हैं। भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य से ही पूछ लीजिये कि उनकी देश में लोकसभा को लेकर राजनीतिक औकात क्या है?
बंगाल में कभी जहां वामपंथ का झंडा बुलंद रहता था, वहां पर वामपंथियों की क्या राजनीतिक औकात है? जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस की आज क्या राजनीतिक औकात है? महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी की क्या हालत हो गई है? मतलब राजनीतिक औकात कुछ नहीं और चल दिये नरेन्द्र मोदी से लोहा लेने। लालू यादव और अखिलेश यादव का बिहार और यूपी के यादवों को छोड़कर किन लोगों पर राजनीतिक प्रभाव है? इससे ज्यादा प्रभाव तो यूपी में बहुजन समाज पार्टी का है, पंजाब में अकाली दल का है।
बैठक में प्रथमग्रासे मक्षिकापातः
पटना की बैठक में ही नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर ने धारा 370 को लेकर आम आदमी पार्टी पर सवाल दाग दिये। दूसरी ओर पटना पहुंचे सभी दलों ने केन्द्र के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का समर्थन करने के लिए कांग्रेस को कह डाला। उधर कांग्रेस क्या जितनी सीटों पर उसे कहा जायेगा, चुनाव लड़ने को, लड़ पायेगी। हमें तो नहीं लगता कि कांग्रेस इतना त्याग करने को तैयार है।
पटना में आज की बैठक में ही इन पन्द्रह दलों के बीच कटुता साफ दिखाई दिया। जो बताता है कि ये पन्द्रह दल कभी एक साथ किसी भी बिंदु पर एक नहीं हो सकते। हां, अगर उन्हें मुंगेरी लाल के हंसीन सपने की तरह, बार-बार सपने दिखाये जाये, जैसा कि पलटू राम, उर्फ कुर्सी कुमार, उर्फ नीतीश कुमार प्रयास कर रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी को हटाएं बिना, उनके बेटे-बहू, बेटी-दामाद, चाचा-भतीजा-भतीजी, पति-पत्नी का भविष्य उज्जवल नहीं, तो हो सकता है कि कुछ पल के लिए ये सारे के सारे पन्द्रह दल मुंगेरी लाल के हंसीन सपने देखने लग जाये, पर शायद उन्हें नहीं पता कि मुंगेरी लाल के हंसीन सपने कभी भी हकीकत में नहीं बदलते।