नाराज भाजपाइयों को मनाने में छूटे केन्द्रीय नेताओं के पसीने, कोई निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ रहे पिता का पांव छू रहा, कोई पद-प्रतिष्ठा का लालच दे रहा, फिर भी नहीं मान रहे लोग, कई सीटों पर भाजपा को हार का खतरा
भाजपा कार्यकर्ता व नेता इन दिनों अपने प्रदेश व केन्द्र के नेताओं से इतने गुस्से में हैं कि वे इस बार वे सभी को सबक सिखाने के मूड में हैं। स्थिति ऐसी हैं कि कोई निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ा होकर भाजपा और उनके बड़े-बड़े नेताओं को चुनौती दे रहा हैं, तो कोई सोशल साइट पर इनके खिलाफ लिख-लिखकर ऐसा माहौल बना दे रहा है कि भाजपा के रांची से लेकर दिल्ली तक के बड़े नेताओं के पसीने छूट गये हैं।
राजनीतिक पंडित कहते हैं कि शायद इन नेताओं ने ऐसी चुनौती की परिकल्पना नहीं की होगी, जो इस बार दिख रही हैं। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को अब इस बात का ऐहसास हो गया है कि झारखण्ड इस बार भी उनके हाथ से फिसल गया। 2019 में ऐसी स्थिति नहीं थी। भाजपा के नेता व कार्यकर्ता उस वक्त एकता के सूत्र में बंधे थे। लेकिन इस बार सारी एकता तार-तार हो गई है।
भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी इस बात को लेकर हैं कि इस बार भाजपा के प्रदेश व केन्द्र के नेताओं ने समर्पित कार्यकर्ताओं की जगह भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की पत्नियों, बहूओं, बेटों, भाइयों पर ध्यान दिया और उसके बाद जो बचा वो पहले से चले आ रहे निकम्मे विधायकों को फिर से टिकट थमा दिया। राजनीतिक पंडित तो आज भी कह रहे है कि जिन-जिन नाराज भाजपाइयों के घर उन्हें मनाने को शिवराज सिंह चौहान व हिमंता बिस्वा सरमा जा रहे हैं। उनका गुस्सा और भड़क जा रहा है। उस गुस्से के भड़कने का मूल कारण हिमंता और शिवराज के साथ जानेवाले वे लोग हैं, जिनका भाजपा तो छोड़ दीजिये, यहां की जनता में कोई पकड़ नहीं हैं। ये भाजपा में सिर्फ इसलिये हैं ताकि वे भाजपा के नाम पर अपना कारोबार तथा अपने सपने पूरे करते रहे।
कल ही कांके में कमलेश राम को मनाने के लिए हिमंता जिनको साथ ले गये थे और अपने भाषण में बार-बार जिनका नाम ले रहे थे। उसका नाम ही सुनकर वहां बैठे कई लोग बिदक जा रहे थे। लेकिन हिमंता को लग रहा था कि प्रदीप वर्मा और दीपक प्रकाश के नाम लेने से कांके में सब कुछ ठीक हो जायेगा। इधर हिमंता भाषण दे रहे थे और उधर कोई हिमंता का भाषण लाइव किये हुए था। हिमंता ने भाषण देने के क्रम में कमलेश राम को ग्रिप में लेने के लिए यहां तक बोल दिया कि उन्होंने कमलेश राम के पिता को पांव छूआ।
इधर हिमंता का भाषण लाइव हो रहा था और उसी समय उसी लाइव हो रहे पोस्ट पर कमेन्ट्स भी आ रहे थे। कमेन्टस में कई लोग कमलेश राम को सावधान और आगाह भी कर रहे थे। जरा देखिये, कह क्या रहे थे। समीर सृजन ने लिखा अब वापस हो जायेगा। चंद्रदीप कुमार ने लिखा कमलेश राम को बहुत विवेक से काम लेना है सोच समझकर। इस बार नहीं तो अगला विधानसभा जरुर फाइनल। संदीप कुमार लिखते है कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का ये हाल।
मदन गोपाल – कमलेश राम आपको ये लोग धोखा दे रहे हैं। अरविन्द कुमार राम लिखते हैं कि असम की जनता का विकास कैसे होगा, ये मुख्यमंत्री पिछले कुछ महीनों से झारखण्ड में आकर डेरा डाल कर बैठा है। पहले हिमंता बिस्वा को अपना राज्य संभालना चाहिए। असम की जनता को धोखा देकर झारखण्ड में आकर सड़क छाप मुख्यमंत्री बनते फिर रहा है। सुभाष शेखर महतो (पत्रकार) लिखते हैं कि क्या पुष्पा झुक जायेगा? अभिषेक राय लिखते हैं – ये नाम वापस ले लेगा, चालू है।
मतलब साफ है कि भाजपा कार्यकर्ताओं में भयंकर आक्रोश हैं, जिसे रोक पाने में ये सारे के सारे नेता अभी तक नाकामयाब है। उधर सूचना यह भी है कि एक ओर कांके के कमलेश राम, जिन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामजदगी का पर्चा भरकर भाजपा नेताओं के नाक में दम कर दिया तो इधर रांची से भी मुनचुन राय ने नामजदगी का पर्चा भरकर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के हाथ-पांव फूला दिये।
कल से ही भाजपा के बड़े-बड़े नेता उनके आवास पर जाकर नाक रगड़ रहे हैं। कल रात में उनके घर शिवराज सिंह चौहान पहुंचे तो आज उनके घर हिमंता बिस्वा सरमा के पहुंचने की बात की जा रही है। लेकिन मुनचुन राय मान ही जायेंगे। इसकी संभावना कम दिख रही हैं। मतलब राजधानी रांची में दो सीटें कांके और रांची में भाजपा प्रत्याशी के उपर हार का खतरा मंडराने लगा है।
मुनचुन राय के समर्थक तो साफ कहते हैं कि उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि खुद को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कही जानेवाली भाजपा और उनके नेता इतनी घबराए हुए क्यों हैं? लोकतंत्र में हर कोई अपनी बात रख सकता हैं। चुनाव लड़ सकता है। अब जिसने नामजदगी का पर्चा भर दिया। उसे अपना नाम वापस लेने का दबाब बनाना, उन्हें बोर्ड-निगम का लालच देना, क्योंकि सभी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष तो बना नहीं सकते, इसलिए हर प्रकार से दबाव की राजनीति, आखिर क्या बताता है कि भाजपा के कार्यकर्ता बंधुआ मजदूर हैं। उनकी कोई अपनी राजनीतिक भूमिका नहीं हैं। चुनाव आयोग को तो इस पर ध्यान देना चाहिए कि आखिर कोई पार्टी या उस दल का नेता किसी को प्रलोभन देकर चुनाव लड़ने से कैसे रोक सकता हैं या दबाव बना सकता है?
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि जब मुनचुन राय या कमलेश राम की इतनी ही चिन्ता थी तो पहले ही भाजपा के बड़े-बड़े नेता उनसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की? उनके मनोभावना को समझने की कोशिश क्यों नहीं की? आखिर भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच रायशुमारी का नाटक क्यों किया गया? जब इन नेताओं को अपने ही नेताओं के पत्नियों, बहूओं, बेटों और भाइयों पर इतना ही विश्वास था तो फिर अब उनकी धड़कनें क्यों बढ़ गई हैं?
दरअसल अब इन्हें 23 नवम्बर को आनेवाला चुनाव परिणाम का सपना दिन और रात में दिखाने देने लगा है। चुनाव आयोग का बोर्ड दिखाई देने लगा है। जिसमें झामुमो गठबंधन इनको पछाड़ता हुआ दिख रहा हैं। ये पिछड़ न जाये, इनकी दुकानदारी अब बंद न हो जाये, झारखण्ड इनके हाथ से निकल न जाये। बस इनको यही डर सता रहा हैं। इसलिए न तो इन्हें मुनचुन राय और न ही इन्हें कमलेश राम की चिन्ता है। ये तो दबाब बनाकर अपना सीट निकालने की फिराक में हैं।
राजनीतिक पंडित बताते है कि उधर धनवार सीट पर खेला कर देनेवाले निरंजन राय को भी बैठाने की कोशिश की जा रही हैं। उनके घर पर भी बड़े-बड़े नेता पहुंचने लगे हैं। लेकिन निरंजन राय ने कह दिया है कि वो किसी भी हालत में 28 अक्टूबर को नामजदगी का पर्चा भरेंगे। चुनाव लड़ेंगे। उनका फैसला अडिग है। कुल मिलाकर, भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की स्थिति ‘आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास’ वाली हो गई हैं। आये थे, भाजपा को जीताने और लग गये भाजपा कार्यकर्ताओं को मनाने, वो भी सफलता मिलेगी या नहीं मिलेगी, इसकी भी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही।