येदियुरप्पा की इस्तीफे की वाजपेयी के इस्तीफे से तुलना यानी चमचई पत्रकारिता की पराकाष्ठा
हमारे देश में एक नई प्रकार की पत्रकारिता का जन्म हुआ है। उस पत्रकारिता का नाम है – चमचई पत्रकारिता। जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस पत्रकारिता में एक खास सत्तारुढ़ सरकार एवं उसके नेता, दल तथा किसी खास लोगों की चमचई करनी होती है, इस चमचई से देश को लाभ होता है या नुकसान, या जनता को लाभ होता है या नुकसान, इससे पत्रकारिता करनेवाले पत्रकार या चैनल या अखबारवालों को कोई मतलब नहीं होता, वो सिर्फ इस बात को ध्यान में रखता है कि जो वह कर रहा है, उससे उसे या उसके संस्थान को क्या लाभ होनेवाला हैं या भविष्य में उसे क्या फायदा होगा।
चमचई पत्रकारिता की खासियत यह है कि आपको अगर इसकी लत लग गई, या जुनून चढ़ गया, तो समझ लीजिये, आप देखते ही देखते लोकप्रिय हो जायेंगे, घर-फ्लैट, मोटरगाड़ी, नौकर-चाकर, दुनिया की वो सारी सामाने जो ऐश-मौज के लिए जरुरी है, आपके कदमों में होंगे। आप देखते ही देखते अपनी बीवी या प्रेमिका के साथ पूरी दुनिया की सैर कर लेंगे। आपका बेटा बेरोजगार है तो अच्छी-अच्छी कंपनियों ही नहीं बल्कि सरकारी सेवाओं में भी जल्दी तरक्की कर जायेगा, बस आपको चमचई सीखनी है।
अब सवाल उठता है कि चमचई कैसे सीखे? इसके लिए आपको कुछ करने की जरुरत नहीं, आप जहां रहते हैं, वहां पर उन पत्रकारों को देखिये, उनकी हरकतों को देखिये, उनकी रोजमर्रें की जिंदगी को देखिये, वे क्या लिखते है, या क्या बोलते हैं और उनकी वेतन कितनी है, उस पर ध्यान दीजिये, आपको सब पता लग जायेगा। जैसे आपके बगल में कोई पत्रकार है, और वह देखते ही देखते राज्यसभा पहुंच गया, तो आप समझिये कि वो राज्यसभा कैसे पहुंच गया, आप दिमाग पर जोर लगायेंगे, थोड़ा अखबार व चैनल पर शोध करेंगे तो पता चलेगा कि अरे वो पत्रकार फलां नेता की चमचई करके वहां पहुंच गया, मतलब समझे।
एक बात और, बहुत सारे ऐसे पत्रकार है, जिन्हें एक अक्षर तक लिखना नहीं आता, एक विषय पर एक पेज लिख नहीं सकते, बोल नहीं सकते, आजकल चैनलों के संपादक बन जा रहे हैं, वे कैसे बन रहे हैं, वह भी चमचई पत्रकारिता का सुंदर उदाहरण है। आप देखेंगे कि वो चैनल में संपादक बना लल्ला दिखनेवाला युवक, लायजनिंग करके अपने संस्थान को अच्छी खासी रकम दिलवा दिया तथा खुद भी अच्छी रकम कमा ली, और अच्छा पोजीशन पा लिया।
चमचई पत्रकारिता का सबसे बड़ा गुण है कि आप खुद को शो करिये कि आप बहुत ईमानदार है, सुट-बुट पहनिये, महंगे-महंगे कारों में घुमिये, कभी-कभी नेताओं की कृपा से लंदन, स्विटजरलैंड तक घुम आइये और अगर आप विदेश नहीं घुम सकते, तो अपने चाहनेवाले नेताओं, नेताओं के सलाहकारों, उनके पीए या उद्योगपतियों से कहिये कि और कही नहीं तो वो आपको गोवा घुमा दें, लीजिये आप एक नंबर के चमचई करनेवाले पत्रकार हो गये।
अब आप चमचई के लेटेस्ट उदाहरण देखिये। कई अखबारों व कई चैनलों ने येदियुरप्पा के इस्तीफे की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी की तेरह दिनों की सरकारवाली वाजपेयी की सरकार से कर दी। येदियुरप्पा को महान बताने की कोशिश कर दी। दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी और येदियुरप्पा की तुलना करना ही मूर्खता को सिद्ध करता है, पर मैंने कहा न, कि चमचई पत्रकारिता। येदियुरप्पा की इस्तीफा की तुलना वाजपेयी की इस्तीफे से कर देश के कई अखबारों व चैनलों( जो भाजपा के कट्टर समर्थक है) ने चमचई की सारी रिकार्ड तोड़ दी।
येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा, उन्हें कभी इसी आरोप में सीएम पद से हटाया भी गया था, पर वाजपेयी पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी को सर्वोच्च न्यायालय ने समय सीमा निर्धारित नहीं किया था कि वे तय सीमा में बहुमत सिद्ध करें, जबकि येदियुरप्पा को सर्वोच्च न्यायालय ने समय सीमा निर्धारित कर अपना बहुमत सिद्ध करने को कहा, ऐसे में येदियुरप्पा के इस्तीफे ने अटल बिहारी वाजपेयी की याद कैसे दिला दी? समझ नहीं आ रहा।
फिर भी चमचई पत्रकारिता की यह शुरुआत नहीं बल्कि पराकाष्ठा है किसी को चमचई पत्रकारिता करने में आनन्द है, किसी को इसी प्रकार की चमचई समाचार पढ़ने का आनन्द है, तो कोई माथा पीट रहा है कि आखिर चमचई पत्रकारिता से कैसे मुक्ति मिलेगी? पर मेरा मानना है कि जिस देश के लोग ईमानदार पत्रकारों को भूखों मरने को छोड़ देते है, उनकी इज्जत नहीं करते, ऐसे लोग चमचई पत्रकारिता के शिकंजों में रहते हुए पूरा जीवन समाप्त कर देते है, आज भी समय है, जगिये, और चमचई पत्रकारिता से स्वयं को दूर करिये।
अब वह बात कहा.. पत्रकार हो या चैनल वाले या कोई भी मीडिया समूह स्वतंत्र नही रहे! सब कोई न कोई खेमा में बटे हुए हैं! कोई कांग्रेस की जय जय में लगा हुअा हैं तो कोई भाजपा के हर कदम व नीति को गलत ठहराने में लगा हुआ है! वे सब पार्टी भले न ज्वाईन कर रखी हो पर पार्टी कार्यकर्ता के बढ़ कर लगते है! अब तो न उनका न्यूज पढ़ने को दिल करता है न ही चैनलो पर उनकी शरारत देखने लायक हैं! एक बहुत ही गंदी व संकीर्ण सोच से वे सब नही समाज को गुमराह करने वाला तंत्र लगता है!
उन्हें भारत वर्ष की संस्कृति, उसकी संपदाएं, बहते सैनिको के खून घटते हिन्दुओ की संख्या बढ़ते मुसलमानों का आतंक जाती अधारीत आरक्षण बढ़ते हिसक आत्याचार यह सब नजर नहीं आते! उनकी कलम की स्याही देश की रक्षा के लिए दीर्घकालिक सोच नही प्रकट होती! जब हिन्दुत्व ही नहीं बचेगा तो हिन्दुस्तान कहा से बचेगा! वह दिन दुर नही जब हर पार्टी मुस्लिम प्रधानमंत्री को उम्मीदवार बनाने की होड में लगी रहेगी! वह दिन दुर नही जब वही प्रधानमंत्री ईस्लामिक राष्ट्र की घोषणा अपने चुनावी मेनीफेस्टो में करेगा! रोज रोज लोकतंत्र की हत्या करने वाले यह मीडिया और राजनेता सच में एक दिन लोकतंत्र की निमोनिसा मिटा देंगे! हम ऐसे तंत्र व उनकी मानसिकता घ्रिणा के पात्र है!