राजनीति

मजदूर कानूनों में बदलाव, देश की जनता को गुलामी में धकेलने की तैयारी

बगईचा कैंपस नामकुम रांची में मजदूर कानूनों में हुए बदलावों पर एक दिवसीय चर्चा का आयोजन किया गया। मीटिंग में झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से संगठनों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लिया। परिचर्चा में सिर्फ मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि ही जुड़े, जिसमें  आदिवासी अधिकार मंच, एटक, जोहार असंगठित मजदुर यूनियन, बगैचा, कामकाजी महिला यूनियन, सीटू, एकटू इत्यादि।

परिचर्चा का विषय पर प्रकाश डालते हुए आदिवासी अधिकार मंच के सदस्य रिषित नियोगी ने बताया कि मजदूर कानून पर परिचर्चा करना क्यों जरूरी हैं? देश तेजी से बदल रहा है। कई कानूनों में बदलाव से फर्क पड़ा है। मजदूर कानून से भी बड़ा फर्क आ रहा है।

पैडिमक दौर में मजदूरों के साथ  देश के अन्दर आर्थिक व्यवस्था तहस नहस हो चुका है, कारण की संस्थागत श्रम के रोजगार को अवसर खत्म कर  दिये जा रहें है। यह स्थिति सांगठनिक और असंगठित क्षेत्र के साथ साथ प्रशिक्षित(स्किल्ड)  श्रम और अप्रशिक्षित( एन स्कील्ड) दोनो ही क्षेत्र में मजदूरों काम के अवसर को खत्म कर दिये जा रहे हैं।

जिससे पूरे देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ते ही जा रहे है। संस्थाओं के अंदर अनुबंध के आधार पर नियुक्ति के साथ-साथ छंटनी ने मजदूरों के जीवन पर कहर बरपा दिया हैं। ऐसे समय में सभी मजदूर युनियन व मजदूरों के प्रति चिंता करने वाले व्यक्ति व संगठनों के साथ आपस में चर्चा कर मजदूरों पर आ रहें समस्याओं के बारे चर्चा के लिए जूटे हैं।

सीटू के कॉ एम एल सिंह ने मीटिंग को सम्बोधित करते हुए कहा की मजदूरों के आंबे संघर्ष से प्राप्त 44 मजदुर कानूनों को भारत सरकार ने एक झटके में चार लेबर कोड में तब्दील कर दिया है, जिसके बाबत मजदूरों के कई हक़ छीन लिए गए हैं। ट्रेड यूनियन बनाने के हक़ पर और हड़ताल करने के हक़ को पेचीदा बना दिया गया है।

महिलाओं के हक़ों पर हमला हुआ हैं। उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में काम करने की सीमा को ८ घंटे से बढ़ा कर १२ घंटे करना मजदूर के मानवाधिकार पर वार हैं। कम्पनियां, अब जब चाहे लोगों को काम से निकाल सकती है और इन कोड्स से ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा मिलेगा। परमानेंट नौकरी अब एक सपना बनकर रह जायेगा।

कदमा (जोहार असंगठित मजदुर यूनियन), अम्बिका यादव (झारखण्ड जनाधिकार महासभा), आशीष (जोहार असंगठित मजदुर यूनियन), कॉ भुवनेश्वर केवट (भाकपा माले) और आलोका कुजूर (एटक) ने मीटिंग को सम्बोधित किया। सभी वक्ताओं ने मजदूरों की विकट परिस्थिति से सभा को अवगत करवाया। लॉक डाउन के समय प्रवासी मजदूरों की स्थिति से लेकर आज तक भारत के मेहनतकश जनता को रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकारों से वंचित रखा गया है।

ऐसी स्थिति में मजदुर कानूनों को मजदूरों के हित में बनाने के बजाय सरकार पूंजीपतियों को खुश करने में लगी है। वक्ताओं ने सरकार द्वारा बनायीं गयी श्रम पोर्टल और नरेगा जैसी योजनाओ की भी लाभ-हानि को सही तरीके से विश्लेषण करने की ज़रूरत बतायी।

मीटिंग में  भाग लिए संगठनों ने यह निर्णय लिया की आने वाले दिनों में झारखण्ड में कई हिस्सों में सभा करके मजदूरों को मौजूदा हालात से अवगत कराया जायेगा और सामूहिकता से यह मांग रखी जाएगी की सरकार इन कोड को निरस्त करके मजदूरों के हित में कानून बनाने के लिए काम करें।