अपनी बात

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का चम्पाई सोरेन, न घर (झामुमो) का, न घाट (भाजपा) का

बेचारे चम्पाई, जिनको हेमन्त सोरेन अपना गार्जियन समझते थे। जिनको हेमन्त सोरेन ने जेल जाने के वक्त अपना उत्तराधिकारी चुना था और मुख्यमंत्री का पद सौंपा था। जिस चम्पाई को देखते ही हेमन्त सोरेन का सिर श्रद्धा से झुक जाता था। आज वहीं चम्पाई हेमन्त सोरेन पर हर प्रकार के दाग लगाने की कोशिश करते हुए भाजपा में जाने की जुगत लगा रहे हैं। पता नहीं किस मूर्ख ने उन्हें यह सलाह दे दी।

ऐसे भी झारखण्ड में मूर्खों की कमी नहीं हैं। यहां के हर राजनीतिज्ञ के पास सलाहकार के रुप में एक मूर्ख विद्यमान रहता है। आश्चर्य इस बात की भी है कि उस मूर्ख को वो राजनीतिज्ञ खुद ही चुनता/बहाल करता है। उक्त राजनीतिज्ञ को उस मूर्ख सलाहकार पर इतना विश्वास होता है कि उसके कहने पर वो अपना सिर भी फोड़वा सकता है। विद्रोही24 ऐसे सलाहकारों को कनफूंकवां की श्रेणी में रखता है।

याद करिये, जब रघुवर दास राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने भी अपने आस-पास ऐसे कनफूंकवों की लाइन लगा दी थी, जो उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। उन सलाहकारों का प्रभाव ऐसा पड़ा कि एक तरह से झारखण्ड की राजनीति से ही वे सदा के लिए साफ हो गये। ठीक ऐसे ही सलाहकार यानी कनफुंकवों के चक्कर में चम्पाई आ गये और अपनी जमा राजनीतिक पूंजी का सदा के लिए बंटाधार करवा दिया।

उधर भाजपा और उनके इशारों पर नाचनेवाली अखबार व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी एक दो दिन पहले चम्पाई सोरेन को लेकर ऐसी खबरें परोस कर आम जनता को दिग्भ्रमित कर रही थी, जैसे लग रहा था कि चम्पाई के साथ हेमन्त सोरेन ने बहुत बडा जुल्म कर दिया हो। मीडियावाले तो यह भी कह रहे थे कि झामुमो को बड़ा झटका लगा है, जबकि सच्चाई यही है कि झामुमो को क्या झटका लगेगा, असली झटका तो भाजपा को ही लगा है, क्या सोचीं थी और क्या हो गया?

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि हेमन्त सोरेन को डैमेज करने के लिए भाजपा ने कौन-कौन सी चाल नहीं चली। भाजपा ने एक ऐसे मामले में हेमन्त सोरेन को जेल में डलवाया, जो कही से भी फिट नहीं बैठता। लेकिन किया क्या जाये, ग्रहों व नक्षत्रों की कृपा कहिये, हेमन्त जेल चले गये। पांच महीने के बाद जब निकले, तो सब कुछ बदला हुआ था। लेकिन वे चाहते थे कि सत्ता वे खुद संभाले और जो उन्होंने वायदे किये थे, वे बची-खुची समय में पूरा कर दें।

आश्चर्य यह देखिये कि जो भाजपा चम्पाई सोरेन के पांच महीने के शासनकाल में उन्हें हेमन्त सोरेन के इशारों पर काम करनेवाला, जेल में बंद कैदी के इशारों पर शासन करनेवाला बताकर उन्हें हर प्रकार से बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। वो भाजपा, हेमन्त सोरेन के सत्ता संभालते ही चम्पाई सोरेन पर डोरे डालना शुरु की और चम्पाई के पांच महीने के शासनकाल को हेमन्त सोरेन के शासनकाल से बेहतर बताने में समय व्यतीत करने लगी और इसी चक्कर में चम्पाई सोरेन बौराने लगे।

उनको लगा कि सचमुच में वे ही सबसे अच्छे शासक थे। जबकि सच्चाई यही है कि पांच वर्षों के शासनकाल में हेमन्त सोरेन को शासन करने का समय मिला ही नहीं। दो वर्ष तो कोराना ने ही ले लिया और जब तीन वर्ष मिले तो भाजपा के दिग्गजों ने तरह-तरह के षडयंत्र इनके खिलाफ रचने शुरु किये। इस षडयंत्र में कौन नहीं शामिल था। इस षडयंत्र के छीटें तो राजभवन पर भी पड़े।

खुद रमेश वैश्य तत्कालीन राज्यपाल के बयान की अभी दीपावली का दिन है, उसमें कैसे-कैसे बम छूटेंगे, कौन बता सकता है। यह बयान बताने के लिए काफी था कि हेमन्त सोरेन को शासन चलाने में कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ा। उसके बावजूद इस शख्स ने हार नहीं मानी। सरना कोड हो, आदिवासी-दलितों के लिए आरक्षण की बात हो, झारखण्डियों को निजी नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण मिले, सर्वजन पेंशन योजना, अबुआ आवास योजना, ओल्ड पेंशन स्कीम, 1932 का खतियान लागू करने की व्यवस्था आदि ऐसी-ऐसी योजनाएं लाई जो मील का पत्थर साबित हो गई।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो चम्पाई सोरेन खुद भी पांच महीने के शासनकाल में जहां भी कही जाते, भाषण देते तो हेमन्त सोरेन का नाम लेना नहीं भूलते और यहां तक कह देते कि उन्हीं के बचे हुए कामों को वे पूरा करने में लगे हैं। शायद वे इसलिये कहते होंगे कि उन्हें ये आभास हो गया होगा कि हेमन्त सोरेन अब जेल से कभी निकलेंगे ही नहीं और उनका शासन चलता रहेगा। लेकिन यहां तो हो गया उलटा और सबसे बड़ा धक्का चम्पाई सोरेन और उनके सलाहकारों को लगा, क्योंकि मात्र पांच महीने ही रसमलाई खाने का मौका मिला और यहां तो सपना वर्षों का था।

अब चम्पाई के सलाहकारों ने बुद्धि लगाई। ऐसी बुद्धि लगाई कि चम्पाई को राजनीतिक क्षेत्र में एक कद्दावर नेता घोषित किया जाये। ऐसा नेता कि जो झामुमो को कबाड़ दें, वो नेता जो कई विधायकों को तोड़कर अन्य पार्टी में शामिल होने का सामर्थ्य रखता हो। डील शुरु हुई। भाजपावाले तो चाहते ही थे कि वे झामुमो को झटका दें। मौका मिल गया। पता नहीं कहां से मीडिया के लोगों ने पांच-छह विधायक अपनी तरफ से जुटा लिये और कहने लगे कि ये विधायक दिल्ली आ रहे हैं और आज ही भाजपा ज्वाइन करेंगे।

लेकिन हुआ उलटा। आज चम्पाई के पास एक भी विधायक नहीं हैं। स्थिति ऐसी है कि वे खुद भी नहीं जीत पायेंगे। भाजपावाले अगर घोषित भी कर देंगे, हालांकि ये अब संभव नहीं है कि उन्हें मुख्यमंत्री बना देंगे। उनके बेटों को टिकट उपलब्ध करा देंगे, अगर सत्ता नहीं आई तो किसी राज्य का राज्यपाल बना देंगे, उसके बाद भी चम्पाई सोरेन फिर वहीं स्थिति में आयेंगे, इसकी संभावना न के बराबर है, क्योंकि अब उन पर पार्टी से गद्दारी करने का दाग लग चुका है।

हेमन्त सोरेन के पीठ पर राजनीतिक खंजर भोकने का दाग लग चुका है। इस घटना से भाजपा भी अब नंगी हो चुकी है। अब भाजपा इन्हें अपनी पार्टी में शामिल भी कर लेंगी, तब भी ये जीत नहीं पायेंगे। झामुमो को चाहिए कि ऐसे नेताओं से अब दूरियां बनायें, जो पार्टी में रहकर, केवल स्वार्थ को अपना सर्वस्व समझ रहे हो।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा ने चम्पाई सोरेन को लेकर जो दांव खेला, उससे उसकी भी छवि खराब हुई है। इसका खामियाजा भी उसे आगामी विधानसभा में उठाना पड़ेगा। कहनेवाले तो ये भी कह रहे है कि जब भाजपा के पास चुनाव लड़ने के लिए कोई आदमी ही नहीं हैं, तो उसे एक विज्ञापन निकालना चाहिए और उस विज्ञापन में योग्यता में यह लिख देना चाहिए कि भाजपा में शामिल होनेवाला व्यक्ति झामुमो का नेता होना चाहिए।