CM बताएं, कि यहां राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा निकाले गये इस विज्ञापन का अनुपालन हो रहा है
राष्ट्रीय महिला आयोग ने आज एक विज्ञापन प्रकाशित की है। विज्ञापन महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित है। इस विज्ञापन पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है। विज्ञापन में क्या है? जरा इस पर ध्यान दीजिये। विज्ञापन में लिखा है –
क्या आपकी कंपनी में 10 से अधिक कर्मचारी कार्य करते है?
यदि हां, तो क्या आपने आईसीसी गठित की है?
(आंतरिक शिकायत समिति)
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम 2013 की धारा 4 के अधीन आईसीसी गठित करना अनिवार्य है
आईसीसी गठित न करने के परिणाम
- रुपये पचास हजार (या अधिक) का जुर्माना
- फर्म/कंपनी के लाइसेंस/पंजीकरण को निरस्त करना
महिलाओं के सुरक्षित कार्य परिवेश के लिए निम्न पहल करेः
- यौन उत्पीड़न को दुराचार समझें और आवश्यक कार्रवाई करें।
- कर्मचारियों के लिए कार्यशालाओं तथा जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करें।
अब सवाल झारखण्ड में चल रही स्वयं को एकमात्र विकास को समर्पित कहनेवाली स्वयंभू रघुवर सरकार से, कि आप बताएं कि आप के अधिकार क्षेत्र में चलनेवाली विभिन्न विभागों में क्या आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया गया है? उत्तर हैं – नहीं। जब राज्य द्वारा संचालित विभिन्न विभागों में आंतरिक शिकायत समिति नहीं गठित की गई, तो निजी क्षेत्रों में क्या हाल होगा? इसका आप आकलन करिये।
याद करिये, हाल ही में इसी साल फरवरी माह में जब मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में इस प्रकार का मुद्दा उठा और महिलाकर्मियों ने अपनी शिकायत आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष दर्ज करानी चाही, तो पता चला कि यहां तो आंतरिक शिकायत समिति का गठन ही नहीं हुआ है, तब ऐसी हालात में दोनों महिलाकर्मियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाया। प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाने से भी इन महिलाकर्मियों को न्याय नहीं मिला, बल्कि इस पूरे मामले को दबाने में मुख्यमंत्री कार्यालय ने एड़ी चोटी एक कर दी और संबंधित कंपनी को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, और जब सोशल साइट पर ये मुद्दा जोरों से उछला तो चार महीने पहले आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष शालिनी वर्मा को बनाया गया और शालिनी वर्मा के स्थानान्तरण के बाद, ये जिम्मेदारी सुनीता धान को सौंप दी गई।
स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र पर जो दाग लगा है, वो दाग कभी नहीं छूटेगा, चाहे मुख्यमंत्री कितना भी साबुन रगड़ लें या कुछ भी कर लें, क्योंकि सच्चाई तो सच्चाई है, उसे किस बात का डर। सच्चाई यह है कि झारखण्ड में महिलाओं की समस्याओं के निराकरण में राज्य सरकार की कभी रुचि नही रही, तभी तो चार साल होने को आये और राज्य सरकार के किसी भी विभाग में आंतरिक शिकायत समिति गठित नहीं की गई है, यहां काम ऐसे ही चल रहा है, ऐसे में आंतरिक शिकायत समिति न गठित करने के परिणाम क्या राज्य सरकार और उनके विभागों पर लागू होंगे। मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद ही बतायें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
यहीं हाल रांची से प्रकाशित अखबारों-चैनलों का है, जहां आंतरिक शिकायत समिति अब तक नहीं गठित की गई है, ऐसी कई कंपनियां इस राज्य में काम कर रही हैं, जहां तत्काल जांच हो जाये, तो कंपनियां राष्ट्रीय महिला आयोग के आगे नाक रगड़ती नजर आयेंगी, पर यहां किसे डर हैं? किसे हमारी मां-बहनों की इज्जत की पड़ी हैं, जहां का मुख्यमंत्री स्वयं एक लड़की (जिसका दुष्कर्म हुआ और बाद में उसकी नृशंस हत्या कर दी गई) के पिता को भरी सभा में धुर्वा में बेइज्जत कर देता है, उससे यह कामना करना कि वह पूरे राज्य के विभिन्न विभागों में आंतरिक शिकायत समिति का गठन करा देगा? ये मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं।