5 स्टार जिंदगी जीनेवाले पत्रकारों को CM ने थमाया पेंशन और BJP कार्यकर्ताओं को थमाया झूनझूना
सबसे पहले बात भाजपा कार्यकर्ताओं की ही कर लेते हैं, उसके बाद बात करेंगे सीएम रघुवर द्वारा तथाकथित पत्रकारों को दिये जानेवाले पेंशन की। आज जैसे ही अखबारों के माध्यम से पता चला कि पत्रकारों को अब राज्य सरकार ने पेंशन देने की बात की है, तो सर्वाधिक आक्रोश भाजपा कार्यकर्ताओं में देखने को मिला। कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने हमें फोन किया और बधाई दे दी कि भैया बधाई हो, आप पत्रकार है, मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आपको पेंशन थमा दिया। मैंने तुरन्त उसे जवाब दिया कि जो आदमी कभी किसी जिंदगी में किसी नेता का उपहार/विज्ञापन, यहां तक की उसका भोजन तक ग्रहण नहीं किया, वो नेता का थमाया पेंशन कैसे ले लेगा? बधाई देनेवाले भाजपा कार्यकर्ता की घिग्घी बंध गई।
उसने तुरन्त दुसरा सवाल दागा, कहा कि ठीक है आप पेंशन नहीं लेंगे, लेकिन कोई न कोई तो लेगा, मैंने कहा – जरुर लेगा, पर वो तुम्हारे जैसा या हमारे जैसे लोग नहीं होंगे, वे सारे पहुंचे हुए लोग होंगे, जो शुरु से तरमाल खाते रहे हैं और आगे भी खायेंगे, नहीं तो हरिशंकर परसाई की साहित्यिक रचना, ‘भेड़ और भेड़िये’ पढ लो। अरे जिसके लिए पेंशन बनी है, वो तो आज भी बिना पेंशन के वेतन से भी ज्यादा कमाई कर रहा है, उसे तुम या हम रोक भी नहीं सकते। जहां संपादकीय पृष्ठ बेचनेवाले संपादकों का जन्म हो चुका हो, जहां कानक्लेव के माध्यम से राज्य सरकार के धन को लूटनेवाले तथाकथित पत्रकारों का जन्म हो चुका हो, भला ये पेंशन उनके लिए क्या चीज है?
उस भाजपा कार्यकर्ता ने कहा कि भैया ये रघुवर दास पत्रकारों को क्या समझ कर पेंशन दिया, यहीं न कि वो फिर से उसे सत्ता में ले आयेगा। मैंने कहा कि ये तुम्हारी या तुम्हारे नेता की समझ हो सकती है, पर मैं जानता हूं कि किसी भी नेता को, नेता उसका कार्यकर्ता बनाता हैं, अगर वो संतुष्ट हैं तो ठीक हैं, नहीं तो असंतुष्ट हैं तो वह पार्टी और वो नेता गया काम से।
बेचारा भाजपा कार्यकर्ता रुआंसे स्वर में बोला कि भाजपा का बड़ा–बड़ा नेता जब भी सत्ता में आता है, तो बड़ा–बड़ा प्लान बनाता है, और सभी दूसरे के लिए ही काम करता है, पर कोई कार्यकर्ता पर ध्यान नहीं देता कि उसका गरीब कार्यकर्ता किस हाल में हैं, मर रहा हैं, या जी रहा हैं, या उसकी भी कोई व्यवस्था कर दें कि दाल–रोटी चलें, पर कोई नेता अपने कार्यकर्ता पर ध्यान नहीं देता, सभी अत्रकार–पत्रकार और पता नहीं, फिस्किल–स्किल लेकर बैठ जाता हैं, चलिए आने दीजिये एलेक्शन, नवम्बर और दिसम्बर में ही हैं ना, बताते है कि हम भाजपा कार्यकर्ता क्या है? बोकरादी न छोड़ा दिये रघुवर दास का, तो फिर कहियेगा?
ये संवाद है भाजपा कार्यकर्ताओं का, पर जब मैं उससे पूछता हूं कि तुम्हारे इस आक्रोश को तुम्हारे नाम से अभिव्यक्त कर दूं, वो कहता है कि छोड़ दीजिये, नहीं तो उधर से फोन आ जायेगा। ये आक्रोश ऐसे ही नहीं हैं, दिख भी रहा है। इधर रघुवर दास की कल कैबिनेट की बैठक हुई, बैठक में पत्रकारों के लिए पेंशन की बात हुई, तो सभी पत्रकार उछल गये, वे भी उछल गये, जिनको इसका लाभ किसी जिंदगी में नहीं मिलेगा? और लीजिये दांत निपोड़ते हुए, एक दूसरे को बधाई भी देने लगे।
एक ने कहा कि चलिए भाई, कुछ तो दिया न, पहले तो आज तक कुछ मिला ही नहीं, कुछ फेसबुक पर इस प्रकार से शब्दों की कलाकारी दिखा दी, जैसे लगता हैं कि उन्हें साक्षात पेंशन के रुप में भगवान राम और श्रीकृष्ण से भेंट हो गई हो। जबकि सच्चाई यह है कि रांची प्रेस क्लब का एक प्रतिनिधिमंडल पेंशन से संबंधित विषयों पर एक ज्ञापन मुख्यमंत्री रघुवर दास को पिछले दिनों सौपा था। कल की कैबिनेट में पत्रकारों पर लिये गये निर्णय से साफ पता लगता है कि रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष के नेतृत्व में गये उक्त प्रतिनिधिमंडल के ज्ञापन को राज्य सरकार और उनके अधिकारियों ने गतलखाने में फेंक दिया। जरा देखिये, पत्रकारों को पेंशन देने का क्या प्लान है?
- एक जनवरी 2015 के बाद अवकाश प्राप्त करनेवालों पर ही यह लागू होगा, इसका मतलब 2015 के पहले जिन्होंने सेवानिवृत्ति ली है, वे गये काम से।
- योजना का लाभ उन पत्रकारों को ही मिलेगा, जिन्होंने 20 साल की पत्रकारिता पूरी की हो, मतलब आज कान्ट्रेक्ट बेसिस पर जहां पत्रकारिता शुरु हो गई है, वहां शायद ही कोई 20 वर्ष की कन्टीन्यूटी जारी रख पायेगा।
- योजना का लाभ लेने के लिए सेवानिवृत्ति के समय पत्रकार के रुप में कार्यरत होना जरुरी है, अर्थात् जो फाइव स्टार की जिंदगी जी रहे हैं, उन संपादकों के लिए ये योजना शत प्रतिशत सुरक्षित हैं, क्योंकि ऐसे लोग ही सेवानिवृत्ति कर पायेंगे, नहीं तो जिनके पास जमीर होगा, शायद ही वे वर्तमान परिस्थिति में पत्रकार के रुप में सेवानिवृत्ति कर पायेंगे।
- किसी मामले में दो साल की सजा होने पर ऐसे पत्रकार पेंशन से वंचित कर दिये जायेंगे, मतलब सरकार के खिलाफ कुछ भी लिखे तो बाबू समझ लो, ऐसा फंसायेंगे कि सारी पत्रकारिता… ….मतलब समझ गये न, पेंशन लेना भूला देंगे।
जबकि रांची प्रेस क्लब ने जो मांगे रखी थी, वो इस प्रकार था, 20 वर्ष की पत्रकारिता को घटाकर 15 वर्ष की जाय, साढ़े सात हजार रुपये की राशि को बढ़ाकर पन्द्रह हजार की जाये, 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति को घटाकर 58 वर्ष की जाये, जो स्कूटनी के लिए कमेटी बनाई जाये, उसमें रांची प्रेस क्लब के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाये, अधिमान्यता की सीमा 15 वर्ष से घटाकर पांच वर्ष की जाये, पर इनमें से किसी मांग पर राज्य सरकार ने ध्यान नहीं दिया और अपनी मनमानी करते हुए, वहीं किया जो उनके अधिकारियों की चाहत थी।
रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह ने विद्रोही24.कॉम से बातचीत में कहा कि वे राज्य सरकार के इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं, हां उन्होंने पत्रकारों के लिए एक पेंशन योजना की शुरुआत की, केवल हम इसकी प्रशंसा कर सकते हैं, यानी ना की जगह पर हां हुआ, सिर्फ यहीं कह सकते हैं, पर इससे शायद ही सही मायनों में जो पत्रकार हैं, उनको राहत मिल पायेगी।
इसका फायदा असली में वहीं उठा पायेंगे जिन्हें सही मायनों में कहा जाये तो जरुरत भी नहीं होगी, लेकिन क्या कहा जाये, अपने देश में योजनाएं वहीं बनती है, जो वैसे लोगों को लाभ पहुंचा दें, जिनको वह लाभ नहीं भी मिले तभी वे आराम से जी सकते हैं। यानी एक ओर सीएम रघुवर ने वाहवाही लूटने की खूब करामात दिखा दी, पर सच्चाई यह है कि न तो इस पेंशन योजना से सच्चे पत्रकार खुश है और न ही इस योजना को सुनकर वे भाजपा कार्यकर्ता जो भाजपा के लिए जीने–मरने की कसम खाते हैं।