CM हेमन्त सोरेन की केन्द्र से मांग, आदिवासियों की वीरता व पराक्रम को देखते हुए अलग से आदिवासी रेजीमेंट का गठन हो
कोलकाता में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की 25 वीं बैठक आज संपन्न हो गई। इस बैठक में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने दिलचस्पी दिखाई, भाग लिया और इस बैठक में अपनी कई मांगों को रखा। आखिर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की कौन-कौन सी मांगे थी, जो चर्चा का विषय बना हुआ हैं, आइये इस पर ध्यान दें।
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पहली मांग थी कि झारखण्ड राज्य का विभिन्न कोयला कंपनियों जैसे CCL, BCCL, ECL पर कुल एक लाख छत्तीस हजार करोड़ रुपये बकाया है, जिसका भुगतान अतिशीघ्र कराने का अनुरोध किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि बंद खदानों का विधिवत् Mines क्लोजर कराया जाए ताकि पर्यावरण की सुरक्षा हो सके एवं अवैध खनन पर भी रोक लग सके। साहेबगंज को मल्टी मॉडल टर्मिनल के रूप में विकसित किया जा रहा है एवं भविष्य में यह पूर्वोत्तर राज्यों के लिए गेटवे बनेगा। अतः यहाँ पर Airport का निर्माण कराया जाए।
उन्होंने कहा कि रेलवे को सर्वाधिक आय झारखण्ड राज्य से प्राप्त होता है परंतु, झारखण्ड में रेलवे का एक भी जोनल मुख्यालय नहीं है। झारखण्ड में रेलवे का जोनल मुख्यालय स्थापित करने का निर्देश दिया जाए। उन्होंने कहा कि केन्द्र प्रायोजित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में विगत दस वर्षों से भारत सरकार द्वारा कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। महँगाई को देखते हुए इस राशि में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि वन (सरंक्षण) नियम, 2022 में जिस प्रकार से वन भूमि अपयोजन में ग्राम सभा के अधिकार को समाप्त किया गया है, उससे पूरे देश के 20 करोड़ आदिवासी एवं वनों में पीढ़ियों से निवास करने वाले लोगों के अधिकारों का घोर अतिक्रमण हुआ है। उनके अधिकारों की रक्षा के लिए इसे वनाधिकार अधिनियम 2006 के अनुरूप संशोधित किया जाए।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना में झारखण्ड के लगभग आठ लाख पैंतीस हजार परिवार इसके लाभ से अभी भी वंचित हैं। इन सभी को आवास स्वीकृत करने का निर्देश ग्रामीण विकास मंत्रालय को दिया जाए। उन्होंने कहा कि झारखण्ड जैसे उग्रवाद प्रभावित एवं गरीब राज्य में CAPF की प्रतिनियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य सरकार से राशि के भुगतान की माँग नहीं की जानी चाहिए। GST कंपनसेशन की अवधि को अगले 05 वर्षों तक विस्तारित किया जाए अन्यथा झारखण्ड को प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच हजार करोड़ रूपये का नुकसान होने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास आदिवासियों के बलिदान से भरा पड़ा है परंतु इनकी वीरता को वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वह हकदार हैं। इसलिए सेना में आदिवासी रेजिमेंट के गठन का निर्देश रक्षा मंत्रालय को दिया जाए। पांच हेक्टेयर तक की वन भूमि के अपयोजन के लिए राज्य सरकार के द्वारा स्वीकृत किये जाने के पूर्व के प्रावधान को बहाल किया जाए।