दूसरों को उपदेश देनेवाले CM रघुवर ने चाइनीज लाइट, तो नीतीश कुमार ने मिट्टी के दिये जला मनाई दिवाली
दिवाली सब के लिए खास होता है। अमीरों के लिए भी गरीबों के लिए। यह चरित्र को भी उजागर करता है। दिवाली बताता है कि किसके मन में खोट और किसके मन में प्रेम छुपा है। इस बार की दिवाली ने भी नेताओं के अंदर बैठे डबल कैरेक्टर को उजागर कर दिया। दिवाली के दिन मिट्टी के दिये जलाइये, अपने कुम्हार भाइयों के प्रति अनुराग दिखाइये, कहनेवाले झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कल दिवाली के दिन जमशेदपुर स्थित अपने आवास में जमकर चाइनीज लाइट्स का प्रयोग किया।
उन्होंने अपने लोगों के साथ फूलझड़ियां भी छोड़ी और दिवाली का आनन्द लिया, वे भूल गये कि कभी इन्होंने दीवाली के नाम पर लगे मेलों में लोगों से मिट्टी के दिये जलाने का अनुरोध किया था। पर जब अपने घर में अमल करने की बात हुई तो उन्हें चाइनीज लाइट्स ही याद आये, जबकि इसके विपरीत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किसी से कोई अपील नहीं की, पर उन्होंने खुद को एक आदर्श के रुप में स्थापित कर दिया, उन्होंने अपने आवास में हर प्रमुख स्थानों पर मिट्टी के दिये जलाये, लोगों के साथ मिलकर दिवाली का आनन्द लिया तथा बेकार के प्रदूषण फैलानेवाले पटाखों से खुद को दूर रखा।
इधर हमने रांची में इक्के दुक्के लोगों को देखा, जिन्होंने किसी से कोई अनुरोध तो नहीं किया, पर खुद मन में संकल्प किया था कि वे विदेशी वस्तुओं का इस बार दिवाली में कोई प्रयोग नहीं करेंगे और उन्होंने ग्रामोद्योग में बने मोमबत्तियों/दियों के सहारे, अपने घरों को सजाया, प्रकाश फैलाया तथा देश को आर्थिक रुप से सशक्त बनाने के लिए एक कदम बढ़ाया, उसमे हम झारखण्ड सिविल सोसाइटी से जुड़े आर पी शाही का नाम यहां ईमानदारी से रखना चाहेंगे, मैंने उन्हें देखा कि उन्होंने किसी से कुछ कहा तो नहीं, पर करके दिखा दिया। जरुरत इसी की है, कहो नहीं, करके दिखाओ।
अब बात झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की। इनकी बात ही निराली होती है, अगर इन्होंने कुछ कह दिया तो मान लीजिये, वो जमीन पर नहीं उतरेगा। उसका सुंदर उदाहरण है, दिवाली को लेकर पिछले दिनों उनका बयान और दिवाली के दिन का प्रत्यक्ष प्रमाण, जो इस आर्टिकल में आपके सामने उपलब्ध है। हमारा मानना है कि नेताओं को इस प्रकार के बयान से दूर रहना चाहिए, जो वे जमीन पर नहीं उतार सकते।
हम तो यह भी मानते है कि आप नया विधानसभा भवन, नया उच्च न्यायालय भवन या प्रेस क्लब भवन बना सकते हो, किसी महापुरुष की प्रतिमा बनवा सकते हो, क्योंकि इसमें करना क्या है, अरे राशि उपलब्ध करनी है, और राज्य के आइएएस, अभियंता और ठेकेदार मिलकर, देखते-देखते ही उसे तैयार कर देंगे, वह भी समय से पहले, क्योंकि इसमें अर्थ छुपा होता है, इसमें सभी का कमीशन उपलब्ध रहता है, इस कमीशन में ही तो परमानन्द की प्राप्ति होती है, क्योंकि बिना मेहनत के इसमें सब कुछ प्राप्त हो जाता है, पर दिवाली में मिट्टी के दिये जलाना इतना आसान नहीं, क्योंकि उसमें ईमानदारी की जरुरत होती है, मामला दिल से जुड़ा होता है, इसलिए इसमें दिल का साफ होना भी उतना ही जरुरी है, इसलिए आप इन सभी मामलों में पीछे छूट जाते हैं, और जनता के सामने आपकी हकीकत सामने आ जाती है।
ये अलग बात है कि दिवाली के दिन राज्य के क्षेत्रीय चैनलों के संवाददाता, आपके घरों पर होते हैं, पर उन्हें आपका यह दोहरा मापदंड या दोहरा चरित्र नहीं दिखाई देता, इस पर वे बोलना भी नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें उपर से आदेश होता है कि आप सकारात्मक न्यूज दिखाये, जिससे मुख्यमंत्री से प्राप्त विज्ञापन का अनुदान मिलने में रुकावट न हो, क्योंकि आपके वेतन भी उसी विज्ञापन के अनुदान से प्राप्त होते है, न कि आपके क्रांतिकारी विचारधाराओं या सत्य बोलने से।
सचमुच इस बार की दिवाली ने दो नेताओं को, दो मुख्यमंत्रियों को जनता के सामने रखा। एक झारखण्ड के मुख्यमंत्री का और दूसरे बिहार के मुख्यमंत्री का। दोनों ने अपने-अपने स्वाभावानुसार दिवाली मनाई। झारखण्ड के मुख्यमंत्री भूल गये कि उन्हें अपने घर और आस-पास मिट्टी के दिये जलाकर दिवाली मनानी है, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने याद रखा कि हमारी परंपरा तो दिये जलाने की है, दिवाली तो दिये शब्द को ही परिभाषित करता है, इसलिए चाइनीज लाइट्स की क्या आवश्यकता, तभी तो उन्होंने दिये जलाकर, अपनों के बीच काफी समय तक समय भी बिताया, जबकि दूसरी ओर ये सब बाते केवल भाषणबाजी तक सीमित रही, और पटाखा छुटता रहा, प्रदूषण फैलता रहा।