पूरे झारखण्ड से सीएम रघुवर दास का इकबाल समाप्त, जनता को अब 2019 की आस
पूरे राज्य की जनता को 2019 की इंतजार है कि कब 2019 आये, चुनाव आयोग झारखण्ड में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी करें और वर्तमान रघुवर सरकार को ठिकाने लगाएं। झूठ और सिर्फ झूठ पर टिकी रघुवर सरकार को अपने एलइडी तथा झूठे प्रचार तंत्र पर पूरा भरोसा हो गया है, यहां के सीएम रघुवर दास को विश्वास हो गया है कि जिस प्रचार इवेन्ट्स की जादूगरी से नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश को 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी ओर झूका दिया, ठीक उसी प्रकार वे अपने कनफूंकवों और प्रचार तंत्र की जादूगरी से झारखण्ड की जनता को एक बार फिर मूर्ख बना देंगे।
ऐसे तो पूरे राज्य में रघुवर दास के शासन का इकबाल समाप्त हो गया है, पर सीएम रघुवर दास को लगता है कि यत्र-तत्र-सर्वत्र उन्हीं की धूम है, सीएम के उलूलजुलूल बयान भी जनता के क्रोधाग्नि को और बढ़ावा दे रहे हैं। हाल ही में जैप आइटी के वेंडरों द्वारा चयनित अभ्यर्थियों के बीच सीएम ने चयन पत्र वितरित किया था, उस वक्त उन्होंने कहा था कि सूबे में रोजगार की नहीं, गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन की कमी है, जिसको लेकर यहां के झारखण्डी युवकों में गहरा आक्रोश हैं।
यहां के युवकों का कहना है कि दरअसल इस बयान की आड़ में मुख्यमंत्री बाहरी लोगों को मौका देना चाह रहे हैं, ये युवक ये भी कहते हैं कि कुछ पल के लिए ये मान भी लिया जाये कि यहां गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन की कमी है तो फिर सीएम रघुवर ही बताएं कि गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन के लिए सीएम ने अपने चार साल के शासनकाल में क्या किया? सिर्फ यहीं तो किया कौशल विकास के नाम पर करोड़ों बजट उपलब्ध कराये और बाहर के लोगों को वे सारे करोड़ों रुपये कमीशन लेकर उपलब्ध करा दिये और झारखण्डी युवक छलते चले गये, ऐसे में यहां के युवा ऐसे सीएम पर विश्वास क्यों करें?
यहां के युवा, ये भी कहते है कि 2016 में सीएम रघुवर दास एक नारा दिया करते थे, ‘खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में, शहर का पानी शहर में’। अरे जब पानी ही नहीं है, और जलसंरक्षण के लिए कोई आपकी ठोस प्लानिंग ही नहीं, नीति ही नहीं तो फिर ये नारा का ढोंग करने से पानी खेत, या गांव या शहर में थोड़े ही ठहर जायेगा। यहां के युवा कहते हैं कि किसानों को इजराइल भेजने का नाटक करनेवाले सीएम रघुवर दास से पूछिये कि रांची शहर से कुछ ही दूरी हटकर पिस्कानगड़ी के किसान अपनी धान की फसल को काटकर मवेशी को क्यों खिला रहे हैं? आखिर पानी के अभाव में उनकी धान की फसल क्यों बर्बाद हो गई, वो सारा डोभा किस बिल में घुस गया, जिसका दावा किया जा रहा था? कि पूरे राज्य में लाखों की संख्या में डोभा बनाये गये थे, किसानों का बीमा योजना का पैसा का क्या हुआ? अरे उल्लू बनाने के लिए सीएम को यहां के किसान-मजदूर ही मिले हैं।
यहां के युवा कहते हैं कि पूछिये सरकार से कि यहां पर गरीब ही भूख से क्यों मरते है, कोई मंत्री या उसका रिश्तेदार भूख या गरीबी का शिकार क्यों नहीं हो रहा या इन मंत्रियों और नेताओं के आगे-पीछे घूमनेवाले पत्रकार/अधिकारी/सरकारी योजना का लाभ ले रहे व्यापारियों का समूह या उनके रिश्तेदार भूख या गरीबी के शिकार क्यों नहीं हो रहे?
युवाओं का आक्रोश तो इतना है कि पूछिये मत, उनका तो ये भी कहना है कि आखिर गृह विभाग संभाल रहे सीएम रघुवर दास बताये कि राज्य में कानून व्यवस्था इतनी चौपट क्यों हो गई, राजधानी रांची क्राइम कैपिटल में कैसे परिवर्तित हो गया, आखिर दुष्कर्म मामले में 60 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करने में झारखण्ड पीछे क्यों हैं? आखिर जिन्हें जेल में होना चाहिए, उन्हें बॉडीगार्ड क्यों उपलब्ध कराया जा रहा है, क्या झारखण्ड की जनता महामूर्ख है? जिस मी टू अभियान का शिकार कैलाश खेर जैसे लोग हुए, वैसे लोगों को झारखण्ड स्थापना दिवस के अवसर पर क्यों बुलाया जा रहा?
युवाओं का दल तो ये भी कहता हैं कि राज्य में कोई सुरक्षित नहीं, कब किसकी हत्या हो जाये, कब किसको लूट लिया जाये, कब कोई लड़की बलात्कार का शिकार हो जाये, कब कोई किसान अपना माली हालात देख, आत्महत्या का शिकार हो जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता, यहां तो मंत्री ही, मुख्यमंत्री के विभाग के कारगुजारियों से खफा होकर, कोतवाली थाने में अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ जाता है, यानी जिस राज्य में मंत्री ही मुख्यमंत्री के विभाग के खिलाफ धरने पर बैठ जाता हो, वहां की क्या हालत होगी? कल की ही बात है कि इन्हीं सभी बातों को लेकर, धनबाद के भाजपा सांसद पीएन सिंह को उनके ही कार्यकर्ताओं ने पांच घंटे तक हिलने-डूलने नहीं दिया।
जरा अब राज्य के कर्मचारियों का सरकार के प्रति गुस्सा देखिये, सभी हड़ताल पर जाने का मूड बना रहे हैं, क्यों तो आप समझिये? मुखिया संघ अपनी मांगों को लेकर 15 नवम्बर से कलमबंद हड़ताल पर जा रहा हैं, अंचल निरीक्षक संघ 26 नवम्बर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहा है, राजस्व उप निरीक्षक संघ भी अपनी मांगों को लेकर 26 नवम्बर से हड़ताल पर जाने को तैयार है, मनरेगाकर्मी संघ भी हड़ताल पर जाने को अडिग है और इधर रसोइयां संघ रांची में प्रतिदिन प्रदर्शन कर, अपना आक्रोश व्यक्त कर रहा है, पर मुख्यमंत्री के आस-पास रहनेवालो कनफूंकवों को इससे क्या मतलब? उन्हें तो लगता है कि पूरे राज्य में सब ठीक-ठाक हैं, इनका वश चले तो झारखण्ड की 81 विधानसभा सीटों में भाजपा को 162 और लोकसभा की 14 सीटों में से 28 सीटें जीतवा दें, पर सच्चाई ये है कि झारखण्ड विधानसभा में डबल डिजिट में भी भाजपा की जीत हो जाये, तो गनीमत हैं, लोकसभा के चुनाव में तो इनका पूरा सफाया हैं।
आक्रोशित युवाओं का कहना है कि इस सरकार में पहली बार जातीयता एवं संघ के नाम पर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे संघ समर्थक एक व्यापारी वर्ग को लाभ पहुंच रहा हैं, जिससे सर्वाधिक नुकसान झारखण्ड के मूलनिवासियों और आदिवासियों का हो रहा है, युवा वर्ग ये भी कह रहा है कि अगर ये सरकार कन्टीन्यू हो गई तो समझ लीजिये, आनेवाले समय में झारखण्ड का नाम रहेगा, पर झारखण्डी नजर ही नहीं आयेंगे, यानी जिनके नाम पर झारखण्ड हुआ, वह झारखण्ड अपने अस्तित्व के लिए तरसता नजर आयेगा और इसके लिए अगर कोई जिम्मेवार हैं तो वह हैं भाजपा, उसके नेता और उसकी सरकार।