मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी में एक रुपये की वृद्धि और अपने लिए लाखों की व्यवस्था कर ली CM ने
जरा इस बेशर्म सरकार से पूछिये कि जिस देश में एक कानून, एक टैक्स की बात हो रही हैं, उसी देश में खासकर झारखण्ड में मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी में मात्र एक रुपये की वृद्धि क्यों की गई? और यह राशि आज 167 रुपये से बढ़कर 168 रुपये ही मात्र क्यों हुई? यानी झारखण्ड की जनता, झारखण्ड के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में एक रुपये की वृद्धि और जनता का सेवक खुद को बतानेवाला और स्वयं को राजा की तरह माननेवाला, खुद अपना वेतन 1.90 लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपये महीना कर लिया और अपने मंत्रियों को 1.65 लाख से बढ़ाकर 2.70 लाख रुपये कर लिया। क्या ऐसा व्यक्ति झारखण्ड का मुख्यमंत्री कहलानेलायक है, जनता निर्णय करें।
पूछिये, झारखण्ड के राजा बने मुख्यमंत्री रघुवर दास से, कि इस 1000 दिन में, उन्हें माननीयों के साथ-साथ अपने लिए वेतनवृद्धि की आवश्यकता क्यों समझी? क्या उन्हें जो वेतन मिल रहे थे, उससे घर नहीं चल रहा था? अरे भाई आज के जमाने में जहां फोन करने के पैसे ही नहीं लगते। 300 रुपये से 500 रुपये का मोबाईल रिचार्ज कराइये और तीन-चार महीने तक मुफ्त बात करते रहिये, जितना मन करें डाटा यूज करिये, वहां दस-दस हजार टेलीफोन के लिए अलग से राशि देने की क्यों व्यवस्था की गयी? यह जनता के साथ धोखा नहीं। यह जनता के द्वारा दी गई टैक्स की सरकारी डकैती नहीं? अरे भाई ये क्या मजाक बना रखा हैं?
आज इस रघुवर सरकार ने उनके उपर ज्यादा ध्यान दिया हैं, जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं। जो आर्थिक रुप से मजबूत है। जो विकास के नाम पर बनी योजनाओं को कमीशन के माध्यम से डकार जाते है। जो एक बार विधायक बनते ही, रांची-कोलकाता-मुंबई-गोवा आदि बड़े-बड़े शहरों में आइएएस व आइपीएस की तरह लूट मचाकर आशियाने बनाते हैं। जो मरने के पूर्व सात पुश्तों तक की व्यवस्था कर लेते हैं। जो अपने बेटे-बेटियों-बहूओं-दामादों-ढेर सारी प्रेमिकाओं-पत्नियों की भी व्यवस्था कर जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए वेतनवृद्धि हो रही हैं, और आम जनता आज भी बढ़ी हुई महंगाई से त्रस्त होकर दो रोटियों के लिए तरस रही हैं।
इस देश में केन्द्र व राज्य की सरकार ने ऐसी स्थिति लाकर खड़ी कर दी है कि आम जनता जो अपने पैसे बैंकों में रखी है, उन बैंकों में रखे पैसों पर भी इनकी गिद्धदृष्टि हैं, जिसे उडाने में वह सारा दिमाग लगा रही हैं।
मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा कल की कैबिनेट में मुख्यमंत्री, मंत्रियों, स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और माननीयों के वेतन में की गई बेतहाशा वृद्धि यह बताने के लिए काफी है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य के करोड़ों जनता की छाती पर मूंग दल दिया हैं और इनका मूंग दलना तब तक जारी रहेगा, जब तक इन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता। हमें लगता है कि जनता ने निर्णय ले लिया हैं। चुनाव जब भी हो। विपक्षी एकता बने अथवा न बने। आनेवाले समय में यहां की जनता भाजपा सरकार को सबक सिखाने के लिए तैयार हो चुकी हैं।
ऐसे समय में, जबकि राज्य सरकार को आम जनता की कोई चिंता नहीं, वह केवल अपने और अपने मंत्रियों की चिंता में घुली जा रही हैं, ऐसे में महेन्द्र प्रसाद सिंह, ए के राय जैसे नेता बरबस याद आ जाते हैं। काश ऐसे विधायकों की संख्या झारखण्ड में ज्यादा होती और वे आम जनता की खुशियों के लिए लड़ रहे होते।
झारखण्ड में एक ही विधायक हुए, महेन्द्र प्रसाद सिंह। वे भाकपा माले विधायक दल के नेता हुआ करते थे, जिससे राज्य की सरकार थरथर कांपती थी। वे जब सदन में बोलते थे, तो वे अकेले विपक्ष का काम संभाल दिया करते थे। उनके सदन में बोलने का ही प्रभाव होता था कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों उनकी समान रुप से इज्जत किया करते थे। वे अखबार के मालिकों और उनके प्रधान संपादकों की भी घिग्घी बंद कर दिया करते थे, पर आज अब वैसा नहीं हैं, कुछ दिनों तक उनके बेटे विनोद कुमार सिंह ने उन परंपराओं को बचाये रखा, पर विनोद कुमार सिंह की चुनावी हार ने झारखण्ड विधान सभा की मान-मर्यादा तक को प्रभावित कर दिया।
मैंने यहां पर एक से एक वामपंथी विधायकों को देखा है, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वामपंथी विचारधारा को किसी ने सही मायने में क्रियान्वित किया तो वे महेन्द्र प्रसाद सिंह ही रहे, बाकी सब ने सदन को धोखा दिया। वे बार-बार माननीयों के वेतनवृद्धि होने पर सवाल उठा दिया करते, सवाल भी ऐसा होता, जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता।
जरा देखिये एक पार्टी है मार्क्सवादी समन्वय समिति जिसके बहुत बड़े नेता है – ए के राय। जो कई बार विधायक और सांसद रहे, पर उन्होंने पेंशन तो छोड़ दीजिये, वेतन तक नहीं लिया। चरित्र और मर्यादा की बात करें तो ऐसे ए के राय जैसे नेता तो सत्तापक्ष या विपक्ष में ढूंढने को नहीं मिलेंगे। ऐसे भी ये नेता आउटडेटेड हैं, लोग भी उन्हें वोट नहीं देते, और इस कारण ऐसे नेता संसद या विधानसभा की शोभा नहीं बनते।
मैं ये नहीं कहता कि भाजपा और कांग्रेस में अच्छे नेताओं का अभाव है, वहां भी बहुत अच्छे-अच्छे संस्कारवान नेता होंगे, पर उन्हें बोलने या काम करने नहीं दिया जाता। वे गुंडों और असामाजिक तत्वो के आगे झक-झूमर गा रहे होते हैं। आप कहेंगे कि आज इस मुद्दे को उठाने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? वह इसलिए कि आज एक बार फिर राज्य की रघुवर सरकार ने आम जनता के हितों को ताक पर रखकर स्वहित पर ज्यादा ध्यान दिया।