सीना ठोकनेवाले CM चुनौती तो दे दिये, पर जब विपक्ष का जवाब मिला तो भाग खड़े हुए
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पिछले दिनों 6 अप्रैल को भाजपा के स्थापना दिवस पर राज्य के विपक्षी दलों को चुनौती दी थी। उन्होंने भाजपा प्रदेश कार्यालय में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि वे चुनौती देते है, वह भी सीना ठोक कर कह रहे हैं हमने काम किया है, विपक्ष ने नहीं। वे यह भी बोले की विकास के सवाल पर कहीं भी डिबेट करने को वे तैयार हैं। उन्होंने स्थान भी तय कर लिया था, कह डाला कि मोरहाबादी मैदान में विपक्ष आये और विकास के सवाल पर उनसे बहस करें। यहीं नहीं उस दिन यह भी कह डाला कि वे दिन भर अगर बोलते रहे तो भी तीन साल की सरकार की उपलब्धि खत्म नहीं होगी।
सत्ता का मद होता ही ऐसा हैं, जनाब खुब दहाड़ रहे हैं, दहाड़ ऐसी है कि कार्यकर्ता-नेता भी उस दिन वाह-वाह करने लगे, आगे-पीछे करनेवाले तथा इसका चुनाव में फायदा उठाने को बेचैन नेता भी कहने लगे कि वाह, आज मुख्यमंत्री रघुवर दास ने क्या भाषण दिया हैं? कहनेवाले कहने लगे कि देखना कल का अखबार अपने सीएम छाये रहेंगे, पर किसी ने ये नहीं कहा कि सीएम के इस ललकार को हाथों-हाथ स्वीकार करनेवाले विपक्ष के नेता यहां पंक्तिबद्ध खड़े हैं।
विपक्ष के एक नेता ने तो स्पष्ट रुप से www.vidrohi24.com को बताया कि जब सीएम विकास के नाम पर सीना ठोकना जानते हैं, जब सीएम ने स्थान भी मुकर्रर कर लिया, जब सीएम ने विपक्ष को चुनौती दे डाला, तो फिर समय और तिथि मुकर्रर क्यों नहीं कर देते? विपक्ष तो तैयार बैठा है, इस चुनौती को स्वीकार कर चुका है, अब देर किस बात की है, क्या सीएम सिर्फ सीना ठोकना जानते हैं, चुनौती देना जानते है कि उस पर अमल भी लायेंगे, ताकि जनता को भी पता चले कि अपने मुख्यमंत्री कितने पानी में हैं?
जिस दिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ये बयान दिया था, ठीक उसी दिन राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री एवं झारखण्ड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने उनकी चुनौती को स्वीकार किया था और कह डाला था कि हम कहीं भी बहस के लिए तैयार है, यहीं नहीं विकास ही सिर्फ नहीं उन सभी मुद्दों पर बहस करने को तैयार है, जिस पर सरकार बहस कराना चाहती है, पर दो दिन बीत गये, सीएम रघुवर दास की ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा। क्या सीएम रघुवर अपने चुनौतियों से भाग खड़े हो रहे हैं, क्या उनको पता चल गया है कि मोरहाबादी मैदान में जब कभी विकास को लेकर सत्तापक्ष की विपक्ष के साथ बहस होगी तो विपक्ष का पलड़ा भारी हो जायेगा? कहीं यहीं डर तो सीएम को नहीं सताने लगा।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस तरह की भाषा मुख्यमंत्री या किसी राजनीतिक दल के प्रमुख नेता की हो ही नहीं सकती, आप विपक्ष को इस प्रकार चुनौती नहीं दे सकते, यह शिष्ट भाषा भी नहीं। कुछ दिन पूर्व सदन में इसी प्रकार के भाषा का प्रयोग विपक्ष के लिए, मुख्यमंत्री ने किया था, जिसको लेकर सदन और सदन से बाहर भी मुख्यमंत्री का कड़ा विरोध हुआ था, और दो दिन पूर्व फिर इस प्रकार का, सीएम का बयान बताता है कि सीएम रघुवर ने शायद आत्मविश्वास खो दिया है, और वे बयानवीर बनकर सभी को हरकाना चाह रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि राज्य में नगर निकाय के चुनाव हो रहे हैं, जिसमें हर जगह पर भाजपा की हालत नाजुक हैं, खुद भाजपा के कार्यकर्ता एवं नाराज नेता, सीएम को सबक सीखाने के लिए तैयार हैं। भाजपा का सफाया होने जा रहा हैं, पर सीएम रघुवर को बयानबाजी से फुर्सत नहीं, ऐसे में नगर निकाय चुनाव के परिणाम द्वारा जनता खुद ही बता देगी कि कितना विकास हुआ और सरकार पर उसे कितना भरोसा हैं?