चार दिवसीय साधना संगम का समापनः अगर हम ईश्वर को पाने के लिए आधे-अधूरे मन से प्रयास करेंगे तो वे भी आधे-अधूरे मन से ही हमें प्राप्त होंगेः स्वामी आद्यानन्द
अगर हम ईश्वर को पाने के लिए आधे-अधूरे मन से प्रयास करेंगे, तो ईश्वर भी आधे-अधूरे मन से ही हमें प्राप्त होंगे। हमेशा याद रखिये कि हम जो भी कुछ करते हैं, वहीं प्रतिफल के रुप में हमारे पास आता है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम दिनचर्या के आदि न होकर, कोई भी काम करें तो उत्साह के साथ करें, ताकि हमारा जीवन आनन्द से भर जाये। उक्त बातें स्वामी आद्यानन्द ने चार दिवसीय साधना संगम के समापन अवसर पर योगदा भक्तों से कही। स्वामी आद्यानन्द नोएडा से अपनी बातें रख रहे थे, जिसे महाराष्ट्र के इगतपुरी, झारखण्ड के रांची सहित देश के अन्य भागों में साधना संगम में शामिल योगदा भक्तों का समूह ऑनलाइन श्रवण कर रहा था।
स्वामी आद्यानन्द ने अपने आध्यात्मिक प्रवचन की शुरुआत में ही एक सुन्दर कहानी सुनाकर योगदा भक्तों को भाव-विभोर कर दिया और यह बता दिया कि अपने जीवन में उत्साह पूर्वक काम करने का क्या परिणाम निकलता है। उन्होंने कहा कि अमरीका में एक बढ़ई लकड़ी के मकान बनानेवाले एक धनी व्यक्ति के यहां वर्षों से काम करता था। बढ़ई की सुंदर कारीगरी देखकर वो धनी व्यक्ति उससे बड़ा प्रसन्न रहता था। साथ ही कभी-कभी कह दिया करता कि वो उसके बच्चों से भी अधिक और अच्छे ढंग से अपने कामों को अंजाम देता है, जिससे वो उसके कार्यों से बहुत ही खुश है।
एक दिन उस बढ़ई के मन में विचार आया कि क्यों न, अपने कार्यों को एक अलग मुकाम दिया जाय और अपना एक अलग दुकान खोल दिया जाये। उसके पास तो हुनर है ही। एक दिन अपने मालिक से उस बढ़ई ने कहा कि वो अब उनके यहां सेवा नहीं देगा, वो अपना अलग काम करेगा। इसलिए उसे अब वो उनकी सेवा से मुक्ति दें। मालिक ने कहा कि ठीक है, वो जैसा चाहता है, वही होगा। उसने बढ़ई से कहा कि वो उसे अपनी सेवा से मुक्ति दे देगा, लेकिन एक शर्त है कि उसके पहले वो एक मकान और बढ़िया से बनाकर दे दें। बढ़ई ने उसकी बात मान ली।
लेकिन मकान बनाने के क्रम में उसने काम को आधे-अधूरे मन से पूरा करना शुरु किया, जिससे मकान तो तैयार हुए, पर वो मकान ढंग का नहीं बन सका। एक दिन मालिक ने उक्त बढ़ई को सेवा से मुक्त करने के पहले एक पार्टी रखी और उस पार्टी में उसने उस बढ़ई की खुब जमकर तारीफ की और कहा कि इस व्यक्ति ने ऐसी सेवा दी हैं कि वैसी सेवा उनका बेटा भी आज तक नहीं दिया है। इसलिए इस खुशी के अवसर पर वे एक मकान अपनी ओर से उक्त बढ़ई को देना चाहते हैं। बढ़ई यह सुनकर हैरान रह गया, क्योंकि जो मकान उसने आधे-अधूरे से बनाये थे। जो ठीक ढंग से नहीं बना था। उसे ही अब देकर उक्त बढ़ई को पुरस्कृत किया जा रहा था।
स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि यह कहानी बताता है कि हम जो भी करते हैं। वहीं हमारे सामने आ खड़ा होता है। इसलिए कोई भी काम करें तो उत्साह के साथ करें। उस काम को पूरा करने में कभी भी उत्साह में कमी नहीं लायें। नहीं तो दिक्कत आपको ही होगी, किसी दूसरे को नहीं। उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखें, जैसे समय बीतने के साथ-साथ शरीरों में विकृतियां व चेहरे पर झूर्रियां आ जाती हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन में अगर उत्साह का परित्याग कर देने से आत्मा में झूर्रियां आ जाती है।
उन्होंने कहा कि ध्यान के समय हमारा प्रेम सदैव भगवान के श्रीचरणों में होना चाहिए। ध्यान के समय हमारा सब कुछ भगवान के लिए होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान के साथ जब हम होते हैं, तो हमेशा उस वक्त आनन्द का अनुभव करने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ध्यान करने के वक्त अगर आप उत्साह से प्रेरित होंगे तो निश्चय ही भगवान का विचार भी आपके साथ होगा। हम जितनी बार भगवान के पास जायेंगे, उतनी बार हम उनके आनन्द को महसूस करेंगे।
उन्होंने कहा कि गुरुजी कहते हैं कि हमारा ध्यान हमेशा प्रेमपूर्वक व भक्तिपूर्वक होना चाहिए, चाहे ईश्वर मेरे पास हो अथवा न हो। उन्होंने कहा कि हम जितना ध्यान करेंगे, जितना ध्यान की गहराई में डूबेंगे, हम उतने ही एक्सपर्ट होते जायेंगे। उन्होंने कहा कोई व्यक्ति ईश्वर की दिव्यता को तभी महसूस करता है, जब वो अपना समय ध्यान करने में ज्यादा लगाता है। उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर के आनन्द को प्राप्त करना हमारी श्रद्धा, प्रेम व भक्ति पर निर्भर करता है। उन्होंने साफ कहा कि आत्मा के लिए बहुत जरुरी है, प्रेम का निरन्तर अभ्यास।
स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि जब आत्मा प्रेम से भर जाती है तो ईश्वर को ही सिर्फ देखना पसन्द करती है। उन्होंने कहा कि सिर्फ एक बार ईश्वर को प्राप्त करने की इच्छाशक्ति मात्र से ही हम ईश्वर को प्राप्त करने में लग जाते है। बशर्तें हमारी इच्छाशक्ति में मजबूती हो, प्रेम हो, श्रद्धा निहित हो। उन्होंने कहा इच्छाशक्ति अगर अधूरी है तो हमारे अंदर प्राणशक्ति का प्रवाह नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखें कि जो भी काम कर रहे हैं, वो ईश्वर के लिए ही कर रहे हैं। चाहे वो काम कोई भी हो। वो आफिस में किया जा रहा काम हो या घर में।
उन्होंने कहा कि वे कई बार कह चुके हैं कि एक भक्त का सिर्फ 25 प्रतिशत प्रयास और उसके गुरु की 25 प्रतिशत कृपा हो जाये तो ईश्वर अपनी ओर से 50 प्रतिशत देने के लिए हमेशा उद्यत रहते हैं और इसी से एक भक्त का कल्याण भी हो जाता है। उन्होंने कहा कि आप हमेशा अपने काम करने की क्षमता को बढ़ाइये। दूसरे का भी काम करें तो यह ख्याल रखें कि वो अपना ही काम है, भगवान का ही काम है। जो भी व्यक्ति आधे-अधूरे ढंग से काम करता है, उसे भगवद्प्राप्ति नहीं हो सकती।
स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि अगर आप ने लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। लेकिन उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किये जा रहे कार्यों को पूरा करने में उत्साह नहीं तो फिर समझ लीजिये आप लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते। हर काम में आप अपने आत्मा की अनन्त शक्ति को उसमें समायोजित करें। अगर कोई कहता है कि उसके पास कोई भी काम नहीं हैं, तो वो स्वयं को दोषी ठहरा रहा है। जो भी काम अच्छा लगे, उसे करिये। कोई भी काम करेंगे और उसमें उत्साह लगायेंगे तो सफलता मिलेगी, आनन्द प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा कि अगर आप जीवन में प्रसन्न नहीं हैं। इसका मतलब है कि आपके जीवन में उत्साह की कमी है। इसका मतलब यह भी है कि आपने लक्ष्य रखा जरुर पर इच्छाशक्ति को नहीं जगाया, उसे मन से नहीं स्वीकारा, उसमें प्रेम के बीज नहीं बोए। आद्यानन्द का कहना था कि अगर जीवन में कष्ट भी आये तो उस कष्ट में भी उत्साह को मत छोड़िए।
स्वामी आद्यानन्द ने इसी दौरान एक लिटिल फ्लावर नामक महिला की कहानी सुनाई। जिसने कष्टों में भी रहकर, जीवन में उत्साह को नहीं छोड़ा, भगवान में अपना प्रेम बनाये रखा। वो हमेशा भगवान के दिव्य प्रेम में रहती थी। जिसके कारण वो जब तक जीवित रही, कष्टों के बावजूद भी वो आनन्द में ही रही। उसे कष्ट का कभी अनुभव ही नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कोई भी कर्म अगर दूसरे कर्म को करने से रोकता है तो वो सच्चा कर्म नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि गुरुजी के बताए गाइडलाइन्स को मानते हुए अपने कार्यक्रम को गति दीजिये। हमेशा प्रसन्न रहिये। जीवन में उत्साह को बनाए रखिये। आप हमेशा सफल होंगे।
साधना संगम के समापन समारोह के दौरान ही स्वामी आद्यानन्द ने परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित “आरोग्यकारी वैज्ञानिक प्रतिज्ञापन” एवं “भयमुक्त जीवन” नामक दो पुस्तकों का लोकार्पण किया। जो अब वाईएसएस बुकस्टोर पर सरलता से उपलब्ध हैं। परमहंस योगानन्दजी की “आरोग्यकारी वैज्ञानिक प्रतिज्ञापन” (Scientific Healing Affirmations) एक ऐसी अनोखी रचना है जिसके द्वारा एकाग्र किए गए विचारों की शक्ति के सूक्ष्म नियमों को उजागर कर न केवल शारीरिक आरोग्यता प्राप्त की जा सकती है अपितु सब तरह की बाधाएं दूर की जा सकती हैं तथा जीवन में सर्वांगीण विकास प्राप्त किया जा सकता है। योगानन्दजी द्वारा लिखित “भयमुक्त जीवन” (Living Fearlessly), का हिन्दी अनुवाद अब पुस्तिका के रूप में उपलब्ध है।