अपनी बात

बधाई दीजिये छत्रपाल सिंह मुंडा को, उन्होंने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का भी हनुमान चालीसा व रामायण की तरह जनजातीय भाषा मुंडारी में अनुवाद करने में सफलता प्राप्त कर ली

छत्रपाल सिंह मुंडा ने कमाल कर डाला है। उन्होंने जनजातीय भाषा मुंडारी में एक से एक धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद करने का जो बीड़ा उठाया है। उसमें वे सफलता प्राप्त करते चले जा रहे हैं। सर्वप्रथम उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा का मुंडारी अनुवाद किया, जो बाजार में उपलब्ध भी हैं। उसके बाद उन्होंने रामायण का मुंडारी अनुवाद करना शुरु किया।

रामायण का भी जनजातीय भाषा मुंडारी में अनुवाद हो चुका है और आज विजयादशमी के दिन उन्होंने विद्रोही24 को बताया कि उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का भी जनजातीय भाषा मुंडारी में अनुवाद कर डाला है। खूंटी के रहनेवाले छत्रपाल सिंह मुंडा की विभिन्न भाषाओं पर अच्छी पकड़ है। वे चाहते है कि भारतीय वांग्मय व संस्कृति से जुड़ी पुस्तकें जन-जन की भाषा में लिखी जाये, ताकि लोग उसे सरलता से समझ सकें।

उसी की कड़ी में उन्होंने पहले तो हनुमान चालीसा का मुंडारी भाषा में अनुवाद किया। उसके बाद रामायण का मुंडारी भाषा में अनुवाद किया और अब श्रीमद्भगवद्गीता का भी मुंडारी भाषा में अनुवाद करने में सफलता प्राप्त कर ली। वरिष्ठ समाजसेवी निर्मल सिंह कहते है कि वे छत्रपाल सिंह मुंडा की मेधा के कायल हैं। वे समाज के प्रति बहुत ही संवेदनशील है। उनकी रचनाएं निश्चय ही समाज को नई दिशा देने में कामयाब होगी। इससे किसी को इनकार भी नहीं हैं।

ज्ञातव्य है कि छत्रपाल सिंह मुंडा, स्व. मझिया मुंडा के सुपुत्र है। वे पूर्व में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में भी कार्य कर चुके हैं। वे सूचना एवं जनसंपर्क मंत्रालय में उप-निदेशक के पद पर कार्यरत थे। संप्रति अवकाश प्राप्त करने के बाद खूंटी में ही अपने परिवार के साथ लेखन कार्य को संपादित करते हुए अपनी बाकी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।

बुद्धिजीवियों की मानें तो हनुमान चालीसा और रामायण का जनजातीय भाषा मुंडारी में अनुवाद करना कोई सामान्य बात नहीं और उससे भी ज्यादा कठिन श्रीमद्भगवद्गीता का मुंडारी में अनुवाद कर देना हैं। अतः विजयादशमी के दिन यह सुखद समाचार का मिलना निश्चय ही साहित्य जगत में एक क्रांतिकारी कदम हैं। इसका लाभ जनजातीय समुदाय को अवश्य मिलेगा और वे श्रीमद्भगवद्गीता को और बेहतर ढंग से समझ सकेंगे।