अपनी बात

नई शिक्षा नीति को लेकर हुई देशव्यापी बैठक हुई राजनीति की शिकार, हेमन्त को दिखा छेद तो द्रौपदी मुर्मू को दिखा पिछड़ों-आदिवासियों का हित

नई शिक्षा नीति को लेकर आज देश भर में हुई चर्चा, जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीकेंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, राज्यों के राज्यपालों एवं उप राज्यपालों तथा राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के समूह तक शामिल हुए। यह विशेष वीडियो कांफ्रेसिंग में हुई चर्चा साफ बताती है कि यह मीटिंग भी राजनीति की भेंट चढ़ गया। जिस राज्य में भाजपा के शासन नहीं हैं, वहां के लोगों को तो इस नई शिक्षा नीति में छेद ही छेद दिखा, और जहां भाजपा के शासन है, वहां के लोगों मे इस नई शिक्षा नीति में कहीं पर भी कमियां नहीं दिखी।

झारखण्ड में तो गजब देखने को मिला। इस एक ही राज्य में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को नई शिक्षा नीति में खामियों के सिवा कुछ नहीं दिखा, पर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को झारखण्ड ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के पिछड़ों-आदिवासियों का भी हित दिख गया। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के द्वारा इस परिचर्चा में शामिल होने के दौरान दिये गये संभाषण को उनके होनहार आइपीआरडी से जुड़े विद्वानों ने समाचार के रुप में प्रस्तुत किये हैं, जिसको देखकर आप माथा पकड़ लेंगे, उनका सोशल मीडिया भी पूर्व सीएम रघुवर दास के समय की तरह ही चलने लगा है, इसमें राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का दोष नहीं, बल्कि यह सत्ता की हनक हैं, जो सभी में दिखती है, ये कोई नई बात नहीं।

सर्वप्रथम हम राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की बात करेंगे, जिन्होंने इस विशिष्ट चर्चा में अपनी बातें रखी, जो आइपीआरडी के सोशल मीडिया द्वारा हमें प्राप्त हुई। कमाल है, नई शिक्षा नीति में भी भाषण देनेवालों ने देश को एकरुपता में न देखकर, पूरे देश को आदिवासियों/पिछड़ों/दलितों/गरीबों/किसानों/मजदूरों में बांट दिया, यानी हर चीज में राजनीति लानी जरुरी है। हमारे विचार से शिक्षा नीति में इस प्रकार के अल्फाजों से लोगों को, खासकर राजनीतिज्ञों को बचना चाहिए।

आइपीआरडी की सोशल मीडिया द्वारा प्राप्त समाचार के अनुसार उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति –2020 की भूमिका पर आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कई सवाल उठा दिये। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा दे रही है, जिससे अवसर की समानता के मौलिक अधिकार पर आघात होगा।  उन्होंने कहा कि समवर्ती सूची (Concurrent List) के विषय होने के बाद भी राज्यों से इस सम्बन्ध में बात नहीं करना, सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की भावना को चोट पहुंचाता है। इस नीति को लागू करने के लिए बजट का प्रावधान कहाँ से किया जाएगा, वह स्पष्ट नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि नई शिक्षा नीति में आदिवासियों/दलितों/ पिछड़ों/ गरीबों/ किसानों-मजदूरों के बच्चों के हितों की रक्षा करने सम्बन्धी प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव है। रोजगार नीति पर कोई चर्चा नहीं की गयी है। क्षेत्रीय भाषाओं पर चर्चा करते वक़्त सिर्फ आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं का जिक्र, बताता है कि एक बहुत बड़े वर्ग के साथ आनेवाले वक्त में नाइंसाफी होगी। झारखण्ड जैसे भौगोलिक रूप से पिछड़े/ दुर्गम क्षेत्र को इस नयी नीति से हानि उठानी पड़ेगी। 

श्री सोरेन ने कहा कि आजादी के बाद यह सिर्फ तीसरा मौक़ा है जब शिक्षा नीति पर चर्चा हो रही है, शिक्षा नीति के दूरगामी प्रभाव को रेखांकित करते हुए, उन्होंने कहा कि भारत एक विविधता से भरा देश है, यहां विभिन्न राज्यों की जरूरतें अलग-अलग हैं और जैसा कि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, इसे बनाने में सभी राज्यों के साथ खुले मन से चर्चा होनी चाहिए थी, जिससे  कोई राज्य इसे अपने ऊपर थोपा हुआ नहीं माने। आगे उन्होंने इस नीति को बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और परामर्श के अभाव की बात कही। आज जब नीति बनकर तैयार हो गयी है, तब केंद्र सरकार राज्यों के साथ इस पर चर्चा कर रही है l अच्छा होता कि इस पर पहले बात होती और सभी राज्य सक्रिय रूप से इसे बनाने में अपनी भागीदारी निभाते। 

श्री सोरेन ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि विगत कुछ समय से कई सार्वजनिक संस्थानों के निजीकरण के निर्णय , Commercial Mining और GST पर केंद्र सरकार के एकतरफ़ा निर्णय आदि के बाद अब नई शिक्षा नीति के नियमन में राज्यों से सलाह मशविरा का अभाव उन्हें सहकारी संघवाद की बुनियाद पर आघात प्रतीत होता है। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि शिक्षा नीति का प्रभाव हम अगले दशक में देख पाएंगे और लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकारें पांच साल के लिए चुनी जाती है, ऐसे में भी इसे सही ढंग से लागू करने के लिए भारत सरकार को सभी राज्य सरकारों एवं राजनितिक दलों से चर्चा करनी चाहिए थी, जो वे नहीं कर पाए । 

नई शिक्षा नीति में उल्लेखित प्रावधानों पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि कागज़ पर यह Script लुभावना दिखता है, पर इसमें बहुत सारे विषयों पर स्पष्टता नहीं है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा – आप निजी और विदेशी संस्थानों को आमंत्रित कर रहे हैं परन्तु, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों, किसानों-मजदूरों वर्गों के बच्चों के हितों की रक्षा के बारे में इस दस्तावेज में कुछ ठोस नहीं कहा गया है। क्या 70-80% के बीच की जनसंख्या वाले इस बड़े वर्ग के बच्चे लाखों-करोड़ों की फीस दे पाएंगे?

लाखों-करोड़ों की फीस वसूलने वाले निजी विश्वविद्यालय जब हमारे आज के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रोफेसरों के सामने बड़े-बड़े सैलरी पैकेज का ऑफर रखेंगे, तो हम अपने पुराने सरकारी संस्थानों के अच्छे प्रोफेसरों को कैसे रोक पाएंगे? और इससे हानि किस वर्ग के बच्चे-बच्चियों को होगी? प्रधानमंत्री महोदय से मुखातिब होते हुए सोरेन ने कहा कि आप और आपकी पार्टी ने 2010-11 में निजी सस्थानों को बढ़ावा देने सम्बन्धी निर्णय का कड़ा विरोध किया था, जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे अन्य दलों का समर्थन भी मिला था। तो किन परिस्थितियों में आज नई शिक्षा नीति में विदेशी निजी शिक्षण केन्द्रों को बढ़ावा देने का मन बना लिया गया

उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति के साथ-साथ रोजगार सम्बंधित नीति पर भी इसमें चर्चा होनी चाहिए थी। दोनों लगभग साथ-साथ चलती हैं, परन्तु, वह यहां दिख नहीं रहा है। श्री सोरेन ने कहा कि स्कूल में ज्यादा वर्ष गुजारने से अगर बच्चे को रोजगार सम्बंधित फायदा नहीं दिखेगा, तो हम चाहें कितनी भी अच्छी शिक्षा नीति बना लें वह सफल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि नई नीति को लागू करने में खर्च होने वाली धन राशि कहाँ से आएगी? झारखण्ड की बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ हमने शिक्षा में उन्नति को लेकर 2020-21 में राज्य के कुल बजट का 15.6% शिक्षा को समर्पित किया है जो कि पिछले वर्ष से 2% ज्यादा है। नई नीति में कहा गया है कि GDP का 6% शिक्षा पर खर्च होगा। परन्तु, इसके क्रियान्वयन के चलते राज्यों के कंधों पर अतिरिक्त कितना बोझ आएगा, उस पर कुछ बात नहीं की गयी है।

नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में बढ़ावा देने की बात कही गयी है। परन्तु, खेद है कि ऐसा करते वक़्त सिर्फ आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं का ही जिक्र किया जा रहा है। यहां वे कहना चाहेंगे कि सिर्फ आठवीं अनुसूची को आधार बनाने से अन्य बहुत भाषाएँ, जो आठवीं अनुसूची का हिस्सा नहीं बन पाई है, उसके साथ अन्याय होगा। झारखण्ड में हो, मुंडारी , उरॉव (कुडुख) जैसी कम-से-कम 5 अन्य भाषाएँ हैं जिन्हें आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिल पाई है, मगर इनके बोलने वालों की संख्या 10-20 लाख है। देश में उच्च शिक्षा हमेशा से Over-Regulated और Under-Funded रही है। विश्वविद्यालयों को समेकित तरीक़े से आगे बढ़ने के लिए, उन्हें Regulate करने के बजाय स्वायत्तता देना ज़्यादा ज़रूरी है। 

नई  शिक्षा नीति में महाविद्यालयों को बहु-विषयक (Multidisciplinary) बनाने पर जोर देने की बात की गयी है। स्वाभाविक तौर पर ऐसे संस्थानों का निर्माण वहीं होगा जो पहले से विकसित हो, जहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा हो, आदि । झारखण्ड एवं इसके जैसे भौगौलिक बनावट वाले राज्यों में या एक ही राज्य के अन्दर कई ढंग के क्षेत्र होते हैं, तो वहां भी यह दिक्कत सामने आएगी। छतीसगढ़ में बिरले निवेशक हिम्मत करेंगे, कि ऐसा संस्थान बस्तर के इलाके में खोलें, पश्चिम बंगाल में वही हानि जंगल महल के इलाके को उठाना पडेगा, तो उड़ीसा में कालाहांडी के क्षेत्र को होगा। हमारे उत्तर-पूर्व के राज्य इससे ज्यादा प्रभावित होंगे। मिला-जुला कर देश के सबसे पिछड़े/ उपेक्षित इलाकों में नए संस्थान नहीं के बराबर खुलेंगे। 

मुख्यमंत्री  ने कहा कि नई शिक्षा नीति बनाते हुए हमें अवसर की समानता का जो मौलिक अधिकार है उसे ध्यान में रखना होगा। निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा देने से एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय होगा। आदिवासियों/दलितों/ पिछड़ों/ गरीबों/ किसानों-मजदूरों आदि वर्गों से बड़ी हिम्मत करके कुछ लोग सफलता की सीढ़ी चढ़ आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनसे सीढ़ी छीनने जैसा काम होगा।

दूसरी ओर झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस शिक्षा नीति के माध्यम से जहां उच्च शिक्षा क्वालिटी और रिसर्च बेस्ड बनाने की बात कही गई है, वहीं इसमें विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं रुचि का ख्याल रखा गया है। इसके कारण उच्च शिक्षा में ग्रास इनरोलमेन्ट रेशियो बढ़ेगा। इस कारण शिक्षा नीति के माध्यम से सभी वर्गों तक उच्च शिक्षा पहुंचाने का प्रयास किया गया है। जो व्यवसायिक/रोजगारपरक शिक्षा की दिशा में भी यह नीति कारगर साबित होगा। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा का ध्यान रखा गया है, जो झारखण्ड जैसे राज्य के लिए वरदान है।

राज्यपाल ने कहा कि इस शिक्षा नीति के लागू होने के बाद यहां के विद्यार्थी भाषायी कारणों से पीछे नहीं रहेंगे। वे अपनी भाषा में इनोवेटिव आइडिया के साथ आगे बढ़ सकेंगे और राष्ट्र निर्माण में सहायक होंगे। राज्यपाल ने कहा कि इस शिक्षा नीति में प्राचीन और नई शिक्षा का समावेश किया गया है, इसमें लोकल से वोकल तक की चर्चा है। इसमें डिजिटल एजूकेशन,  वोकेशनल एजूकेशन, जॉब आरियेन्टेड कोर्सेज एवं स्किल डेवलेपमेन्ट की दिशा का भी ध्यान रखा गया है। कुल मिलाकर देखा जाय तो इस शिक्षा नीति में शिक्षण सिद्धांत और प्रायोगिक स्तर पर बल दिया गया है।