CPIML ने राज्य के DGP से सोनम के हत्यारों की गिरफ्तारी और माले कार्यकर्ताओं पर हो रहे फर्जी मुकदमों पर रोक लगाने को कहा
भाकपा माले ने राज्य के पुलिस महानिदेशक एम वी राव को पत्र लिखा है। पत्र में पलामू पुलिस की शिकायत की गई है। पत्र में पलामू पुलिस द्वारा भाकपा माले नेता दिव्या भगत व अन्य पर फर्जी मुकदमा करने और सोनम कुमारी के हत्यारे को बचाने के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच की बात की गई है। आखिर माले द्वारा पुलिस महानिदेशक को जो पत्र लिखा गया है, उसमें क्या हैं, आइये देखते है।
पत्र में लिखा गया है कि पलामू जिला के पाटन थाना अंतर्गत मेराल गांव में 28 अप्रैल 2020 को दसवीं की नावालिग़ छात्रा सोनम कुमारी रात्रि 10 बजे घर से शौच के लिए निकलती है और सुबह पांच बजे उसकी लाश पेड़ से लटकी हुई मिलती है। सामाजिक-राजनीतिक संगठनों की जाँच से यह बात जाहिर होता है कि इस लड़की की हत्या के पूर्व उसके साथ बलात्कार की भी घटना हुई थी, जिसे मेडिकल रिपोर्ट में ख़ारिज किया गया है। रात्रि में सुनसान जगह पर उसके साथ क्या हुआ यह तो दोषियों से पूछ ताछ से ही मालूम होगा। लेकिन संदिग्धों से पूछताछ कर छोड़ दिया जाना और महीना दिन से ज्यादा होने पर भी किसी की गिरफ़्तारी नहीं होना, पुलिस की भूमिका को तो संदिग्ध बना ही देता है।
हत्यारा जो भी हो हत्या एक आदिवासी बच्ची की हुई है, इसके बावजूद पुलिस इतनी उदासीन क्यों बनी हुई है? भाजपा सरकार की पुनर्वापसी नहीं होने से जनता खुश तो हुई, पर आदिवासी बच्ची की हत्या में भी पुलिस की इतनी उदासीनता हेमंत सरकार से भी जनता की नाराजगी को बढ़ा देगी, जो कहीं से लाभप्रद नहीं है। साथ ही पलामू जैसे जिले में जहाँ अपराधिक हत्याओं का एक दौर चल रहा है, पुलिस-प्रशासन की हत्या जैसी वारदात पर उदासीनता, इस जिले में अपराधिक वर्चस्व की शक्तियों के मनोबल को और भी मजबूत करेगा।
सोनम कुमारी की हत्या की पुलिस रिपोर्ट इस बात को तसदीक करती है कि बच्ची के गुप्तांग पर खून के धब्बे थे। ग्रामीण महिलाएं जिन्होंने पुलिस की उपस्थिति में इसे देखा, उनका भी कहना है कि हत्या के पूर्व बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है, जबकि मेडिकल रिपोर्ट में ऐसी बात नहीं है। ग्रामीणों की नजर में पोस्टमार्टम रिपोर्ट मैनेज किया लगता है। यह मसला भी संदेह के दायरे में है। पैरवी और पैसेवाले अपने पक्ष में रिपोर्ट और पुलिस को भी मैनेज करते रहे हैं, इस धारणा को तोड़ने के लिए भी निष्पक्ष जाँच आवश्यक है।
सोनम की हत्या के खिलाफ न्याय के लिए भाकपामाले से जुड़े छात्र संगठन आइसा घटना की शुरुआत से ही मुखरता से आवाज बुलंद करता रहा है। पलामू के सामाजिक-राजनीतिक संगठनो ने भी इस हत्या के खिलाफ आवाज उठाई है। सोशल मिडिया से लेकर लॉकडाउन के दौर में शारीरिक दूरी का पालन करते गांव-घर में रहते हुए ही लोग प्रतिवाद करते रहे। एक जून को आइसा का इस घटना के खिलाफ राज्यव्यापी प्रतिवाद था।
इसके तहत ही मेराल गांव में लोग कार्यक्रम किये थे। कार्यक्रम के बाद पुलिस गांव जाकर लोंगो को धौंस धमकी देने लगी। जिसके खिलाफ ग्रामीणों ने पुलिस के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया। सैकड़ों ग्रामीण इकट्ठा होकर प्रतिवाद किये। उस घटना के समय पार्टी के कार्यकर्त्ता दुसरे जगह चले गए थे। बाद में वे घटना सुनकर आये और लोगों को नियंत्रित किया, जबकि पुलिस हमारी पार्टी के ही कार्यकर्ताओं दिव्या भगत और पवन विश्वकर्मा पर मुक़दमा कर फर्जी धाराएँ आरोपित कर दी।
दिव्या भगत दलित समाज से आई एक पढ़ी लिखी युवती है, जो समाज की बेहतरी के लिए हमेशा संघर्ष करते रही है। गलत चीजों के खिलाफ मुखर रहने की वजह से असामाजिक तत्वों और भ्रष्ट पदाधिकारियों के निशाने पर वह थी। भाकपा माले के इस नेता पर 307 और 353 धाराएँ समेत अनगिनत धाराओं के तहत मुकदमा इस बात को स्थापित करता है, कि पुलिस फर्जी तरीके से सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित कर अपनी गलत चीजों को ढकना चाहती है, जनता की आवाज को दबाना चाहती है, अन्यथा पुलिस के खिलाफ प्रतिवाद में उद्वेलित जनता को शांत करने आये माले के नेताओं पर इस तरह की गंभीर आरोप नहीं लगाती।
प्रशासन को इसपर भी सोचना चाहिए कि उस गांव की सैकड़ों जनता पुलिस के खिलाफ प्रतिवाद में क्यों खड़ी हो गई? पुलिस के बारे में ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस अपराधियों को बचा रही है और उलटे पीड़ित परिवार के खिलाफ ही आरोप मढ़ना चाहती है। यह तो हाल के दिनों में भाजपा शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ सचेत हमले और उलटे उन्ही पर मुक़दमा कर जेल देने की तरह की घटना होगी जिससे हेमंत सरकार की बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
हेमंत सरकार में भी न्याय के लिए लड़नेवालों पर मुक़दमा और अपराधियों का संरक्षण होने लगे, तो भाजपा की रघुवर सरकार से क्या भिन्नता होगी।इसीलिए आपसे आग्रह है कि इस घटना कि उच्च स्तरीय जांच कर सोनम कुमारी के हत्यारे की गिरफ़्तारी की जाये और भाकपामाले नेताओं-कार्यकर्ताओं पर डाले गए फर्जी मुक़दमे वापस ली जाये।